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CTC में छुपा है Gratuity का रहस्य! जानिए आपकी सैलरी का कौन सा हिस्सा बनाता है आपका भविष्य सुरक्षित

आपकी हाई सैलरी का सच जानकर चौंक जाएंगे! जानिए कैसे ग्रेच्युटी CTC में शामिल होकर आपकी इन-हैंड सैलरी को करता है कम, और इसका पूरा कैलकुलेशन आपकी सेविंग्स पर क्या असर डालता है पढ़िए अब!

By Saloni uniyal
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CTC में छुपा है Gratuity का रहस्य! जानिए आपकी सैलरी का कौन सा हिस्सा बनाता है आपका भविष्य सुरक्षित
CTC में छुपा है Gratuity का रहस्य! जानिए आपकी सैलरी का कौन सा हिस्सा बनाता है आपका भविष्य सुरक्षित

जब भी कोई कर्मचारी किसी कंपनी से नौकरी का ऑफर प्राप्त करता है, तो सबसे पहले उसकी नजर उसके CTC यानी Cost to Company पर जाती है। CTC वह कुल राशि होती है जो कंपनी कर्मचारी पर सालाना खर्च करती है। इसमें बेसिक सैलरी से लेकर अलाउंसेज़, बोनस, ईपीएफ (EPF) और ग्रेच्युटी (Gratuity) तक सभी घटक शामिल होते हैं। हालांकि, बहुत से कर्मचारी यह नहीं समझ पाते कि ग्रेच्युटी क्या है और यह उनके सैलरी स्ट्रक्चर को कैसे प्रभावित करती है।

ग्रेच्युटी क्या होती है और कौन होता है इसके लिए पात्र

ग्रेच्युटी एक प्रकार का लॉन्ग-टर्म बेनिफिट है जो कंपनी अपने कर्मचारियों को दीर्घकालिक सेवा के लिए देती है। यह पेमेंट कर्मचारी की सेवा अवधि के आधार पर दी जाती है। भारत में ग्रेच्युटी पेमेंट Payment of Gratuity Act, 1972 के अंतर्गत दी जाती है। इसके तहत कोई भी कर्मचारी जो लगातार पांच साल या उससे अधिक समय तक एक ही कंपनी में काम करता है, वह ग्रेच्युटी के लिए पात्र होता है। हालांकि, मृत्यु या विकलांगता के मामलों में पांच साल की न्यूनतम सेवा की आवश्यकता नहीं होती।

CTC में ग्रेच्युटी कैसे होती है शामिल

जब कंपनियां CTC का ब्रेकअप देती हैं, तो उसमें ग्रेच्युटी को भी एक हिस्से के रूप में शामिल किया जाता है। यह आमतौर पर बेसिक सैलरी का 4.81% होता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी ₹50,000 प्रति माह है, तो वार्षिक ग्रेच्युटी योगदान ₹28,860 होगा। हालांकि, यह पैसा कर्मचारी के हाथ में नहीं आता, बल्कि इसे अलग से कंपनी जमा करती है और सेवा समाप्ति के समय भुगतान करती है।

ग्रेच्युटी की गणना कैसे होती है

ग्रेच्युटी की गणना का एक फॉर्मूला होता है जो कर्मचारी की अंतिम ड्रॉ बेसिक सैलरी और सेवा की अवधि पर आधारित होता है।

फॉर्मूला है:
ग्रेच्युटी = (15/26) × अंतिम ड्रॉ सैलरी × सेवा के वर्ष

उदाहरण के लिए, अगर कोई कर्मचारी 10 वर्षों तक काम करता है और उसकी अंतिम बेसिक सैलरी ₹30,000 प्रति माह है, तो उसकी ग्रेच्युटी होगी:
(15/26) × 30,000 × 10 = ₹1,73,077 (लगभग)

यह ध्यान देना जरूरी है कि इस गणना में केवल पूर्ण वर्ष की सेवा को ही गिना जाता है, अधूरे वर्षों को नहीं।

ग्रेच्युटी और टैक्स लाभ

ग्रेच्युटी एक टैक्स-फ्री इनकम होती है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए टैक्स-फ्री ग्रेच्युटी की अधिकतम सीमा ₹20 लाख है। यदि कंपनी अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती, तो यह राशि और भी कम हो सकती है। सरकार समय-समय पर इस सीमा को अपडेट करती है।

कर्मचारी को सैलरी स्ट्रक्चर में कैसे प्रभावित करती है ग्रेच्युटी

कई बार कर्मचारी को लगता है कि उसकी CTC काफी आकर्षक है, लेकिन जब वास्तविक इन-हैंड सैलरी आती है, तो वह अपेक्षा से कम होती है। इसका कारण यही होता है कि CTC में ग्रेच्युटी और EPF जैसे घटक शामिल होते हैं, जो तत्काल नकद भुगतान नहीं करते।
इसलिए, ग्रेच्युटी एक लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल सिक्योरिटी है, लेकिन यह इन-हैंड सैलरी को घटा देती है। कई बार कंपनियां इस हिस्से को हाईलाइट नहीं करतीं, जिससे कर्मचारी भ्रमित हो सकते हैं।

ग्रेच्युटी का महत्व और आज के परिप्रेक्ष्य में इसकी भूमिका

आज के कॉरपोरेट युग में जब कर्मचारी अक्सर जॉब बदलते हैं, तो ग्रेच्युटी की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह उन कर्मचारियों के लिए एक इनसेंटिव की तरह काम करती है जो लंबे समय तक एक ही कंपनी में बने रहते हैं। इसके अलावा, ग्रेच्युटी फंड एक तरह की सेवानिवृत्ति के बाद की बचत भी मानी जा सकती है, जो भविष्य में एकमुश्त भुगतान के रूप में मिलती है।

इसके साथ ही, सरकार और नियामक संस्थाएं ग्रेच्युटी को और अधिक पारदर्शी और कर्मचारी-केंद्रित बनाने के लिए नीतियां बना रही हैं। जैसे-जैसे कर्मचारी अधिक वित्तीय जागरूक हो रहे हैं, ग्रेच्युटी को लेकर भी जागरूकता बढ़ रही है।

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