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SC का चौंकाने वाला फैसला! भूमि अधिग्रहण पर पलटा दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश, अब नहीं होगी प्राइवेट डील से जमीन वापसी

भूमि अधिग्रहण विवाद में Supreme Court ने दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला किया रद्द, कहा Public Projects में प्राइवेट डील से नहीं रुक सकता काम, जानिए नरेला-बवाना रोड की पूरी कहानी और फैसले का भविष्य पर असर।

By Saloni uniyal
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SC का चौंकाने वाला फैसला! भूमि अधिग्रहण पर पलटा दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश, अब नहीं होगी प्राइवेट डील से जमीन वापसी
भूमि अधिग्रहण पर पलटा दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश, अब नहीं होगी प्राइवेट डील से जमीन वापसी

भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक चौंकाने वाला निर्णय सुनाया है। Supreme Court ने Delhi High Court के फैसले को पलटते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण के तुरंत बाद किसी भी प्रकार की प्राइवेट डील करके अधिग्रहण को रद्द नहीं किया जा सकता। इस निर्णय से ना केवल सरकार को भूमि अधिग्रहण में सहूलियत मिलेगी, बल्कि थर्ड पार्टी राइट्स के नाम पर होने वाले समझौतों और फ्रॉड पर भी लगाम लग सकेगी।

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच का निर्णय

यह फैसला मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यदि सरकार ने सार्वजनिक हित के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए भूमि अधिग्रहित की है, तो उसके तुरंत बाद किसी निजी व्यक्ति के साथ समझौता कर अधिग्रहण को निष्क्रिय करना कानून का उल्लंघन होगा।

बेंच ने कहा कि इस प्रकार की प्राइवेट डील उन लोगों को बढ़ावा देगी जो धोखाधड़ी (Fraud) करने की मंशा रखते हैं। कोर्ट ने 1988 में हुए एक विवादित समझौते को गैरकानूनी करार देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य सिर्फ एक महिला, भगवान देवी, को अधिग्रहित भूमि का अहम हिस्सा वापस देना था ताकि पूरा अधिग्रहण विफल हो जाए।

नरेला-बवाना रोड का मामला और विवाद का इतिहास

यह मामला दिल्ली के नरेला-बवाना रोड से जुड़ा है, जहां अनाज मंडी के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था। वर्ष 1963 में इस अधिग्रहण के लिए अधिसूचना (Notification) जारी की गई थी और 1986 में मुआवजे की राशि भी जारी कर दी गई।

इसी दौरान एक महिला, भगवान देवी, ने भूमि के एक हिस्से पर दावा कर दिया। Agricultural Marketing Board के चेयरमैन ने इस पर एक निजी समझौता करने की कोशिश की। उन्होंने आधी भूमि को वापस करने और बाकी हिस्से का मुआवजा देने का निर्णय लिया।

लेकिन चेयरमैन के रिटायर होने के बाद इस समझौते को लेकर बोर्ड में विवाद उत्पन्न हो गया और मामला दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए भूमि वापस करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और कानूनी व्याख्या

Supreme Court ने हाई कोर्ट के इस फैसले को खारिज करते हुए यह कहा कि किसी भी सार्वजनिक परियोजना—जैसे कि हाइवे निर्माण, अनाज मंडी या अन्य सरकारी योजना—के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण को प्राइवेट डील के माध्यम से विफल नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने यह भी कहा कि थर्ड पार्टी के अधिकारों (Third Party Rights) के नाम पर अधिग्रहण के बाद जमीन लौटाना ना केवल गैरकानूनी है, बल्कि इससे जनता के हितों को भी नुकसान पहुंचता है। इससे भविष्य में सरकारी योजनाओं को सुचारु रूप से लागू करने में मुश्किलें आ सकती हैं।

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सरकार को मिल सकती है राहत

इस फैसले से सरकार को सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में बड़ी राहत मिल सकती है। अक्सर देखा गया है कि Highways, Renewable Energy Projects, औद्योगिक कॉरिडोर और स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं में भूमि अधिग्रहण के बाद थर्ड पार्टी क्लेम के कारण देरी होती है या प्रोजेक्ट ही अटक जाते हैं।

Supreme Court के इस सख्त रुख के बाद अब कोई भी सरकारी संस्था बिना कानूनी प्रक्रिया के तहत अधिग्रहित जमीन को वापस नहीं कर पाएगी, चाहे किसी थर्ड पार्टी से कोई डील क्यों न की गई हो।

फ्रॉड रोकने की दिशा में बड़ा कदम

Supreme Court ने स्पष्ट किया कि इस तरह की निजी डील्स न केवल कानून का उल्लंघन हैं, बल्कि वे उन लोगों को भी मौका देती हैं जो सरकार की योजनाओं को विफल करने की नीयत से झूठे दावे करते हैं। कोर्ट का मानना है कि यदि इस पर सख्ती नहीं की गई तो ऐसे फ्रॉड की घटनाएं बढ़ेंगी और इससे जनहित के कामों में रुकावट आएगी।

कोर्ट ने 1988 के उस समझौते को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें केवल भगवान देवी को लाभ पहुंचाने के लिए अधिग्रहण को विफल करने का प्रयास किया गया था। यह न केवल गलत था बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के साथ धोखा भी था।

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