![Supreme court decision: प्रोपर्टी वसीयत को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, वसीयत काफी नहीं... सबूत की भी होगी जरूरत](https://newzoto.com/wp-content/uploads/2025/02/Along-with-the-will-proof-is-also-necessary-1024x576.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत को लेकर एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि मात्र पंजीकरण से ही वसीयत को वैध नहीं माना जा सकता। वसीयत की वैधता सिद्ध करने और इसे निष्पादित करने का पर्याप्त सबूत प्रस्तुत करना आवश्यक है। न्यायालय ने यह भी कहा कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के तहत वसीयत की प्रमाणिकता को सिद्ध करना अनिवार्य है।
यह भी देखें- सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बड़ी पहल, सम्मान से मरने का अधिकार, कर्नाटक बना पहला राज्य
वसीयत की वैधता के लिए साक्ष्य अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वसीयत की प्रमाणिकता को साबित करने के लिए गवाहों का होना आवश्यक है। विशेष रूप से, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के अनुसार, वसीयत की निष्पादन प्रक्रिया को साबित करने के लिए कम से कम एक विश्वसनीय गवाह का परीक्षण जरूरी है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वसीयतकर्ता ने अपनी स्वतंत्र इच्छा से और पूर्ण होशोहवास में वसीयत बनाई है, गवाहों की गवाही महत्वपूर्ण होती है।
लीला एवं अन्य बनाम मुरुगनंथम एवं अन्य मामले में फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम फैसला लीला एवं अन्य बनाम मुरुगनंथम एवं अन्य के मामले में सुनाया। इस प्रकरण में, वसीयत को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था, और निचली अदालत तथा उच्च न्यायालय ने इसे संदिग्ध करार दिया था। अपीलकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि वसीयत की वैधता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मौजूद नहीं थे। अदालत ने कहा कि सिर्फ वसीयत का पंजीकरण ही उसे स्वाभाविक रूप से वैध नहीं बना देता, बल्कि इसके निष्पादन को सिद्ध करने के लिए ठोस प्रमाण होने आवश्यक हैं।
यह भी देखें- New Tax Slab का असर 8वें वेतन आयोग पर! सरकारी कर्मचारियों की सैलरी में होगी जबरदस्त बढ़ोतरी?
विवाद की पृष्ठभूमि
यह मामला बालासुब्रमणिया तंथिरियार (वसीयतकर्ता) की संपत्ति के विभाजन से जुड़ा था। उन्होंने अपनी संपत्ति को चार हिस्सों में बांटने की इच्छा जताई थी, जिसमें से तीन हिस्से उनकी पहली पत्नी और उनके बच्चों को दिए गए थे। मुख्य विवाद वसीयत की प्रामाणिकता को लेकर था। निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ताओं के दावे को ठुकरा दिया और वसीयत को संदिग्ध मानते हुए इसे अवैध करार दिया। बाद में, यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां भी वसीयत की निष्पादन प्रक्रिया को लेकर पर्याप्त प्रमाण न मिलने के कारण अपील को खारिज कर दिया गया।
कोर्ट ने क्यों माना वसीयत को संदिग्ध?
सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत को संदिग्ध मानते हुए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। एक ओर, वसीयत में यह कहा गया कि वसीयतकर्ता पूरी तरह से स्वस्थ और होशोहवास में था, जबकि दूसरी ओर, उसी वसीयत में यह भी लिखा गया था कि वह गंभीर हृदय रोग से पीड़ित था और उसका इलाज कई डॉक्टरों से चल रहा था। इस विरोधाभास ने वसीयत की वैधता पर सवाल खड़ा कर दिया।
वसीयत की निष्पादन प्रक्रिया में एक महिला ने यह स्वीकार किया कि उनके पति ने वसीयत बनाई थी, लेकिन उन्होंने इसके निर्माण में कोई भूमिका नहीं निभाई थी। इसके अलावा, गवाह ने दावा किया कि नोटरी पब्लिक ने वसीयतकर्ता को वसीयत पढ़कर सुनाई थी, लेकिन इस दावे को साबित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सका। इसके अतिरिक्त, वसीयत पर हस्ताक्षर करने वाला गवाह भी वसीयतकर्ता का निकट परिचित नहीं था, जिससे इस दस्तावेज की प्रमाणिकता पर और भी संदेह उत्पन्न हुआ।
यह भी देखें- बाबा रामदेव मुश्किल में! कोर्ट ने जारी किया गैर-जमानती वारंट, आचार्य बालकृष्ण पर भी कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि वसीयत को केवल पंजीकरण के आधार पर वैध नहीं माना जा सकता। इसे निष्पादित करने और इसकी वैधता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करना अनिवार्य है। न्यायालय ने यह भी कहा कि वसीयत निष्पादन के दौरान उपस्थित गवाहों की गवाही महत्वपूर्ण होती है और यदि गवाह निष्पादन की प्रक्रिया की पुष्टि नहीं कर सकते, तो वसीयत को वैध नहीं माना जा सकता।