
राजस्थान के विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्रणाली को भारतीय परंपराओं के अनुरूप नया स्वरूप देने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। राज्य की भजनलाल शर्मा सरकार ने Vice Chancellor (कुलपति) एवं Pro-Vice Chancellor (प्रतिकुलपति) जैसे पदों के पारंपरिक प्रशासनिक नामों को बदलकर उन्हें अब कुलगुरू एवं प्रतिकुलगुरू के नाम से संबोधित करने का निर्णय लिया है। यह बदलाव केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक वैचारिक पुनरुद्धार की दिशा में उठाया गया कदम है।
उच्च शिक्षा में बदलाव की ओर राजस्थान का नया कदम
राजस्थान सरकार में उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने इस निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि यह संशोधन राज्य की 33 वित्त पोषित विश्वविद्यालयों पर लागू होगा। उन्होंने विधानसभा में चर्चा के दौरान बताया कि यह परिवर्तन केवल एक नाम परिवर्तन नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य शिक्षा में भारतीय परंपराओं एवं मूल्यों की पुनर्स्थापना करना है।
डॉ. बैरवा ने कहा कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। इस निर्णय से विद्यार्थियों एवं शैक्षणिक संस्थानों के मानसिक दृष्टिकोण में बदलाव आएगा और इससे शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
गुरु-शिष्य परंपरा के पुनर्जागरण की दिशा में प्रयास
डॉ. बैरवा ने इस बात पर विशेष बल दिया कि भारत की शिक्षा व्यवस्था प्राचीन काल में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों के माध्यम से पूरे विश्व में आदर्श मानी जाती थी। इन संस्थानों में केवल अकादमिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि आध्यात्म, दर्शन, कला, विज्ञान और चरित्र निर्माण जैसे क्षेत्रों में भी विद्यार्थियों को शिक्षित किया जाता था।
उन्होंने कहा कि गुरु शब्द केवल ज्ञान देने वाला नहीं, बल्कि आत्मीयता, मार्गदर्शन और नैतिकता का प्रतीक भी है। इसी परंपरा को आधुनिक विश्वविद्यालयों में पुनः जीवित करने के उद्देश्य से ही कुलपति शब्द को बदलकर कुलगुरू किया जा रहा है।
प्रशासनिक शब्दावली से आध्यात्मिक शब्दावली की ओर
डॉ. बैरवा ने कहा कि वर्तमान में ‘कुलपति’ शब्द का प्रयोग अधिकतर प्रशासनिक और अधिकार आधारित संदर्भों में होता है, जो विश्वविद्यालय के एक मुख्य कार्यपालक अधिकारी की छवि प्रस्तुत करता है। वहीं ‘कुलगुरू’ शब्द न केवल विद्वत्ता का प्रतीक है, बल्कि इससे आध्यात्मिकता, आत्मीयता और मार्गदर्शन की भावना भी जुड़ी हुई है।
यह बदलाव केवल शब्दों का नहीं, बल्कि शिक्षा प्रणाली को Value-Based Education की ओर ले जाने का संकेत है। इससे गुरु की गरिमा, शैक्षणिक वातावरण की पवित्रता और विद्यार्थियों के साथ जुड़ाव को एक नया आयाम मिलेगा।
भारतीय शिक्षा की वैश्विक पुनःस्थापना का संकल्प
राज्य सरकार का यह निर्णय भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक मजबूत कदम माना जा रहा है। डॉ. बैरवा ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को विगत समय में विदेशी आक्रांताओं और पाश्चात्य शिक्षा नीति द्वारा विकृत किया गया था। इसके परिणामस्वरूप भारतीय गुरुकुल परंपरा और ज्ञान की मौलिकता पर प्रहार हुआ।
अब सरकार का उद्देश्य है कि शिक्षा को पुनः भारतीयता, आत्मनिर्भरता, नैतिकता और समाजसेवा जैसे मूल्यों के साथ जोड़ा जाए, ताकि विद्यार्थी केवल नौकरी की योग्यता नहीं, बल्कि एक संपूर्ण नागरिक बनकर समाज को दिशा दे सकें।
नई शिक्षा नीति और राज्य सरकार की प्रतिबद्धता
डॉ. बैरवा ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई भारतीय शिक्षा नीति 2020 (New Education Policy 2020) इस दिशा में पहले ही मजबूत आधार प्रदान कर चुकी है। यह नीति समग्र विकास (Holistic Development), नवाचार (Innovation), और व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) को एकीकृत करने की दिशा में बनाई गई है।
राज्य सरकार का यह पदनाम परिवर्तन उसी नीति के अनुरूप है, जो शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम तक सीमित न रखकर जीवन निर्माण की प्रक्रिया बनाना चाहती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रदेश में लगातार कॉलेज शिक्षकों की भर्ती की जा रही है, ताकि उच्च शिक्षा का स्तर बेहतर हो।
शिक्षा में भाषा और मानसिकता का बदलाव
शब्दों का असर केवल भाषा तक नहीं होता, वह सोच और व्यवहार में भी परिवर्तन लाते हैं। कुलपति शब्द जहां केवल पद और अधिकार को दर्शाता है, वहीं कुलगुरू शब्द से विद्यार्थियों के मन में श्रद्धा, मार्गदर्शन और ज्ञान की भावना उत्पन्न होती है। यह मानसिक बदलाव शिक्षा के स्तर को भी प्रभावित करेगा।
राजस्थान सरकार का यह निर्णय शिक्षा को भारतीय सांस्कृतिक चेतना और मूल्यों से जोड़ने का एक सशक्त प्रयास है, जो आने वाले समय में शिक्षा व्यवस्था में दूरगामी सकारात्मक परिणाम देगा।