
देश में करोड़ों गरीब परिवारों को मुफ्त या सस्ती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सरकार की योजना “राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम” (NFSA) के तहत राशन कार्ड धारकों को हर महीने गेहूं, चावल और दालें मिलती हैं। लेकिन हाल ही में सामने आए एक चौंकाने वाले मामले ने इस प्रणाली की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ई-केवाईसी (e-KYC) के नाम पर राशन डीलरों द्वारा की गई धोखाधड़ी ने यह साफ कर दिया है कि तकनीक का गलत इस्तेमाल किस हद तक गरीबों के हक को छीन सकता है।
यह भी देखें: 10 सरकारी बैंक दे रहे हैं सस्ता होम लोन, जानिए ₹30 लाख के लोन पर कितनी होगी EMI
ई-केवाईसी प्रक्रिया बनी धोखाधड़ी का जरिया
सरकार ने राशन वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने और फर्जी कार्डधारकों को हटाने के उद्देश्य से ई-केवाईसी प्रक्रिया अनिवार्य की थी। इस प्रक्रिया में लाभार्थियों को अपने आधार कार्ड को राशन कार्ड से लिंक कराना होता है। लेकिन कुछ राज्यों में राशन डीलरों ने इसी प्रक्रिया को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया।
ई-केवाईसी के दौरान लाभार्थियों की जानकारी और बायोमेट्रिक डेटा का गलत इस्तेमाल करते हुए डीलरों ने राशन उनके नाम पर उठाया, लेकिन वास्तविक लाभार्थियों को इसकी जानकारी तक नहीं दी गई। कई लाभार्थियों को तब पता चला जब वे राशन लेने पहुंचे और उन्हें बताया गया कि उनका कोटा पहले ही उठाया जा चुका है।
कैसे हुआ राशन घोटाला?
यह घोटाला मुख्य रूप से ग्रामीण और अशिक्षित क्षेत्रों में देखा गया जहां लोगों को ई-केवाईसी की प्रक्रिया और इसके महत्व की पूरी जानकारी नहीं थी। डीलरों ने या तो खुद ई-केवाईसी की प्रक्रिया पूरी कर दी या फिर लोगों से अंगूठा लगवाकर उन्हें बताया कि उनका केवाईसी हो गया है, जबकि उस दौरान उनके नाम पर राशन भी उठा लिया गया।
यह भी देखें: भारत ने बांग्लादेश से कुछ सामानों के इंपोर्ट पर लगाया बैन, जानिए सरकार के इस फैसले की वजह
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में ऐसी शिकायतें सामने आई हैं जहां लाभार्थियों के नाम पर महीनों तक राशन उठाया गया लेकिन उन्हें एक दाना तक नहीं मिला।
राशन डीलरों की भूमिका पर सवाल
डीलर जिनका काम केवल राशन का वितरण करना है, वे तकनीकी रूप से ई-केवाईसी जैसी प्रक्रिया में हस्तक्षेप कैसे कर सकते हैं? यह सवाल प्रशासन और खाद्य आपूर्ति विभाग की कार्यशैली पर भी उंगली उठाता है। इस पूरे खेल में कहीं न कहीं सिस्टम की कमजोरियों और निगरानी की कमी का भी बड़ा हाथ है।
लाभार्थियों को नहीं दी गई ई-केवाईसी की रसीद
एक अन्य चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि ई-केवाईसी पूरी होने के बाद लाभार्थियों को उसकी रसीद या कोई प्रमाण नहीं दिया गया। इससे वे अपने राशन की स्थिति को खुद जांच नहीं सके। जब कोई शिकायत करने गया तो उन्हें या तो टाल दिया गया या फिर कहा गया कि रिकॉर्ड में सब कुछ ठीक है।
सरकार की कार्रवाई और समाधान
इस मामले के उजागर होने के बाद कुछ राज्यों में जांच के आदेश दिए गए हैं। कई राशन डीलरों को निलंबित किया गया है और कुछ के खिलाफ आपराधिक मुकदमे भी दर्ज किए गए हैं। सरकार ने यह भी निर्देश दिए हैं कि अब लाभार्थियों को ई-केवाईसी की रसीद दी जाएगी और हर वितरण के बाद SMS के जरिए सूचना भी भेजी जाएगी।
यह भी देखें: आयुष्मान भारत योजना में बड़ा बदलाव, माता-पिता के कार्ड पर अब इतने साल तक के बच्चों को ही मिलेगा इलाज
इसके अलावा पोर्टेबिलिटी सिस्टम को और मजबूत किया जा रहा है ताकि लाभार्थी किसी भी राशन दुकान से अपना कोटा प्राप्त कर सकें और डीलर की मनमानी पर निर्भर न रहें।
तकनीक से पारदर्शिता की उम्मीद, लेकिन निगरानी जरूरी
Digital India अभियान के तहत राशन प्रणाली में तकनीकी बदलावों की शुरुआत एक बेहतर कदम है, लेकिन जब तक इन बदलावों पर सही तरीके से निगरानी और पारदर्शिता नहीं लाई जाएगी, तब तक तकनीक का फायदा डीलरों को ही मिलता रहेगा, न कि लाभार्थियों को। सरकार को ई-केवाईसी, OTP आधारित वितरण और मोबाइल ट्रैकिंग जैसे उपायों को व्यापक स्तर पर लागू करने की जरूरत है।