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क्या पाकिस्तान टूटने वाला है? पाकिस्तानी मौलाना ने किया चौंकाने वाला दावा 1971 जैसी तबाही तय!

क्या पाकिस्तान अपने ही अंदरूनी संघर्षों से टूट जाएगा? बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बढ़ती हिंसा के बीच उठे विभाजन के खतरे!

By Saloni uniyal
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पाकिस्तान में इस समय राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ गहराती जा रही हैं। इस्लामिक धर्मगुरु और सांसद मौलाना फजलुर रहमान ने हाल ही में एक गंभीर चेतावनी देते हुए कहा है कि बलूचिस्तान के पाँच से सात जिले स्वतंत्रता की घोषणा कर सकते हैं। उन्होंने 1971 की स्थिति की याद दिलाते हुए आशंका व्यक्त की कि अगर हालात नहीं संभले तो पाकिस्तान को एक और विभाजन का सामना करना पड़ सकता है।

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बलूचिस्तान की आजादी का खतरा

मौलाना फजलुर रहमान ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में खुलासा किया कि यदि बलूचिस्तान के जिले अलग होने का फैसला लेते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे सकता है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब बलूचिस्तान में अलगाववादी गतिविधियाँ और हिंसा लगातार बढ़ रही हैं। बलूचिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान की केंद्र सरकार से नाराज रहा है और वहाँ स्वतंत्रता की माँग समय-समय पर उठती रही है।

सेना और सरकार के बीच सत्ता संघर्ष

फजलुर रहमान ने पाकिस्तान की सेना पर भी निशाना साधते हुए कहा कि कुछ ताकतवर लोग बंद कमरों में फैसले लेते हैं, जिन्हें सरकार को मानना पड़ता है। यह बयान देश में सैन्य और सिविल सत्ता के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है। पाकिस्तान में लंबे समय से यह धारणा रही है कि असली शक्ति सेना के हाथों में होती है, और मौजूदा हालात इस बात की पुष्टि करते हैं कि सिविल सरकार की पकड़ कमजोर हो चुकी है।

उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बढ़ती हिंसा

इस बयान के साथ ही पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र कुर्रम में हिंसा एक बार फिर भड़क उठी है। यह क्षेत्र दशकों से शिया-सुन्नी संघर्ष का केंद्र रहा है और हाल ही में वहाँ की स्थिति और भी बदतर हो गई है। नवंबर में शुरू हुई नई लड़ाई में अब तक 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अफगानिस्तान की सीमा से सटे इस पहाड़ी इलाके में भारी हथियारों से लैस लड़ाकों की झड़पों के चलते वहाँ का जीवन लगभग ठप हो चुका है। कई बार संघर्षविराम की कोशिशें की गईं, लेकिन कोई भी समाधान नहीं निकल सका।

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पाकिस्तान सरकार का नियंत्रण खत्म?

मौलाना फजलुर रहमान ने इससे पहले भी चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान सरकार ने खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में अपना नियंत्रण पूरी तरह खो दिया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बीते दो दशकों में इन इलाकों से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। उन्होंने सभी संबंधित पक्षों से समस्या के समाधान की अपील की और कहा कि यदि समय रहते इस संकट का हल नहीं निकला, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

प्रधानमंत्री पर कटाक्ष

पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में बोलते हुए फजलुर रहमान ने प्रधानमंत्री पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री से पूछा जाए कि बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा या कबायली इलाकों में क्या चल रहा है, तो शायद वे यही कहेंगे कि उन्हें जानकारी नहीं है। बिना सेना का नाम लिए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में कोई भी सिविल सरकार का वास्तविक नियंत्रण नहीं है। यहाँ एस्टैब्लिशमेंट बंद कमरों में फैसले करती है, और सरकार को उन पर महज हस्ताक्षर करने पड़ते हैं।

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क्या पाकिस्तान फिर से विभाजित होगा?

इन हालातों को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान फिर से 1971 जैसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है? यदि सरकार और सेना के बीच यही सत्ता संघर्ष जारी रहा, और बलूचिस्तान में अलगाववादी गतिविधियाँ तेज़ हुईं, तो पाकिस्तान को गंभीर संकटों का सामना करना पड़ सकता है। मौजूदा सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द राजनीतिक और सैन्य समाधान निकाले, अन्यथा देश को एक और विभाजन के कगार पर खड़ा होना पड़ सकता है।

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