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हवा vs ज़मीन – न्यूक्लियर बम कहां फटने पर होती है सबसे ज्यादा तबाही? एक्सपर्ट्स ने बताया सच

क्या एयरबर्स्ट ज्यादा खतरनाक है या ग्राउंडबर्स्ट से मचती है असली बर्बादी? हिरोशिमा से लेकर आधुनिक युद्ध तक, जानिए वो खौफनाक सच जो आपकी सोच बदल देगा – पढ़िए पूरी रिपोर्ट

By Saloni uniyal
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हवा vs ज़मीन – न्यूक्लियर बम कहां फटने पर होती है सबसे ज्यादा तबाही? एक्सपर्ट्स ने बताया सच
हवा vs ज़मीन – न्यूक्लियर बम कहां फटने पर होती है सबसे ज्यादा तबाही? एक्सपर्ट्स ने बताया सच

न्यूक्लियर बम (Nuclear Bomb) का नाम सुनते ही तबाही और बर्बादी की तस्वीरें आंखों के सामने आ जाती हैं। चाहे वह हिरोशिमा और नागासाकी पर हुआ हमला हो या आज के समय में परमाणु शक्ति संपन्न देशों की होड़—न्यूक्लियर हथियारों की ताकत को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है। लेकिन एक सवाल अक्सर उठता है कि अगर न्यूक्लियर बम हवा (Airburst) में फटे या ज़मीन (Groundburst) पर, तो कहां अधिक तबाही होती है?

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इस सवाल का जवाब देने के लिए सैन्य रणनीतिकार, वैज्ञानिक और रक्षा विशेषज्ञ कई वर्षों से शोध करते आ रहे हैं। हाल के अध्ययनों और सैन्य आंकड़ों के अनुसार, यह तबाही कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है जैसे बम की शक्ति, विस्फोट की ऊंचाई, वातावरण की स्थिति और जनसंख्या घनत्व।

एयरबर्स्ट (Airburst): तबाही की ऊंचाई से बढ़ती है मारक क्षमता

जब न्यूक्लियर बम हवा में, ज़मीन से कुछ सौ मीटर ऊपर फटता है, तो उसे एयरबर्स्ट कहा जाता है। इस प्रकार के विस्फोट को अधिकतम तबाही के लिए डिज़ाइन किया गया होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, एयरबर्स्ट में बम की ऊर्जा चारों दिशाओं में फैलती है, जिससे एक व्यापक क्षेत्र में झटका (Blast Wave) और थर्मल रेडिएशन का असर होता है।

हिरोशिमा पर गिराए गए बम ‘लिटिल बॉय’ का विस्फोट लगभग 600 मीटर की ऊंचाई पर हुआ था, जिससे लगभग 70,000 लोग तत्काल मारे गए और शहर का बड़ा हिस्सा खाक हो गया। यही रणनीति तब अपनाई जाती है जब लक्ष्य घनी आबादी वाला क्षेत्र होता है, क्योंकि इससे रेडिएशन का असर कम समय तक रहता है, लेकिन नुकसान बहुत अधिक होता है।

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ग्राउंडबर्स्ट (Groundburst): गहराई से उठती है तबाही की लहर

जब न्यूक्लियर बम ज़मीन पर या ज़मीन से बहुत कम ऊंचाई पर फटता है, तो उसे ग्राउंडबर्स्ट कहा जाता है। इसका उपयोग आमतौर पर बंकर, सैन्य बेस या गहरी ठोस संरचनाओं को नष्ट करने के लिए किया जाता है। हालांकि इससे भीषण झटका और रेडिएशन निकलता है, लेकिन इसका असर सीमित क्षेत्र में केंद्रित रहता है।

ग्राउंडबर्स्ट से निकलने वाला मलबा रेडियोएक्टिव तत्वों से भर जाता है, जो हवा में उड़कर फॉलआउट (Fallout) के रूप में दूर-दूर तक फैलता है। यह फॉलआउट कई हफ्तों तक जानलेवा हो सकता है और बड़े क्षेत्रों को बंजर बना देता है।

कौन सा ज्यादा खतरनाक?

विशेषज्ञों की राय में दोनों ही प्रकार के विस्फोट बेहद घातक हैं, लेकिन उनके प्रभाव का दायरा और स्वरूप अलग-अलग होता है। अगर लक्ष्य है जनसंख्या को अधिकतम प्रभावित करना और ढांचागत तबाही मचाना, तो एयरबर्स्ट अधिक प्रभावी होता है। वहीं, अगर सैन्य संरचनाओं को निशाना बनाना हो तो ग्राउंडबर्स्ट को प्राथमिकता दी जाती है।

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वायु में विस्फोट से सीधा संपर्क कम होता है, लेकिन थर्मल रेडिएशन और शॉकवेव से कई किलोमीटर के दायरे में इमारतें ढह सकती हैं। जबकि ज़मीन पर विस्फोट के कारण पैदा हुआ रेडियोएक्टिव फॉलआउट लंबे समय तक जानलेवा बना रहता है।

तकनीकी अंतर और रेडिएशन प्रभाव

एयरबर्स्ट में बम के विस्फोट से निकलने वाली ऊर्जा लगभग समान रूप से चारों ओर फैलती है, जिससे क्षति का क्षेत्र बड़ा हो जाता है। जबकि ग्राउंडबर्स्ट में ज़मीन एक अवरोधक का काम करती है, जिससे ऊर्जा ऊपर की बजाय ज़्यादा नीचे या पास के क्षेत्र में केंद्रित होती है।

रेडिएशन के प्रभाव की बात करें तो ग्राउंडबर्स्ट में अधिक रेडियोएक्टिव डस्ट बनता है, जिससे रेडिएशन का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। वहीं एयरबर्स्ट में रेडिएशन तुरंत फैलकर खत्म हो जाता है, जिससे फॉलआउट का असर सीमित होता है।

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रणनीतिक दृष्टिकोण: कौन-सा कब और क्यों?

सेना और रणनीतिकार इन दोनों प्रकार के विस्फोटों का इस्तेमाल मिशन की प्रकृति के आधार पर करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर दुश्मन की बंकर या न्यूक्लियर फैसिलिटी को तबाह करना हो, तो ग्राउंडबर्स्ट उपयुक्त होता है। वहीं, किसी शहर को पूरी तरह तबाह करना हो तो एयरबर्स्ट ज्यादा प्रभावी होता है। क्लिकबेट टाइटल और सबटाइटल 60 शब्दों में लिखें जिसे पढ़कर रीडर आगे पढ़ने के लिए प्रेरित हो

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