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Gas Meter को लेकर सरकार ने बदले नियम, ग्राहकों पर पड़ेगा असर

घरेलू से लेकर इंडस्ट्रियल उपयोग तक सभी गैस मीटर अब होंगे वेरिफाइड और सील्ड, बिलिंग में पारदर्शिता, ऊर्जा दक्षता और ग्राहक सुरक्षा के लिए सरकार ने उठाया सबसे बड़ा कदम!

By Saloni uniyal
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Gas Meter को लेकर सरकार ने बदले नियम, ग्राहकों पर पड़ेगा असर
Gas Meter को लेकर सरकार ने बदले नियम, ग्राहकों पर पड़ेगा असर

Gas Meter Rules को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा और प्रभावशाली कदम उठाया है। उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी बयान में बताया गया कि अब घरेलू, कॉमर्शियल और इंडस्ट्रियल उपयोग में आने वाले सभी गैस मीटरों के लिए टेस्टिंग, वेरिफिकेशन और मुहर लगवाना अनिवार्य कर दिया जाएगा। इन नियमों का उद्देश्य माप की सटीकता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है। यह कदम लीगल मेट्रोलॉजी (जनरल) नियम, 2011 के तहत उठाया गया है।

सत्यापित गैस मीटर से गलत बिलिंग पर लगेगी लगाम

सरकार का मानना है कि सत्यापित और मुहर लगे मीटरों से अधिक बिलिंग या कम माप जैसी समस्याओं पर प्रभावी रोक लगेगी। इससे उपभोक्ताओं को सटीक बिल मिलेगा, विवादों में कमी आएगी और किसी तरह की गड़बड़ी या छेड़छाड़ वाले मीटर के खिलाफ ग्राहकों को सुरक्षा मिलेगी। यह एक तरह से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने वाला कदम है, जो उन्हें गैर-मानकीकृत मीटरों की वजह से होने वाले नुकसान से बचाएगा।

ग्राहकों को मिलेगा ऊर्जा दक्षता और रखरखाव में राहत का फायदा

इस नए नियम से उपभोक्ताओं को उचित बिलिंग के साथ-साथ बेहतर ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency) और रखरखाव में राहत मिलेगी। मानकीकृत उपकरणों का उपयोग गैस मीटरों की लंबी उम्र और कम मेंटेनेंस सुनिश्चित करेगा, जिससे उपभोक्ता लागत में बचत कर पाएंगे। यह परिवर्तन उपभोक्ताओं के जीवन को आसान और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक अहम कदम है।

कंपनियों के लिए तैयार हुआ स्ट्रक्चर्ड फ्रेमवर्क

इन नियमों से सिर्फ उपभोक्ताओं को ही नहीं बल्कि गैस वितरण कंपनियों (Gas Distribution Companies) और मीटर निर्माताओं को भी लाभ होगा। एक स्ट्रक्चर्ड फ्रेमवर्क तैयार किया गया है जो इंटरनेशनल बेस्ट प्रैक्टिस और इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ लीगल मेट्रोलॉजी (OIML) के मानकों से मेल खाता है। इससे भारत की माप प्रणाली को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकेगा।

विशेषज्ञों और संस्थानों की सहभागिता से बने नियम

नए नियमों को तैयार करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल मेट्रोलॉजी (IILM), रीजनल रेफरेंस स्टैंडर्ड लैबोरेट्रीज (RRSL), इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स और वॉलन्टरी कंज्यूमर ऑर्गनाइजेशंस (VCOs) के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। इसके अलावा, भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) को ड्राफ्ट की जांच करने और वैज्ञानिक व तकनीकी सुझाव देने की जिम्मेदारी दी गई थी।

ड्राफ्ट नियमों पर सभी हितधारकों से हुई चर्चा

इन नियमों को अंतिम रूप देने से पहले, उन्हें मीटर निर्माताओं, टेस्टिंग लैब्स, सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन (CGD) कंपनियों और राज्य लीगल मेट्रोलॉजी विभागों सहित सभी प्रमुख हितधारकों के बीच साझा किया गया। इसके अलावा, विभिन्न इंटर-डिपार्टमेंटल कंसल्टेशन और स्टेकहोल्डर मीटिंग्स भी आयोजित की गईं, जिनमें सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श हुआ।

ट्रांजिशनल पीरियड से होगा सहज क्रियान्वयन

सरकार ने इस प्रक्रिया को सुचारु रूप से लागू करने के लिए ट्रांजिशनल पीरियड का भी प्रावधान किया है। इसका उद्देश्य यह है कि गैस मीटर निर्माता और कार्यान्वयन एजेंसियां इस बदलाव के लिए खुद को तैयार कर सकें और समय पर सभी मानकों का पालन सुनिश्चित किया जा सके। इससे नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन में कोई रुकावट नहीं आएगी।

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