
देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि केवल ड्राइविंग लाइसेंस न होना ही किसी व्यक्ति को सड़क दुर्घटना (Motor Accident) में लापरवाही (Negligence) का दोषी नहीं बनाता। इस फैसले से देशभर में ऐसे पीड़ितों को राहत मिलेगी जो किसी तकनीकी कारणवश ड्राइविंग लाइसेंस (Driving Licence) नहीं दिखा पाए और जिनके मुआवज़े पर सवाल खड़े किए गए।
यह मामला विशेष रूप से उस स्थिति को लेकर था जिसमें एक Learner’s Licence धारी वाहन चालक की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और बीमा कंपनी ने मुआवज़ा देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में मुआवज़ा तय करते हुए कहा कि लर्नर लाइसेंस होना भी एक वैध लाइसेंस की श्रेणी में आता है और केवल पूर्ण ड्राइविंग लाइसेंस न होना, किसी की लापरवाही सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
Learner’s Licence और मोटर व्हीकल एक्ट की व्याख्या
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि भारत का मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicles Act) यह नहीं कहता कि लर्नर लाइसेंस धारी व्यक्ति वाहन नहीं चला सकता। अधिनियम की धारा 3 और 4 में इस बात का उल्लेख है कि लर्नर लाइसेंस भी एक मान्य दस्तावेज़ है, बशर्ते कि वाहन चालक आवश्यक शर्तों का पालन कर रहा हो।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ड्राइविंग करते समय व्यक्ति ने सभी वैधानिक प्रावधानों का पालन किया है या नहीं, यह देखना ज़्यादा ज़रूरी है, बजाय इसके कि उसके पास परिपूर्ण ड्राइविंग लाइसेंस है या नहीं। इस तर्क के आधार पर कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि यदि कोई व्यक्ति ट्रैफिक नियमों का पालन करते हुए वाहन चला रहा था और दुर्घटना उसकी गलती से नहीं हुई, तो सिर्फ लाइसेंस न होने पर मुआवज़ा रोक देना न्यायसंगत नहीं है।
बीमा कंपनियों की आपत्ति और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
इस मामले में बीमा कंपनी ने दावा किया था कि मुआवज़ा देने का दायित्व उस पर नहीं बनता क्योंकि मृतक के पास पूर्ण ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि यदि बीमित व्यक्ति दुर्घटना के समय वाहन चलाने के लिए कानूनी रूप से अयोग्य नहीं था, तो मुआवज़े से इनकार करना गलत है।
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि Motor Accident Claim Tribunal (MACT) के फैसले को हाईकोर्ट द्वारा पलट देना अनुचित था, क्योंकि ट्रिब्यूनल ने सभी तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष निर्णय लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया और ट्रिब्यूनल के आदेश को बहाल करते हुए मृतक के परिजनों को पूरी मुआवज़े की राशि देने का निर्देश दिया।
पीड़ित परिवार को मिला न्याय और मुआवज़े की गणना
इस मामले में मृतक की उम्र 26 वर्ष थी और वह एक प्राइवेट जॉब में कार्यरत था। Motor Accident Claims Tribunal ने उसके मासिक वेतन को आधार बनाकर कुल ₹33,38,000 का मुआवज़ा तय किया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस मुआवज़े को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मृतक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए ट्रिब्यूनल का निर्णय बहाल कर दिया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो उसके परिवार को “Just Compensation” का अधिकार है, और तकनीकी आधारों पर इसे नकारना संवैधानिक न्याय के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
सड़क सुरक्षा और न्याय प्रणाली पर इस फैसले का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल बीमा कंपनियों के लिए एक स्पष्ट संकेत है, बल्कि यह उन हजारों पीड़ित परिवारों के लिए भी उम्मीद की किरण है जिन्हें ड्राइविंग लाइसेंस जैसे तकनीकी कारणों के आधार पर मुआवज़े से वंचित किया जाता है।
यह फैसला न्यायिक प्रणाली में पीड़ितों के अधिकारों को सुदृढ़ करता है और यह सुनिश्चित करता है कि केवल तकनीकी दोषों के आधार पर किसी को न्याय से वंचित न किया जाए। यह निर्णय सड़क सुरक्षा, बीमा दायित्व और मुआवज़ा प्रणाली से संबंधित कानूनों की व्याख्या को एक नई दिशा देता है।