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‘तहसीलदार बनो वरना जेल जाओ!’ गरीबों के घर तोड़ने वाले अफसर को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

गरीबों के आशियाने उजाड़ने वाले अफसर को सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई कड़ी फटकार। न्याय की कुर्सी से आया ऐसा फैसला जिसने पूरे सिस्टम को झकझोर दिया। कोर्ट का दो टूक संदेश अफसरशाही नहीं, इंसानियत जरूरी है। जानिए क्या है पूरा मामला, किस अफसर पर गिरी गाज और अब आगे क्या होगा?

By Saloni uniyal
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'तहसीलदार बनो वरना जेल जाओ!' गरीबों के घर तोड़ने वाले अफसर को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
‘तहसीलदार बनो वरना जेल जाओ!’ गरीबों के घर तोड़ने वाले अफसर को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

आंध्र प्रदेश के एक डिप्टी कलेक्टर को सुप्रीम कोर्ट से कड़ी फटकार का सामना करना पड़ा है। मामला Supreme Court on Andhra Pradesh Collector से जुड़ा है, जिसमें शीर्ष अदालत ने डिप्टी कलेक्टर टाटा मोहन राव से दो टूक शब्दों में कहा, “या तो तहसीलदार बन जाओ या जेल जाने के लिए तैयार हो जाओ।” यह टिप्पणी उस समय आई जब यह स्पष्ट हुआ कि अधिकारी ने हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश की अवहेलना करते हुए गरीबों के घर गिरवा दिए थे।

2014 में गरीबों के घर गिरवाने की कार्रवाई बनी विवाद का कारण

पूरा मामला 8 जनवरी 2014 का है, जब टाटा मोहन राव, उस समय गुंटूर जिले में तहसीलदार के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने 80 से ज्यादा पुलिस कर्मियों के साथ एक इलाके में जाकर गरीबों के मकानों को गिरवा दिया। जबकि इन लोगों को पहले ही आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट से अंतरिम राहत मिल चुकी थी। कोर्ट ने उस आदेश के बावजूद की गई कार्रवाई को अदालत की खुली अवमानना माना।

हाई कोर्ट ने अधिकारी को दो महीने की जेल की सजा सुनाई थी। इस आदेश के खिलाफ राव ने Supreme Court में याचिका दाखिल की थी, जिसे अब शीर्ष अदालत ने गंभीरता से लेते हुए सुनवाई की।

सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी कलेक्टर को दिया डिमोशन का विकल्प

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अधिकारी से पूछा कि उसकी प्रारंभिक नियुक्ति किस पद पर हुई थी। कोर्ट को बताया गया कि टाटा मोहन राव की शुरुआत नायब तहसीलदार के पद से हुई थी और दो प्रमोशन के बाद अब वह डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।

इस पर कोर्ट ने सुझाव दिया कि अगर वह नायब तहसीलदार के पद पर वापस जाने को तैयार हों, तो जेल की सजा को रद्द किया जा सकता है। कोर्ट ने इस प्रस्ताव को इस आधार पर पेश किया कि अधिकारी को जेल भेजने से उसके परिवार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

टाटा राव का इनकार, कोर्ट का गुस्सा

6 मई 2025 को जब टाटा मोहन राव खुद कोर्ट में पेश हुए, तो उन्होंने निचले पद पर वापस जाने से इनकार कर दिया। इस पर सुप्रीम कोर्ट का रुख और सख्त हो गया। जस्टिस गवई ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर आप अड़े हुए हैं, तो जेल जाने को तैयार रहिए। आपकी नौकरी जाएगी और हम ऐसी सख्त टिप्पणी करेंगे कि भविष्य में कोई नौकरी नहीं देगा।”

जब अधिकारी ने अपने परिवार की दुहाई दी, तो कोर्ट ने कहा, “जब आप 80 पुलिस वालों को लेकर गरीबों के घर तोड़ने गए थे, तब उन्होंने भी अपने बच्चों की दुहाई दी थी।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट की अवमानना को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

सरकार से नजदीकी पर भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी अधिकारी को सरकार से करीबी के चलते यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि उसे कुछ नहीं होगा। कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे उसकी राजनीतिक पकड़ कितनी भी मजबूत क्यों न हो।

हालांकि, वरिष्ठ वकील के अनुरोध पर कोर्ट ने फिलहाल टाटा मोहन राव को जेल भेजने का आदेश टाल दिया है और अगली सुनवाई की तारीख 9 मई 2025 तय की है। कोर्ट ने एक बार फिर साफ किया कि अधिकारी के पास केवल दो ही विकल्प हैं – या तो वह खुद को डिमोट कर ले, या फिर जेल जाने के लिए तैयार रहे।

केस में अगला मोड़: क्या अधिकारी झुकेगा या सजा काटेगा?

अब सभी की नजरें 9 मई को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं। क्या टाटा मोहन राव कोर्ट के प्रस्ताव को मानेंगे और खुद को डिमोट करेंगे? या फिर वह अपनी जिद पर अड़े रहेंगे और जेल जाएंगे? सुप्रीम कोर्ट का यह रुख भविष्य में ऐसे अन्य मामलों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है, खासकर जब बात न्यायालय के आदेश की अवहेलना की हो।

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