
जब भी देश के क्रांतिकारियों को याद किया जाता है तो श्री अरबिंदो का नाम बड़े ही सम्मान पूर्वक लिया जाता है। अरबिंद घोष एक स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, योगी, दार्शनिक और महान कवि थे। श्री अरबिंद ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य के नाम कर दिया था। श्री अरबिंद के द्वारा रचित रचनायें हमारे वेदों, गीता और उपनिषदों के रहस्यों को हमारे सामने उजागर करती है। अरबिंद जी के द्वारा लिखे गए योग साधना के ग्रंथ मौलिक ग्रन्थ हैं जो हमें योग साधना का ज्ञान देते हैं। अरबिंद जी के अनुयायी आज पुरे विश्वभर में मौजूद हैं। दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल श्री अरबिंदो के जीवन परिचय पर आधारित है। हम सभी को अरबिंदो जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। लेख में हमने अरबिंदो जी के जीवन, विचार, रचनायें आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है। यदि आप भी अरबिंदो जी के जीवन और विचारों को समझना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।
श्री अरबिंदो का जीवन परिचय – Sri Aurobindo Ghosh
पूरा नाम | श्री अरविन्द घोष |
उपनाम | अरबिंदो |
जन्म तिथि (Date of birth) | 15 अगस्त 1872 |
जन्मस्थान (birthplace) | कोलकाता, भारत |
उम्र (Age) | मृत्यु के समय आयु (78 वर्ष) |
शिक्षा (Education) | कैंब्रिज यूनिवर्सिटी |
मृत्यु तिथि (Date of Death) | 5 दिसम्बर 1950 |
मृत्यु स्थान (place of death) | पुंडुचेरी |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
राष्ट्रीयता(Nationality) | भारतीय |
श्री अरबिंदो का प्रारम्भिक जीवन:
- अरविन्द घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 को एक हिन्दू बंगाली परिवार में कोलकाता में हुआ था। श्री अरबिंद घोष के पिता कृष्णधन घोष एक डॉक्टर थे और वह चाहते थे अरबिंद उच्च शिक्षा ग्रहण कर एक अच्छे सरकारी पद पर नियुक्त हों।
- श्री अरबिंद के पिता ने अरबिंद को 7 साल की उम्र में अच्छी और उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। आपको बता दें की श्री अरबिंद ने बहुत ही कम उम्र 18 साल में उस समय की कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाने वाली आई० सी० एस० की परीक्षा को पास कर लिया था। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद श्री अरबिंद का एडमिशन इंग्लैंड की बहु प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हो गया था।
- कैंब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करते हुए श्री अरबिंद ने बाकी विषयों की पढ़ाई करते हुए अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक एवं इटैलियन आदि भाषाओं में शिक्षा प्राप्त की और उन्हें इन सभी भाषाओं का अच्छा ज्ञान हो गया था।
श्री अरबिंदो का क्रांतिकारी जीवन:
- जब श्री अरबिंदो अपनी युवावस्था में थे तो देश में अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देखकर वह एक क्रांतिकारी बनने को प्रेरित हुए। श्री अरबिंदो ने मन में ठान लिया की उन्हें पुरे जीवन देश की सेवा करनी है और लोगों को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद करवाना है।
- श्री अरबिंदो जब गुजरात के बड़ौदा में थे तब बड़ौदा के राजा अरबिंदो से मिलकर बहुत प्रभावित हुए और बड़ौदा नरेश ने Sri Aurobindo Ghosh को अपनी रियासत में शिक्षा शास्त्री के रूप में नियुक्त कर दिया। जहाँ वेतन के रूप अरबिंदो जी को 750 रूपये प्रतिमाह दिए जाते थे।
- स्कूल में श्री अरबिंदो ने प्राध्यापक, वाइस प्रिंसिपल, निजी सचिव आदि पदों पर रहते हुए अपनी कार्य योग्यता का भरपूर प्रदर्शन किया।
- सन 1896 से लेकर वर्ष 1905 के बीच Sri Aurobindo Ghosh ने बड़ौदा की रियासत में राजस्व अधिकारी, फ्रेंच अध्यापक और उपाचार्य जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
- स्कूल में ही उन्होंने लगभग हजारों बच्चों को क्रांतिकारी ट्रेनिंग और क्रांतिकारी की दीक्षा दी। इसी के साथ श्री अरबिंदो पुरे देश भर में भ्रमण करते हुए लोगों को आज़ादी के लिए जागरूक करने लगे।
- जब अरबिंदो देश भर में भ्रमण में कर रहे थे तो वह भ्रमण करते हुए बांग्लादेश पहुंचे उस समय बांग्लादेश हमारे देश का ही हिस्सा हुआ करता था। बांग्लादेश के किशोरगंज में अरबिंदो ने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की थी।
- स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत के साथ अरबिंदो ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार हेतु आवाज़ उठाई और अब वह देश के कपास से निर्मित होने वाले सूत से बने धोती, कुर्ता और चादर पहनने लगे।
- बांग्लादेश में रहते हुए राष्ट्रीय विद्यालय से श्री अरविन्द ने अग्निवर्षी पत्रिका बन्दे मातरम् (पत्रिका) का प्रकाशन प्रारम्भ जो एक साप्ताहिक पत्रिका थी। यह पत्रिका एक तरह की अखबार थी जिसके सम्पादक श्री अरबिंदो जी थे।
- 2 मई 1908 को लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भड़काने के आरोप में अंग्रेजों द्वारा उन्हें और उनके चालीस शिष्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए Sri Aurobindo Ghosh को अनेकों प्रकार की यातनाएं दी गयीं। इतिहास के पन्नों में यह घटना अलीपुर षडयन्त्र केस के नाम से दर्ज है।
- 30 मई 1909 को श्री अरबिंदो ने अपना एक प्रसिद्ध अभिभाषण दिया था जिसे उत्तरपाड़ा अभिभाषण के नाम से जाना जाता है। अपने इस अभिभाषण में Sri Aurobindo Ghosh ने धर्म और राष्ट्र विषय कारावास के ऊपर खुलकर अपने विचार रखे।
श्री अरबिंदो का परिवार:

पिता जी का नाम | कृष्णधन घोष |
माता जी का नाम | स्वर्णलता देवी |
भाई | बारीन्द्र कुमार घोष, मनमोहन घोष |
पत्नी | मृणालिनी देवी (विवाह: 1901) |
श्री अरबिंदो की कुछ प्रमुख रचनायें:
- श्री अरबिंदो द्वारा हिंदी भाषा में रचित कुछ मुख्य ग्रन्थ:
- दिव्य जीवन
- योग-समन्यवय
- भारतीय संस्कृति के आधार
- वेद-रहस्य
- ईशोपनिषद
- माता
- गीता-प्रबंध
- केन एवं अन्यान्य उपनिषद्
- श्री अरबिंदो द्वारा अंग्रेजी भाषा में रचित कुछ मुख्य ग्रन्थ:
यह तो आप जानते ही हैं की श्री अरबिंदो ने अपनी रचनाओं में उपनिषद, वेदों के रहस्य और गीत का वर्णन किया है। यहां हमने कुछ रचनाओं के बारे में बताया है जो Sri Aurobindo Ghosh ने अंग्रेजी भाषा में की हैं यह रचनाएं इस प्रकार से हैं –- द ह्यूमन साइकिल – The Human Cycle
- द आइडियल ऑफ़ ह्यूमन यूनिटी – The Ideal of Human Unity
- द फ्यूचर पोएट्री – The Future Poetry
- द रेनेसां इन इंडिया – The Renesan in India
- वार एंड सेल्फ डिटरमिनेसन – War and Self Determination
Sri Arbindo के जीवन की कुछ प्रमुख उपलब्धियां
- श्री अरबिंदो एक दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु, महान कवि थे जिनके विचार पुरे विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।
- Sri Aurobindo Ghosh ने अपना शैक्षणिक जीवन 7 साल की आयु से आरम्भ किया था।
- श्री अरबिंदो घोष हिंदी के साथ-साथ कई अन्य भाषाओं का ज्ञान था।
- चम्पकलाल, नलिनि कान्त गुप्त, कैखुसरो दादाभाई सेठना आदि श्री अरबिंदो की कुछ प्रमुख विश्व विख्यात रचनाएं हैं।
Sri Aurobindo Ghosh जी की मृत्यु
- जीवन के अंतिम समय अरबिंदो घोष अपने पुंडुचेरी के आश्रम में थे और वह लोगों को आध्यात्म एवं क्रांतिकारी के संबंध में दीक्षा दिया करते थे। आश्रम में पढ़ने वाले उनके अनुयायियों ने Sri Aurobindo Ghosh जी के विचारों को पुरे विश्वभर में प्रचारित एवं प्रसारित किया।
- 5 दिसम्बर 1950 को अपने पुंडुचेरी के आश्रम में श्री अरबिंदो ने आखिरी सांस ली और अपने शरीर को त्याग कर ईश्वर का ध्यान करते हुए सम्पूर्णता में विलीन हो गए।
श्री अरबिंदो से जुड़े प्रश्न एवं उत्तर (FAQs):
श्री अरबिंदो कौन थे ?
Sri Aurobindo Ghosh एक योगी, दार्शनिक, हिंदी साहित्य के महान कवि और आध्यात्मिक गुरु थे।
“वंदे मातरम” साप्ताहिक अखबार के सम्पादक कौन थे ?
सन 1907 में कलकत्ता में प्रकाशित होने वाला वंदे मातरम साप्ताहिक अखबार के सम्पादक श्री अरबिंदो घोष जी थे।
अरबिंदो आश्रम की स्थापना कब हुई ?
आपको बताते चलें की अरबिंदो आश्रम की स्थापना 24 नवंबर 1926 में पांडिचेरी में की थी।
अरबिंदो के अनुसार समग्र योग क्या है
श्री अरबिंदो के अनुसार समग्र योग एक जीवन का लक्ष्य और आध्यात्मिक सिद्धि है। जिसकी सहायता से आप सामजिक समस्याओं से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं।