
भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर तनाव अपने चरम पर है। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सख्त कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को निलंबित कर दिया और पाकिस्तान के तीन सैन्य राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया। इसके जवाब में पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते (Shimla Agreement) को निलंबित करने का ऐलान कर दिया है। अब खबरें हैं कि पाकिस्तान 1966 के ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement) को भी रद्द कर सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर पाकिस्तान ताशकंद समझौता भी निलंबित करता है तो इससे भारत को फायदा होगा या नुकसान? आइए विस्तार से समझते हैं।
ताशकंद समझौता 1966: भारत-पाक युद्ध के बाद की शांति संधि
ताशकंद समझौता 10 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था। यह समझौता 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करने के लिए सोवियत संघ के प्रीमियर अलेक्सी कोसिगिन (Alexei Kosygin) की मध्यस्थता से हुआ था। भारत की ओर से प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।
समझौते में क्या प्रावधान थे?
ताशकंद समझौते के तहत दोनों देशों ने युद्धविराम (Ceasefire) का पालन करने, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, प्रचार युद्ध बंद करने, राजनयिक संबंध सामान्य करने और आर्थिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बहाल करने पर सहमति जताई थी। इसके अलावा, दोनों देशों के सशस्त्र बलों को 5 अगस्त 1965 से पहले की स्थिति में लौटने और युद्धबंदियों की वापसी सुनिश्चित करने पर भी सहमति बनी थी।
लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत और समझौते पर विवाद
ताशकंद समझौते के ठीक एक दिन बाद, 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। आधिकारिक तौर पर इसे हार्ट अटैक बताया गया, लेकिन पोस्टमॉर्टम न होने और परिवार की आशंकाओं के कारण यह आज भी विवाद का विषय बना हुआ है। वहीं भारत में ताशकंद समझौते की जमकर आलोचना हुई थी, खासकर रणनीतिक रूप से अहम हाजी पीर दर्रे को वापस करने के फैसले पर। इस कारण महावीर त्यागी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने इस्तीफा तक दे दिया था।
पाकिस्तान द्वारा ताशकंद समझौता निलंबित करने की संभावना
पाकिस्तान का शिमला समझौते को निलंबित करना उसकी बौखलाहट का परिणाम माना जा रहा है। अब अगर वह ताशकंद समझौते को भी निलंबित करता है तो यह दक्षिण एशिया में शांति प्रयासों को कमजोर कर सकता है। पाकिस्तान शायद कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा, लेकिन भारत की मौजूदा कूटनीतिक स्थिति इसे नाकाम कर सकती है।
भारत को संभावित फायदे
अगर पाकिस्तान ताशकंद समझौते को रद्द करता है, तो भारत को कई तरह के कूटनीतिक और सामरिक लाभ हो सकते हैं।
दूसरा, कश्मीर पर भारत का दावा और भी मजबूत हो जाएगा। चूंकि भारत हमेशा से कश्मीर को अपना अभिन्न हिस्सा मानता आया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस मुद्दे पर हस्तक्षेप से बचता है, इसलिए ताशकंद समझौते का निलंबन भारत की स्थिति को और ताकतवर बना सकता है।
तीसरा, भारत को पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध पूरी तरह समाप्त करने का अवसर मिलेगा, जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर और अधिक दबाव पड़ेगा। सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद यह एक और बड़ा झटका होगा।
चौथा, पाकिस्तान द्वारा एकतरफा समझौते तोड़ने से उसकी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता बुरी तरह प्रभावित होगी। रूस जैसे देशों के साथ भी उसके रिश्ते बिगड़ सकते हैं, और भारत इसका लाभ उठाकर उसे वैश्विक मंचों पर अलग-थलग कर सकता है।
अंततः, इस स्थिति में भारत दक्षिण एशिया में एक मजबूत नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर सकता है। भारत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों के साथ अपने रिश्ते और भी प्रगाढ़ कर सकता है।
पाकिस्तान की खीझ और भारत के लिए संभावित खतरे
हालांकि, यह भी सच है कि बौखलाए हुए पाकिस्तान से सीमा पर आतंकवादी गतिविधियों में बढ़ोतरी हो सकती है। इससे भारत को आंतरिक सुरक्षा और सीमावर्ती इलाकों में अधिक सतर्कता बरतनी पड़ेगी। LoC पर सैन्य तनाव बढ़ने की भी आशंका रहेगी, जिससे सीमित युद्ध या संघर्ष जैसी स्थिति बन सकती है।