
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ (Reciprocal Tariff) नीति की घोषणा की है, जिसके तहत अब अमेरिका उन देशों से आने वाले उत्पादों पर भी शुल्क लगाएगा जो अमेरिकी सामान पर ज्यादा टैरिफ वसूलते हैं। इस नीति का उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत बनाना है। यह कदम अमेरिकी उद्योगों को सस्ते आयात से सुरक्षा प्रदान करेगा और घरेलू उत्पादन को नई गति देगा।
रेसिप्रोकल टैरिफ: क्या है इसका तात्पर्य?
रेसिप्रोकल टैरिफ यानी पारस्परिक आयात शुल्क की नीति के तहत यदि कोई देश अमेरिकी उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश से आने वाले उत्पादों पर उसी अनुपात में या उसके आसपास का शुल्क लगाएगा। हालांकि, यह पूर्ण रूप से समरूप नहीं है। उदाहरण के तौर पर, यदि भारत अमेरिका से आने वाले सामान पर 52% शुल्क लगाता है, तो अमेरिका ने भारत के उत्पादों पर 26% शुल्क लगाया है, जो उस शुल्क का लगभग आधा है।
किन-किन देशों पर लगे हैं नए अमेरिकी टैरिफ?
इस नई नीति के तहत अमेरिका ने कई प्रमुख देशों से आयात होने वाले उत्पादों पर भारी आयात शुल्क लागू किया है। इसमें चीन पर 34%, भारत पर 26%, यूरोपीय संघ पर 20%, जापान पर 24% और वियतनाम पर 46% का टैरिफ शामिल है। दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, ताइवान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों पर भी 25% से अधिक के शुल्क लगाए गए हैं। ये टैरिफ 5 अप्रैल 2025 से प्रभावी होंगे और पूरे अमेरिका में लागू रहेंगे।
अमेरिका का उद्देश्य: घरेलू उद्योग को पुनर्जीवित करना
इन आयात शुल्कों के पीछे अमेरिकी सरकार का सीधा उद्देश्य है – डोमेस्टिक इंडस्ट्री को फिर से प्रतिस्पर्धात्मक बनाना और अमेरिका को एक उत्पादन केंद्र के रूप में विकसित करना। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि सस्ते आयात ने अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को कमजोर किया है और कई उद्योगों को बंद होने की कगार पर ला दिया है। मेक इन अमेरिका पहल के अंतर्गत यह नीति एक और बड़ा कदम मानी जा रही है।
वैश्विक व्यापार पर क्या पड़ेगा असर?
इस कदम के वैश्विक व्यापार पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे ग्लोबल सप्लाई चेन में व्यवधान आ सकता है। इससे अमेरिकी व्यापार भागीदारों के साथ तनाव भी बढ़ सकता है और संभावित रूप से ट्रेड वॉर (Trade War) जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। खासकर चीन और यूरोपीय संघ जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों से रिश्तों में खटास आने की संभावना है।
भारत के लिए क्या हैं संभावित प्रभाव?
भारत के संदर्भ में अमेरिका द्वारा लगाया गया 26% टैरिफ विशेष रूप से कुछ अहम क्षेत्रों पर असर डाल सकता है। इनमें ऑटोमोबाइल, ज्वेलरी, टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। ये क्षेत्र भारतीय निर्यात के बड़े स्रोत हैं और अमेरिका इनका एक प्रमुख बाजार रहा है। ऐसे में नए टैरिफ भारतीय निर्यातकों के लिए चिंता का कारण बन सकते हैं। अनुमान है कि इससे भारत का अमेरिकी बाजार में निर्यात 2 से 7 अरब डॉलर तक कम हो सकता है।
अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा असर
जहां एक ओर यह नीति अमेरिकी उत्पादन को बल दे सकती है, वहीं इससे अमेरिकी कंपनियों की इनपुट कॉस्ट बढ़ने की भी आशंका है। कई अमेरिकी कंपनियां जिनका कच्चा माल या कंपोनेंट्स इन देशों से आता है, वे अब बढ़ी हुई लागत का सामना करेंगी। इसके अलावा, आम अमेरिकी उपभोक्ता के लिए भी विदेशी सामान महंगा हो सकता है, जिससे मंहगाई (Inflation) बढ़ने का खतरा है।
आगे क्या?
दुनिया भर की सरकारें और व्यापारिक संगठन अब अमेरिका की इस नीति पर प्रतिक्रिया देने की तैयारी कर रहे हैं। कुछ देशों द्वारा रिटैलियेटरी टैरिफ्स लगाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा होता है, तो यह पूरी दुनिया को एक बार फिर से व्यापार युद्ध की ओर धकेल सकता है, जैसा कि 2018 में अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर के दौरान देखा गया था।