
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ऐलान किया कि 2 अप्रैल से अमेरिका भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाएगा। इसका मतलब यह है कि भारत जितना अमेरिकी सामान पर टैरिफ लगाता है, अमेरिका उतना ही भारतीय सामान पर टैक्स लगाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह कदम अमेरिका की आर्थिक नीति का हिस्सा है, और इसे लेकर भारत में भी कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। यह कदम भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जिनमें दोनों देशों का व्यापार काफी है।
रेसिप्रोकल टैरिफ का क्या मतलब है?
रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब है “जैसे को तैसा” यानी अगर एक देश दूसरे देश से आने वाले उत्पादों पर टैक्स लगाता है, तो दूसरा देश भी उसी तरह का टैक्स अपने यहां से जाने वाले उत्पादों पर लगाएगा। इसे सीधे तौर पर व्यापार में बराबरी की स्थितियों को बनाये रखने के लिए लागू किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, अगर भारत किसी खास उत्पाद पर 100% टैरिफ लगा रहा है, तो अमेरिका भी उसी तरह का टैरिफ भारतीय उत्पादों पर लगाएगा। इससे दोनों देशों में आयात और निर्यात की लागत पर प्रभाव पड़ेगा और व्यापार की दिशा में बदलाव आ सकता है।
ट्रंप ऐसा क्यों कर रहे हैं?
यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इकोनॉमिक प्लान का हिस्सा है। अमेरिका में आयात का एक बड़ा हिस्सा चीन, मेक्सिको और कनाडा से आता है, जिसके कारण अमेरिका को व्यापार घाटा हो रहा है। 2023 में अमेरिका को चीन, मेक्सिको और कनाडा से व्यापार में भारी घाटा हुआ था। 2023 में अमेरिका का चीन से व्यापार घाटा 30.2%, मेक्सिको से 19% और कनाडा से 14.5% रहा था। इस घाटे को कम करने के लिए ट्रंप ने टैरिफ बढ़ाने का फैसला लिया है। ट्रंप का उद्देश्य है कि अमेरिकी उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिले, रोजगार में वृद्धि हो, और अमेरिकी टैक्स रेवेन्यू में सुधार हो। इसके साथ ही, अमेरिकी इकोनॉमी को मजबूती मिल सके।
इससे पहले, 4 मार्च 2025 को ट्रंप सरकार ने मेक्सिको और कनाडा पर 25% टैरिफ लागू किया था, और अब 2 अप्रैल 2025 से भारत पर भी यह नियम लागू किया जाएगा। हालांकि इस फैसले से अमेरिका को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि इसके कारण अमेरिकी कंपनियों को भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में मुश्किल हो सकती है।
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भारत पर इसके क्या असर होंगे?
अमेरिका द्वारा भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने के फैसले का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई तरह का असर हो सकता है। सबसे बड़ा असर भारतीय निर्यात (Export) पर पड़ेगा। भारतीय सामानों पर अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से उन उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जैसे कि टेक्सटाइल्स, फूड प्रोडक्ट्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, और ऑटोमोबाइल। इसके कारण भारतीय निर्यातकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, और भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
इस फैसले के परिणामस्वरूप भारत को मिलने वाला व्यापारिक लाभ भी प्रभावित हो सकता है। वर्तमान में भारत को अमेरिका से कम टैरिफ मिलते हैं, जिससे उसे व्यापारिक लाभ मिलता है। लेकिन टैरिफ बढ़ने से यह लाभ कम हो जाएगा, और भारत को अपने व्यापारिक रिश्तों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
साथ ही, इस फैसले से भारतीय बाजार में अमेरिकी उत्पादों की कीमतें घट सकती हैं। अगर भारत अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ घटाता है, तो अमेरिकी सामान भारतीय बाजार में सस्ते हो जाएंगे, और उनके आयात में वृद्धि हो सकती है। इससे डॉलर की मांग बढ़ेगी, जो रुपये के कमजोर होने का कारण बनेगा। रुपये की कमजोरी से भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ सकता है।
इसके अलावा, भारत में विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment – FDI) बढ़ सकता है। अमेरिकी कंपनियां अगर उच्च टैरिफ से बचने के लिए भारत में अपने प्रोडक्शन बढ़ाती हैं, तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश का प्रवाह हो सकता है, और नए रोजगार भी उत्पन्न हो सकते हैं।
भारत को कितना नुकसान हो सकता है?
रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ से भारत को हर साल लगभग 7 बिलियन डॉलर यानी लगभग 61 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। इसके असर से भारत के विभिन्न सेक्टर, जैसे ऑटोमोबाइल, कृषि उत्पाद, टेक्सटाइल्स और अन्य निर्यात उत्पाद प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि, यह नुकसान विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगा, जैसे कि दोनों देशों के बीच भविष्य में होने वाली व्यापारिक बातचीत और समझौते।