
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में उन संवैधानिक आवश्यकताओं को स्पष्ट किया है, जिन्हें राज्य सरकारों को निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने से पहले पूरा करना आवश्यक है। इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए। साथ ही, संपत्ति मालिक को यह सूचित करना राज्य का कर्तव्य है कि उसकी भूमि अधिग्रहित की जा रही है। इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिग्रहण से पहले भूमि मालिक को अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का अवसर दिया जाना अनिवार्य है।
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भूमि अधिग्रहण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों के लिए भूमि अधिग्रहण से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अधिग्रहण केवल सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जाए और किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं। इसके अलावा, भूमि मालिक को उचित मुआवजा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया न्यायोचित होनी चाहिए और किसी भी व्यक्ति को अनुचित रूप से उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने इस मामले में कहा कि यदि अधिग्रहण के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है, तो इसे कानून सम्मत नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत भूमि मालिक को प्रक्रियात्मक अधिकार प्रदान किए जाते हैं, जिनका सम्मान किया जाना चाहिए।
समयबद्ध तरीके से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया अपनाने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक और तय समयसीमा के भीतर पूरा करना राज्य सरकार का कर्तव्य है। साथ ही, सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भूमि अधिग्रहण संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत नागरिकों के संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन न करे। कोर्ट ने सरकार और उसके अधीनस्थ विभागों को इस संबंध में सख्त दिशानिर्देश दिए हैं ताकि भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता बनी रहे और संपत्ति मालिकों को उनके अधिकारों से वंचित न किया जाए।
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कोलकाता नगर निगम मामले में सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
यह महत्वपूर्ण फैसला उस समय आया जब सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता नगर निगम से जुड़े भूमि अधिग्रहण मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कोलकाता नगर निगम अधिनियम की धारा 352 के तहत नागरिक निकाय द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण को अवैध घोषित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को सही ठहराते हुए कोलकाता नगर निगम पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह निर्णय देशभर में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगा और राज्य सरकारों को अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता बरतने के लिए बाध्य करेगा।