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10 साल बाद फिर लौटेगा NJAC! सुप्रीम कोर्ट ने किया था खारिज, अब सरकार की बड़ी तैयारी

जज के घर से कैश मिलने के बाद केंद्र फिर से जजों की नियुक्ति के लिए NJAC एक्ट लाने की तैयारी में है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक कहकर खारिज कर दिया था। क्या अब न्यायपालिका में पारदर्शिता आएगी या फिर शुरू होगी एक नई टकराव की कहानी? जानिए NJAC की पूरी हकीकत!

By Saloni uniyal
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10 साल बाद फिर लौटेगा NJAC! सुप्रीम कोर्ट ने किया था खारिज, अब सरकार की बड़ी तैयारी
10 साल बाद फिर लौटेगा NJAC! सुप्रीम कोर्ट ने किया था खारिज, अब सरकार की बड़ी तैयारी

देश की न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास से नकदी मिलने के बाद से केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव पर गंभीरता से विचार कर रही है। ऐसे में एक बार फिर चर्चा का केंद्र बना है National Judicial Appointments Commission (NJAC) एक्ट, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देकर खारिज कर दिया था।

2014 में आया था NJAC कानून, 2015 में हुआ था खारिज

NJAC एक्ट को 2014 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने संसद से पारित करवाया था। इसका उद्देश्य था कि जजों की नियुक्ति में केवल न्यायपालिका ही नहीं बल्कि कार्यपालिका और समाज के प्रतिष्ठित लोग भी शामिल हों। लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताते हुए रद्द कर दिया था। कोर्ट का मानना था कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

क्या है NJAC एक्ट?

National Judicial Appointments Commission (NJAC) एक 6 सदस्यीय समिति थी, जिसका गठन जजों की नियुक्ति और तबादलों के लिए किया गया था। इसमें शामिल थे:

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) – अध्यक्ष
  • सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जज
  • केंद्रीय कानून मंत्री
  • दो प्रतिष्ठित व्यक्ति, जिनमें से कम से कम एक SC/ST, OBC, अल्पसंख्यक या महिला वर्ग से होता

यह आयोग सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करता, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता। NJAC का उद्देश्य था कि न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता लाई जा सके और ‘जज खुद की नियुक्ति खुद करते हैं’ वाली आलोचना को रोका जा सके।

कॉलेजियम सिस्टम क्या है?

वर्तमान में भारत में कॉलेजियम सिस्टम लागू है, जो 1993 से प्रचलन में है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जज मिलकर जजों की नियुक्ति, ट्रांसफर और प्रमोशन की सिफारिश करते हैं। सरकार इन सिफारिशों को स्वीकार करती है या एक बार के लिए वापस भेज सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम दोबारा वही नाम भेजता है तो सरकार को उसे स्वीकार करना पड़ता है।

हालांकि इस सिस्टम की पारदर्शिता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। यह भी आरोप लगता है कि इसमें जवाबदेही का अभाव है और चयन प्रक्रिया में कोई बाहरी निगरानी नहीं है।

फिर से चर्चा में क्यों आया NJAC?

दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से नकदी मिलने के मामले ने न्यायपालिका की छवि पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसके बाद केंद्र सरकार एक बार फिर NJAC जैसे मॉडल को अपनाने पर विचार कर रही है। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में जेपी नड्डा और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बैठक की, जिसमें इस मुद्दे पर संकेत दिए गए कि सरकार जजों की नियुक्ति प्रणाली में बदलाव चाहती है।

विपक्ष का भी मिल सकता है साथ

इस मुद्दे पर सरकार को कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों का समर्थन मिलने की संभावना है। 21 मार्च को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इस मुद्दे को उठाया और न्यायपालिका में पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया। अगर NJAC एक्ट पर सहमति बनती है, तो सरकार इसके लिए All Party Meeting भी बुला सकती है।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला?

2015 में जब सुप्रीम कोर्ट ने NJAC एक्ट को खारिज किया था, तो उसने कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 50, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है, के खिलाफ है। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि कार्यपालिका की भूमिका से न्यायिक नियुक्तियों में निष्पक्षता पर खतरा मंडराता है।

भविष्य में क्या हो सकता है?

हालांकि अभी NJAC को दोबारा लाने की प्रक्रिया बहुत शुरुआती दौर में है, लेकिन लगातार मिल रहे राजनीतिक समर्थन और न्यायपालिका के सामने आ रही चुनौतियों को देखते हुए यह मुमकिन है कि सरकार जल्द ही इसे लेकर कोई बड़ा कदम उठाए। अगर NJAC जैसा कोई नया कानून लाया जाता है, तो इसके लिए एक बार फिर संवैधानिक समीक्षा की जरूरत पड़ेगी।

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