![जमीन अधिग्रहण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! अब ऐसे तय होगा मुआवजा, देखें](https://newzoto.com/wp-content/uploads/2025/02/Supreme-Courts-big-decision-on-land-acquisition-1024x576.jpg)
देश की शीर्ष अदालत ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिससे किसानों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि के मुआवजे और ब्याज का भुगतान पिछली तिथि से ही किया जाएगा। इससे पहले इस संबंध में 2019 में एक फैसला दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि मुआवजे की गणना पूर्व व्यापी प्रभाव से होगी।
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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की एनएचएआई की याचिका
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने एनएचएआई की एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यह अनुरोध किया गया था कि 19 सितंबर, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केवल भविष्य में लागू किया जाए। प्राधिकरण ने उन मामलों को दोबारा खोलने से भी रोकने की मांग की थी, जिनमें भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और मुआवजे का निर्धारण किया जा चुका था।
अदालत का सख्त रुख
पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि एनएचएआई की दलीलों में कोई दम नहीं है। अदालत ने 2019 के तरसेम सिंह मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मुआवजे और ब्याज को लेकर पहले से स्थापित सिद्धांतों की पुष्टि की जाती है। साथ ही, न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी तरह का अन्यायपूर्ण वर्गीकरण नहीं किया जाना चाहिए।
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निर्णय को केवल भविष्य में लागू करने से खत्म हो जाएगा राहत का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि 2019 के फैसले को केवल भविष्य में लागू किया जाता है, तो यह उन किसानों को उनके अधिकार से वंचित कर देगा, जिनकी जमीन पहले ही अधिग्रहित हो चुकी है। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी किसान की जमीन 31 दिसंबर, 2014 को अधिग्रहीत की गई थी, तो उसे मुआवजा और ब्याज नहीं मिलेगा। लेकिन, अगर किसी अन्य किसान की जमीन एक दिन बाद 1 जनवरी, 2015 को अधिग्रहीत की जाती है, तो वह मुआवजा पाने का हकदार होगा। यह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
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किसानों को मिलेगा पूरा लाभ
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसके 2019 के निर्णय का अंतिम उद्देश्य केवल उन भूमि स्वामियों को मुआवजा और ब्याज दिलाना था, जिनकी भूमि 1997 और 2015 के बीच अधिग्रहीत की गई थी। इस फैसले का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उन मामलों को फिर से खोला जाएगा, जो पहले ही अंतिम रूप ले चुके हैं।