
भारत सरकार ने अचानक मसूर दाल के आयात पर 10% शुल्क लगाने का फैसला किया है, जिसमें 5% बेसिक कस्टम ड्यूटी और 5% एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट सेस (AIDC) शामिल है। इसके अलावा, पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात को मई 2024 के अंत तक तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। यह निर्णय घरेलू दाल उत्पादन को बढ़ावा देने और महंगाई को नियंत्रित रखने के उद्देश्य से लिया गया है। इस नई नीति के तहत, सरकार दालों के आयात और कीमतों पर नियंत्रण बनाए रखना चाहती है।
दालों के आयात पर सरकार की नई रणनीति
पिछले कुछ वर्षों में भारत दालों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर रहा है। साल 2024 में भारत ने कुल 67 लाख टन दालों का आयात किया, जिसमें से अकेले 30 लाख टन पीली मटर थी। पीली मटर की यह भारी मात्रा मुख्य रूप से घरेलू स्तर पर चने (चना) की कमी को पूरा करने के लिए आयात की गई थी।
दिसंबर 2023 में सरकार ने पीली मटर के आयात पर लगाए गए सभी शुल्कों को हटा दिया था, जिससे व्यापारियों को यह दाल बिना किसी अतिरिक्त लागत के आयात करने की अनुमति मिली। इस कदम का उद्देश्य घरेलू बाजार में दालों की उपलब्धता को बढ़ाना और कीमतों को स्थिर करना था। सरकार ने इस छूट को फरवरी 2024 तक बढ़ाया था और अब इसे मई 2024 के अंत तक और आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया है।
मसूर दाल के आयात पर 10% शुल्क क्यों लगाया गया?
मसूर दाल पर 10% आयात शुल्क लगाने का मुख्य कारण घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाना है। सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि भारतीय किसानों द्वारा उगाई जाने वाली दालों की मांग बढ़े और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो।
इसके अलावा, इस निर्णय के पीछे एक और बड़ा कारण यह है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर दालों की खरीद को बढ़ावा देना चाहती है। हाल ही में सरकार ने 15वें वित्त आयोग के तहत प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना को 2025-26 तक जारी रखने की मंजूरी दी है। इस योजना का उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने में मदद करना है।
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सरकार ने तुअर दाल की खरीद को दी मंजूरी
केंद्र सरकार ने खरीफ 2024-25 के दौरान मूल्य समर्थन योजना के तहत तुअर (अरहर) दाल की 13.22 लाख मीट्रिक टन की खरीद को मंजूरी दी है। यह खरीद नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (NAFED) और नेशनल कंज्यूमर्स कोऑपरेटिव फेडरेशन (NCCF) के माध्यम से की जाएगी।
तुअर दाल की यह खरीद नौ प्रमुख राज्यों—आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश—में की जाएगी। इस फैसले से किसानों को राहत मिलेगी और उन्हें उनकी फसल का उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
दालों के आयात और घरेलू उत्पादन पर असर
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उपभोक्ता है और यहां हर साल करीब 250-270 लाख टन दालों की जरूरत होती है। हालांकि, घरेलू उत्पादन इस मांग को पूरी तरह से पूरा नहीं कर पाता, जिससे देश को दालों के आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
हाल ही में मसूर दाल के आयात पर लगाए गए 10% टैक्स का असर यह होगा कि विदेशों से आयात की जाने वाली मसूर दाल महंगी हो जाएगी, जिससे घरेलू किसानों को अधिक लाभ मिलेगा। इससे दाल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और सरकार की आत्मनिर्भर भारत नीति को भी मजबूती मिलेगी।
दालों की कीमतों पर क्या होगा प्रभाव?
मसूर दाल पर लगने वाले 10% टैक्स से यह आशंका है कि आने वाले महीनों में मसूर दाल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, सरकार ने पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात की अवधि को बढ़ाकर दालों की कीमतों को स्थिर बनाए रखने की कोशिश की है।
सरकार का मानना है कि दालों के उचित दाम मिलने से किसान अधिक उत्पादन करेंगे और भविष्य में भारत को आयात पर कम निर्भर रहना पड़ेगा। इसके अलावा, MSP पर सरकारी खरीद बढ़ने से भी बाजार में संतुलन बना रहेगा और किसानों की आय में वृद्धि होगी।
क्या आगे और बदलाव हो सकते हैं?
सरकार समय-समय पर दालों के आयात और उत्पादन पर अपनी नीतियों की समीक्षा करती रहती है। यदि आने वाले महीनों में दालों की कीमतें अधिक बढ़ती हैं, तो सरकार आयात नीति में और बदलाव कर सकती है।
इसके अलावा, सरकार किसानों को दालों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए नई योजनाएं और सब्सिडी भी लागू कर सकती है। भारत में दाल उत्पादन को बढ़ाने के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए भी कदम उठाए जा सकते हैं।