
गुजरात उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरकारी दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और अन्य प्रमाण पत्रों में दर्ज जन्मतिथि को किसी व्यक्ति की असली जन्मतिथि का अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि केवल जन्म और मृत्यु पंजीकरण रजिस्टर में दर्ज जन्म प्रमाण पत्र में लिखी जन्मतिथि ही कानूनी रूप से मान्य मानी जाएगी। इस फैसले ने भविष्य में ऐसे सभी मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर दी है, जहां सरकारी दस्तावेजों में जन्मतिथि को लेकर विवाद हो सकते हैं।
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मामला: जन्मतिथि में संशोधन के लिए दायर याचिका
यह मामला एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका से जुड़ा था, जिसमें उसने अपनी जन्मतिथि को सरकारी दस्तावेजों में दर्ज तिथियों से मिलाने के लिए संशोधित करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसकी जन्मतिथि 20 अगस्त, 1990 है, जैसा कि उसके स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र, पैन कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट, चुनाव कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे विभिन्न दस्तावेजों में लिखा गया है।
हालांकि, अहमदाबाद नगर निगम (AMC) द्वारा जारी उसके जन्म प्रमाण पत्र में जन्मतिथि 16 अगस्त, 1990 दर्ज है। इस विसंगति को दूर करने के लिए याचिकाकर्ता ने अदालत से यह अनुरोध किया कि अहमदाबाद नगर निगम को उसके जन्म प्रमाण पत्र में संशोधन करने का आदेश दिया जाए, ताकि वह अन्य दस्तावेजों से मेल खा सके।
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अदालत का ऐतिहासिक निर्णय
गुजरात उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि केवल जन्म प्रमाण पत्र में दर्ज जन्मतिथि ही अंतिम और प्रमाणिक मानी जाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के अस्पताल के रिकॉर्ड ने उसकी असली जन्मतिथि 16 अगस्त, 1990 की पुष्टि की, जो जन्म प्रमाण पत्र में लिखी तारीख से मेल खाती है। इसके विपरीत, अन्य दस्तावेज जैसे स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र, पैन कार्ड, आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस, सभी याचिकाकर्ता या उसके परिवार द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित थे।
अदालत ने कहा, “इन दस्तावेजों को अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता, क्योंकि ये सभी सूचनाएँ संबंधित व्यक्ति या उसके परिजनों द्वारा दिए गए विवरणों पर आधारित होती हैं, जो हमेशा सटीक नहीं हो सकते।”
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अदालत का तर्क: जन्म प्रमाण पत्र ही क्यों अंतिम प्रमाण?
अदालत ने यह भी कहा कि जन्म प्रमाण पत्र अस्पताल के रिकॉर्ड पर आधारित होता है और इसे किसी व्यक्ति की जन्म तिथि का सबसे विश्वसनीय और सही प्रमाण माना जाता है। अन्य दस्तावेजों में कभी-कभी गलत जानकारी या संशोधन हो सकते हैं, जबकि जन्म प्रमाण पत्र को जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत कानूनी मान्यता प्राप्त है।
अदालत ने आगे कहा, “जन्म प्रमाण पत्र एक आधिकारिक दस्तावेज है, जिसे अस्पताल के रिकॉर्ड और स्थानीय निकायों के सत्यापन के बाद ही जारी किया जाता है। इसे कानूनी रूप से चुनौती नहीं दी जा सकती।”
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भविष्य के मामलों पर प्रभाव
गुजरात उच्च न्यायालय के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि अब से कोई भी व्यक्ति अगर अपने सरकारी दस्तावेजों में जन्मतिथि के संबंध में सुधार चाहता है, तो उसे आधिकारिक जन्म प्रमाण पत्र में दर्ज तिथि को ही अंतिम प्रमाण मानकर काम करना होगा।
यह निर्णय भविष्य में ऐसे सभी मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा, जहां विभिन्न सरकारी दस्तावेजों में जन्मतिथि में विसंगतियां हो सकती हैं। इसके अलावा, यह फैसला यह भी सुनिश्चित करेगा कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण रजिस्टर में दर्ज जानकारी को ही कानूनी मान्यता दी जाए और अन्य दस्तावेजों पर निर्भरता कम हो।
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महत्वपूर्ण संदेश: दस्तावेज़ों में संशोधन से पहले सतर्कता जरूरी
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, चुनाव कार्ड आदि में दर्ज जन्मतिथि को अंतिम प्रमाण नहीं माना जाएगा। इसलिए, इन दस्तावेजों को बनवाते समय जन्म प्रमाण पत्र की जानकारी को ही आधार बनाना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के कानूनी विवाद से बचा जा सके।
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विशेषज्ञों के अनुसार, यह निर्णय सरकारी दस्तावेजों में जन्मतिथि में पारदर्शिता और वास्तविकता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे न केवल कानूनी प्रक्रियाओं में सटीकता आएगी, बल्कि पहचान प्रमाणन में भी एकरूपता स्थापित होगी।