
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने का निर्देश दिया है, जिसमें शादियों के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन (Marriage Registration) को प्रभावी रूप से लागू करने की बात कही गई थी। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकारों को आदेश दिया कि वे इस मामले में तीन महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें। इस मामले की अगली सुनवाई 9 जुलाई को होगी।
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सुप्रीम कोर्ट का 2006 का आदेश और याचिका की मांग
यह याचिका आकाश गोयल ने दायर की थी, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में शादियों के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य करार दिया था, लेकिन अभी तक इसे प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि मौजूदा रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया जटिल है, जिससे नागरिकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
याचिका में केंद्र सरकार से यह भी मांग की गई कि शादियों के पंजीकरण के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस (Centralized Database) विकसित किया जाए। इससे शादी का रिकॉर्ड रखना और इससे संबंधित कानूनी विवादों का समाधान करना आसान होगा।
दिल्ली सरकार ने 2014 में बनाए थे नियम
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि 2014 में शादियों के अनिवार्य पंजीकरण के लिए नियम बनाए गए थे। हालांकि, याचिकाकर्ता ने इन नियमों की कई खामियों को उजागर किया।
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हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौजूदा नियम केवल कार्यपालक स्तर के हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप एक ठोस कानून बनाना आवश्यक है, जिससे शादियों का रजिस्ट्रेशन बाधारहित तरीके से हो सके।
क्यों आवश्यक है विवाह पंजीकरण?
शादी के अनिवार्य पंजीकरण का उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना और पारिवारिक विवादों को रोकना है। विवाह पंजीकरण होने से कानूनी प्रमाण उपलब्ध होता है, जिससे तलाक, संपत्ति विवाद और अन्य पारिवारिक मामलों में सहूलियत मिलती है।
इसके अलावा, यह सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए भी आवश्यक होता है। कई देशों में विवाह प्रमाणपत्र को कानूनी रुप से मान्यता दी जाती है और नागरिकों को इससे विभिन्न लाभ मिलते हैं।
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क्या हो सकते हैं नए नियम?
यदि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस मामले में नया कानून बनाती हैं, तो इसमें निम्नलिखित प्रावधान हो सकते हैं:
- ऑनलाइन पंजीकरण पोर्टल – जिससे शादी का रजिस्ट्रेशन आसान और त्वरित हो सके।
- निर्धारित समय सीमा – विवाह के एक निश्चित समय सीमा के भीतर पंजीकरण अनिवार्य हो।
- सख्त दंड प्रावधान – बिना पंजीकरण के शादी करने वालों के लिए दंडात्मक प्रावधान हों।
- केंद्रीकृत डेटाबेस – जिससे पूरे देश में शादी के रिकॉर्ड आसानी से उपलब्ध हो सकें।
- सरल प्रक्रिया – पंजीकरण प्रक्रिया को सरल और कम दस्तावेजों में पूरा करने का प्रावधान हो।
आगे की राह
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र और दिल्ली सरकार को तीन महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यदि सरकारें इस निर्देश का पालन करती हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए ठोस कदम उठाती हैं, तो नागरिकों के लिए यह एक बड़ी राहत होगी।
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अगली सुनवाई 9 जुलाई को होगी, जिसमें सरकारों की तरफ से उठाए गए कदमों की समीक्षा की जाएगी।