![शादी अमान्य फिर भी मिलेगा गुजारा भत्ता! सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, Alimony Rules](https://newzoto.com/wp-content/uploads/2025/02/Alimony-Rules-1024x576.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि भले ही किसी शादी को अमान्य घोषित कर दिया जाए, लेकिन इसके बावजूद स्थायी गुजारा भत्ता और अंतरिम भरण-पोषण से इनकार नहीं किया जा सकता। यह पूरी तरह से उस विशेष मामले के तथ्यों और संबंधित पक्षों की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
कोर्ट का निर्णय और संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन-न्यायाधीशों की बेंच ने 12 फरवरी को की। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, मामला सुखदेव सिंह और उनकी पत्नी सुखबीर कौर के बीच का था, जिसमें पति ने दावा किया था कि उनकी शादी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत अमान्य घोषित की गई है। इस आधार पर उन्होंने तर्क दिया कि उनकी पत्नी को गुजारा भत्ता प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्टीकरण
बेंच ने अपने फैसले में कहा:
“हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के तहत यदि कोई विवाह अमान्य घोषित कर दिया जाता है, तो भी विवाह में शामिल पक्षों को धारा 25 के तहत मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार होता है। यह मुआवजा देने या न देने का निर्णय संबंधित व्यक्ति की परिस्थितियों और उनके आचरण पर निर्भर करता है।”
क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?
पिछले कुछ वर्षों में इस मुद्दे पर विभिन्न बेंचों के निर्णयों में असहमति रही है। कुछ फैसलों में कहा गया कि विवाह अमान्य घोषित होने के बाद भी गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, जबकि कुछ अन्य फैसलों में इसका खंडन किया गया।
विरोधाभास और न्यायिक प्रक्रिया
अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने पूर्व में दिए गए फैसलों के आधार पर यह माना कि विवाह अमान्य होने के बावजूद गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। लेकिन इस विषय पर अलग-अलग बेंचों की राय असंगत होने के कारण, इसे तीन जजों की बेंच को सौंप दिया गया।
सुखबीर कौर की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पवनी ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह अमान्य घोषित होने के बाद भी भरण-पोषण का अधिकार बना रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि पहले भी इस विषय पर लगातार विरोधाभासी निर्णय दिए गए हैं।
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न्यायपालिका की नई व्याख्या
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि विवाह की वैधता से अलग, यदि कोई व्यक्ति विवाह में रहा है, तो वह आर्थिक सहायता से वंचित नहीं किया जा सकता। यह फैसला कई ऐसे मामलों में मिसाल बनेगा, जहां विवाह अमान्य घोषित होने के कारण महिलाओं को न्याय से वंचित किया जाता रहा है।
न्याय की नई दिशा
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने एक महत्वपूर्ण सामाजिक और कानूनी मुद्दे पर स्पष्टता प्रदान की है। अब यह सुनिश्चित किया गया है कि विवाह की अमान्यता के बावजूद जीवनसाथी को कानूनी अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा। यह फैसला महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए एक मजबूत कदम साबित होगा।