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पिता की संपत्ति पर बेटे का हक खत्म? सुप्रीम कोर्ट ने दिया चौंकाने वाला फैसला – जानिए पूरा मामला

क्या अब बेटे को पिता की कमाई पर नहीं मिलेगा एक पैसा भी? सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले ने बदल दिया पारिवारिक संपत्ति का नियम! जानें किस हालात में बेटा रह जाएगा पूरी तरह खाली हाथ पढ़िए पूरी कानूनी सच्चाई।

By Saloni uniyal
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पिता की संपत्ति पर बेटे का हक खत्म? सुप्रीम कोर्ट ने दिया चौंकाने वाला फैसला – जानिए पूरा मामला
पिता की संपत्ति पर बेटे का हक खत्म? सुप्रीम कोर्ट ने दिया चौंकाने वाला फैसला – जानिए पूरा मामला

Supreme Court ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि बेटे को अपने पिता की स्व-अर्जित संपत्ति (Self Earned Property) पर कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। यह मुद्दा भारतीय परिवारों में लंबे समय से विवाद का कारण बना हुआ है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) की स्पष्टता के बाद इस विषय में भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं बची है।

संपत्ति के प्रकार: स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति का अंतर

भारतीय कानून के अनुसार संपत्ति को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है — स्व-अर्जित संपत्ति (Self Earned Property) और पैतृक संपत्ति (Ancestral Property)स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत, आय, नौकरी या व्यापार के माध्यम से खुद कमाया हो। यह संपत्ति पूरी तरह से उसी व्यक्ति की मानी जाती है जिसने इसे अर्जित किया हो। इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति चाहे तो इसे किसी को भी दे सकता है — चाहे बेटा हो, बेटी हो, पत्नी या कोई बाहरी व्यक्ति।

वहीं दूसरी ओर, पैतृक संपत्ति वह होती है जो पीढ़ियों से चली आ रही हो, यानी जो संपत्ति पिता को उनके पिता से, और उन्हें उनके पूर्वजों से मिली हो। ऐसी संपत्ति में सभी उत्तराधिकारी — बेटे, बेटियां, और अन्य कानूनी वारिस — जन्म से ही समान रूप से हकदार होते हैं। इस प्रकार की संपत्ति को न तो एक अकेला व्यक्ति बेच सकता है और न ही उसका पूरा मालिक हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: जब बेटा नहीं बन सकता संपत्ति का वारिस

Supreme Court ने अपने हालिया निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि अगर कोई संपत्ति स्व-अर्जित है, तो बेटा उसमें जबरन किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं जता सकता। यह नियम सिर्फ अविवाहित बेटों पर ही नहीं, बल्कि विवाहित बेटों पर भी समान रूप से लागू होता है। यदि माता-पिता अपनी संपत्ति में से कुछ हिस्सा अपने बेटे को देना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए एक विधिवत वसीयत (Will) तैयार करनी होगी। लेकिन अगर वे ऐसा नहीं करना चाहते, तो बेटा कोई कानूनी दावा नहीं कर सकता।

सुप्रीम कोर्ट का केस उदाहरण: अंगदी चंद्रन्ना बनाम शंकर

इस संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला अंगदी चंद्रन्ना बनाम शंकर एवं अन्य (Civil Appeal No. 5401/2025) के मामले में सामने आया। इस केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि स्व-अर्जित संपत्ति को अपने आप संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसका मालिक स्पष्ट रूप से उसे परिवार के नाम न कर दे। यह फैसला संपत्ति के मामलों में स्पष्टता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

मिताक्षरा कानून की भूमिका और उसकी व्याख्या

भारत में मिताक्षरा कानून (Mitakshara Law) हिंदू संपत्ति कानून का एक प्रमुख हिस्सा है। इस कानून के अनुसार पैतृक संपत्ति में बेटे को जन्म से ही अधिकार प्राप्त होता है। लेकिन यह नियम स्व-अर्जित संपत्ति पर लागू नहीं होता। इस प्रणाली के अनुसार, पिता अपनी मेहनत से कमाई गई संपत्ति के एकमात्र मालिक होते हैं और वह किसे क्या दें, यह निर्णय पूरी तरह से उन्हीं का होता है। इस सिद्धांत को हालिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने फिर से पुष्ट कर दिया है।

वसीयत (Will) का महत्व

अगर कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का वितरण एक निश्चित तरीके से करना चाहता है, तो उसे इसके लिए एक वैध वसीयत (Property Will) बनानी चाहिए। वसीयत न होने की स्थिति में संपत्ति का बंटवारा Hindu Succession Act, 1956 के अनुसार किया जाएगा। यह कानून स्पष्ट करता है कि अगर संपत्ति स्व-अर्जित है और वसीयत मौजूद नहीं है, तो उसे पहले पत्नी, फिर बच्चों, और फिर अन्य रिश्तेदारों में बांटा जाएगा, लेकिन यह स्वाभाविक उत्तराधिकार है, न कि जन्मसिद्ध अधिकार।

संपत्ति विवाद से बचाव: परिवारों के लिए कानूनी सलाह

आज के समय में संपत्ति से जुड़ा विवाद आम बात है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह तो स्पष्ट हो गया है कि बेटों को स्व-अर्जित संपत्ति पर कोई जन्म से अधिकार नहीं है, लेकिन इसके बावजूद कई बार जानकारी के अभाव में लोग कोर्ट तक पहुंच जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि परिवारों में पारदर्शिता और स्पष्टता के साथ संवाद हो और संपत्ति का प्रबंधन कानून के अनुरूप किया जाए। इससे न सिर्फ विवादों से बचा जा सकता है बल्कि पारिवारिक संबंधों में भी मिठास बनी रहती है।

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