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सरकारी नौकरी के लिए कोई नहीं तैयार! ELIS स्कीम में कहां फंस रहा पेंच? जानिए अंदर की बात

₹15,000 की पेशकश के बावजूद कंपनियां क्यों पीछे हट रही हैं? ELIS स्कीम को लेकर सरकार और उद्योग जगत के बीच क्या चल रही है खींचतान जानिए पूरी इनसाइड स्टोरी, जो बदल सकती है भारत का रोजगार भविष्य!

By Saloni uniyal
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सरकारी नौकरी के लिए कोई नहीं तैयार! ELIS स्कीम में कहां फंस रहा पेंच? जानिए अंदर की बात
सरकारी नौकरी के लिए कोई नहीं तैयार! ELIS स्कीम में कहां फंस रहा पेंच? जानिए अंदर की बात

केंद्र सरकार की Employment-Linked Incentive Scheme (ELIS) को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। इस स्कीम के तहत सरकार देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कंपनियों को हर नए कर्मचारी के बदले आर्थिक प्रोत्साहन देने की तैयारी में है। सरकार का प्रस्ताव है कि यदि कोई कंपनी एक नया रोजगार सृजित करती है, तो उसे उस कर्मचारी के लिए ₹15,000 तक की सहायता राशि दी जाएगी। लेकिन उद्योग जगत इस राशि को “अपर्याप्त” मानते हुए इसका विरोध कर रहा है। यही विरोध ELIS की अधिसूचना को अटका रहा है।

स्कीम का मकसद और सरकार की सोच

Employment-Linked Incentive Scheme (ELIS) का उद्देश्य निजी क्षेत्र में रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करना है। सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक कंपनियाँ नए युवाओं को नौकरी पर रखें, जिससे देश में बेरोजगारी की दर में गिरावट आए और आर्थिक गतिविधियों को गति मिले। ELIS इसी कड़ी में एक कदम माना जा रहा है, जिसे प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत योजना का हिस्सा भी माना जा रहा है।

सरकार का तर्क है कि स्कीम से विशेष रूप से छोटे और मझोले उद्योगों (MSMEs) को फायदा मिलेगा, जिन्हें नए कर्मचारियों की नियुक्ति में अक्सर वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है। यह योजना उन्हें राहत देने और भर्ती प्रक्रिया को तेज करने का जरिया हो सकती है।

उद्योग जगत की चिंता और विरोध

हालांकि ELIS को लेकर कॉरपोरेट सेक्टर उत्साहित नहीं दिख रहा है। उद्योग संगठनों का कहना है कि ₹15,000 की एकमुश्त राशि, जो सरकार प्रति भर्ती कर्मचारी को देने की बात कर रही है, मौजूदा आर्थिक परिदृश्य और औसत वेतन ढांचे के लिहाज से बहुत कम है। उनका कहना है कि इस राशि से कंपनियों को कोई वास्तविक राहत नहीं मिलेगी, खासकर तब जब ट्रेनिंग, ऑनबोर्डिंग और अतिरिक्त सोशल सिक्योरिटी खर्चों को भी जोड़ा जाए।

उद्योग संगठनों ने केंद्र सरकार से इस राशि को बढ़ाने की मांग की है और साथ ही अधिक लचीलापन भी चाहा है ताकि स्कीम का फायदा ज्यादा से ज्यादा कंपनियाँ उठा सकें। इसके अलावा, कुछ कंपनियाँ स्कीम के तहत आने वाले ब्यूरोक्रेटिक प्रोसेस को भी सरल और तेज़ करने की मांग कर रही हैं।

स्कीम के क्रियान्वयन में आ रही बाधाएँ

सूत्रों की मानें तो ELIS स्कीम के लिए रूपरेखा तैयार है, लेकिन नीति आयोग और वित्त मंत्रालय के बीच अंतिम अनुमोदन को लेकर गतिरोध बना हुआ है। जब तक उद्योग की मांगों और सरकार की शर्तों के बीच संतुलन नहीं बनता, तब तक स्कीम की अधिसूचना जारी नहीं हो सकती।

यह भी बताया जा रहा है कि स्कीम को लागू करने के लिए संभावित लाभार्थियों की एक व्यापक डाटाबेस और ट्रैकिंग सिस्टम की जरूरत होगी, ताकि सरकारी धन का दुरुपयोग न हो। इस तकनीकी व्यवस्था को तैयार करने में भी समय लग सकता है।

युवाओं और रोजगार बाजार की नजरें

ELIS स्कीम को लेकर युवा वर्ग और नौकरी की तलाश कर रहे अभ्यर्थियों के बीच उम्मीदें जगी थीं। कई लोगों को लग रहा था कि इससे न केवल नौकरियाँ बढ़ेंगी बल्कि कॉर्पोरेट सेक्टर की भर्ती प्रक्रिया भी रफ्तार पकड़ेगी। लेकिन स्कीम के अधर में लटकने से यह उम्मीदें भी ठंडी पड़ती दिख रही हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह योजना तेजी से लागू होती है, तो भारत के विशाल युवा कार्यबल को लाभ मिल सकता है और रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy), मैन्युफैक्चरिंग, टेक स्टार्टअप्स, और रिटेल जैसे क्षेत्रों में रोजगार सृजन की गति तेज हो सकती है। खासकर तब, जब भारत में हर साल लाखों युवा रोजगार बाजार में प्रवेश करते हैं।

सरकार का रुख और आगे की राह

सरकारी सूत्रों का कहना है कि ELIS स्कीम को लेकर अभी भी बातचीत जारी है और सरकार उद्योग जगत की बातों को गंभीरता से सुन रही है। लेकिन नीति निर्धारण में संतुलन बनाना जरूरी है ताकि स्कीम व्यवहारिक भी हो और सरकारी बजट पर अत्यधिक भार भी न पड़े।

विशेषज्ञ यह भी सुझाव दे रहे हैं कि ₹15,000 की राशि को क्षेत्र विशेष, स्किल लेवल, और कंपनी के आकार के आधार पर स्लैब में बांटा जा सकता है, जिससे स्कीम ज्यादा व्यावहारिक हो जाएगी।

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