
इस साल Holi की तारीख को लेकर लोगों में भारी कन्फ्यूजन देखने को मिल रहा है। कुछ लोग 14 मार्च को होली खेलने की बात कर रहे हैं, तो कुछ 15 मार्च को होली मनाने की बात कह रहे हैं। हालांकि, अब इस असमंजस को दूर कर दिया गया है। राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ के विद्वत परिषद के प्रदेश अध्यक्ष एवं पिपरा निवासी पंडित आचार्य राकेश मिश्रा ने पंचांग के अनुसार स्पष्ट किया है कि होलिका दहन 13 मार्च की रात को होगा और 15 मार्च को रंगों का त्योहार Holi मनाया जाएगा।
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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूर्णिमा तिथि
पंडित आचार्य राकेश मिश्रा के अनुसार, पंचांग के हिसाब से होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। इस साल फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे शुरू होगी और 14 मार्च को सुबह 11:11 बजे तक रहेगी।
उन्होंने बताया कि 13 मार्च की रात को भद्रा काल भी रहेगा, जो रात्रि 10:37 बजे समाप्त होगा। इसके बाद 10:38 बजे से 11:26 बजे तक होलिका दहन का सबसे शुभ मुहूर्त होगा। इस समय होलिका दहन करने से विशेष लाभ मिलेगा।
15 मार्च को खेली जाएगी रंगों की होली
पंडित जी ने स्पष्ट किया कि 15 मार्च, शनिवार को रंगों की Holi खेली जाएगी। शास्त्रों के अनुसार, धुलेंडी (रंग खेलने का दिन) पूर्णिमा के अगले दिन मनाया जाता है, इसलिए 15 मार्च को Holi खेलना ही सही रहेगा। इससे पहले 13 मार्च की रात को होलिका दहन किया जाएगा।
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बदल रही होली की परंपराएं, कम हो रही रंगों की उमंग
समय के साथ होली की परंपराओं में भी काफी बदलाव देखा जा रहा है। पहले गांवों में Holi से 40 दिन पहले से ही फाग गाने की परंपरा थी, लेकिन अब यह कम होती जा रही है। फाग गीतों की जगह अब अश्लील गीतों ने ले ली है, जिससे होली का पारंपरिक आनंद कहीं खो सा गया है।
पहले गांवों में बसंत पंचमी से ही होलिका दहन की तैयारी शुरू हो जाती थी। बुजुर्ग और युवा मिलकर होलिका दहन स्थल पर बांस गाड़ते थे, और वहां लकड़ी, उपले व अन्य सामग्री इकट्ठा करते थे। लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।
। लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।
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फागुन की मिठास में कमी, औपचारिकता बन गई होली
पहले Holi के दिन सुबह धूल उड़ाने की परंपरा थी, फिर कीचड़ और पानी की होली खेली जाती थी। अब इन सबके बीच कपड़ा फाड़ होली का चलन बढ़ गया है, जिससे इस त्योहार की गरिमा कम हो रही है। गांवों की Holi अब पहले जैसी मस्तीभरी नहीं रह गई है, बल्कि एक औपचारिकता मात्र बनकर रह गई है।
फागुन की मिठास में कमी, औपचारिकता बन गई होली
पहले Holi के दिन सुबह धूल उड़ाने की परंपरा थी, फिर कीचड़ और पानी की होली खेली जाती थी। अब इन सबके बीच कपड़ा फाड़ होली का चलन बढ़ गया है, जिससे इस त्योहार की गरिमा कम हो रही है। गांवों की Holi अब पहले जैसी मस्तीभरी नहीं रह गई है, बल्कि एक औपचारिकता मात्र बनकर रह गई है।