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DM ने 17 स्कूलों को सिखाया सबक, NCERT के बदले निजी पब्लिशर्स की किताबें लेने को कर रहे थे मजबूर

मध्य प्रदेश के सतना में शिक्षा व्यवस्था को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है, जहां 17 प्राइवेट स्कूल बच्चों के अभिभावकों पर जबरन महंगी प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें खरीदने का दबाव बना रहे थे। लगातार मिल रही शिकायतों के बाद जिला कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस. ने की बड़ी कार्रवाई, 36 लाख का जुर्माना लगाकर स्कूलों को सिखाया सबक। जानिए पूरा मामला, जांच की प्रक्रिया, और आगे की प्रशासनिक रणनीति।

By Saloni uniyal
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DM ने 17 स्कूलों को सिखाया सबक, NCERT के बदले निजी पब्लिशर्स की किताबें लेने को कर रहे थे मजबूर
DM ने 17 स्कूलों को सिखाया सबक, NCERT के बदले निजी पब्लिशर्स की किताबें लेने को कर रहे थे मजबूर

Satna News में इन दिनों शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। मध्य प्रदेश के सतना जिले में प्राइवेट स्कूलों की ओर से एनसीईआरटी-NCERT की अनिवार्य किताबों को छोड़कर प्राइवेट पब्लिशर्स की महंगी किताबें थोपने का मामला सामने आया है। इस मनमानी पर अब जिला प्रशासन ने सख्ती दिखाई है। जिला कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस. ने 17 निजी स्कूलों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए 36 लाख रुपये का भारी जुर्माना लगाया है।

शिकायतों के बाद कलेक्टर ने दिखाई सख्ती

जिला प्रशासन को लगातार अभिभावकों की ओर से शिकायत मिल रही थी कि निजी स्कूल बच्चों के अभिभावकों पर न केवल महंगी किताबें खरीदने का दबाव बना रहे हैं, बल्कि यूनिफॉर्म और शैक्षणिक सामग्री भी निश्चित दुकानों से ही खरीदने के निर्देश दे रहे हैं। इस शिकायत के बाद जिला कलेक्टर ने तुरंत एक्शन लेते हुए दो विशेष जांच टीमों का गठन किया।

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दो स्वतंत्र जांच टीमों ने की स्कूलों की विस्तृत जांच

सतना कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस. ने दो एसडीएम स्तर की जांच टीमें बनाई थीं। एक टीम का नेतृत्व एसडीएम राहुल सिलाडिया कर रहे थे जबकि दूसरी टीम का नेतृत्व एसडीएम स्वप्निल वानखेड़े ने किया। इसके साथ ही शिक्षा विभाग की स्वतंत्र टीम में डीईओ, एडीपीसी और मान्यता प्रभारी को शामिल किया गया।

इन टीमों ने स्कूलों द्वारा माता-पिता से मांगी गई किताबों की लिस्ट को पोर्टल पर अपलोड चेकलिस्ट से मिलाकर जांच की। रिपोर्ट में यह साफ हो गया कि किसी भी स्कूल ने एनसीईआरटी की किताबों को अपनाया ही नहीं था। सभी ने प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों को अपने-अपने पाठ्यक्रम में अनिवार्य कर रखा था।

17 स्कूलों पर लगा 36 लाख रुपये का जुर्माना

जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन ने पहले स्कूलों को शोकॉज नोटिस भेजा। लेकिन 30 दिनों के भीतर जवाब न देने वाले स्कूलों पर कार्रवाई की गई। कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस. ने इनमें से 16 स्कूलों पर 2-2 लाख रुपये और एक स्कूल पर 4 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

यह निर्णय जैसे ही सामने आया, जिले के प्राइवेट स्कूल संचालकों में हड़कंप मच गया। यह पहली बार है जब प्रशासन ने इतनी सख्ती से नियमों की अवहेलना करने वाले स्कूलों को दंडित किया है।

7 दिन में जुर्माना भरने का निर्देश, अन्यथा होगी कड़ी कार्रवाई

जिला कलेक्टर ने स्पष्ट आदेश दिए हैं कि सभी 17 स्कूल 7 दिनों के भीतर अपने-अपने जुर्माने की राशि जिला शिक्षा विभाग के खाते में जमा करें और उसका पालन प्रतिवेदन भी प्रस्तुत करें। अगर ऐसा नहीं किया गया तो उन स्कूलों के खिलाफ और कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

कलेक्टर का यह रुख दिखाता है कि प्रशासन अब शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर पूरी तरह गंभीर है। इससे पहले भी राज्य सरकार ने निर्देश दिया था कि केवल एनसीईआरटी की किताबें ही मान्य होंगी, लेकिन प्राइवेट स्कूलों की मनमानी लगातार जारी थी।

सरकार की नीति और स्कूलों की हठधर्मिता

मध्य प्रदेश सरकार ने यह स्पष्ट कर रखा है कि राज्य में संचालित सभी स्कूलों को एनसीईआरटी की किताबें ही अपनानी होंगी। यह कदम शिक्षा की समानता और पारदर्शिता के लिए जरूरी माना जा रहा है। इसके बावजूद स्कूल प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें चलाकर न केवल आर्थिक शोषण कर रहे थे, बल्कि बच्चों के बीच असमानता भी पैदा कर रहे थे।

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अब जब कलेक्टर ने खुद इस मामले में हस्तक्षेप किया है और दोषी स्कूलों को आर्थिक दंड दिया है, तो उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में अन्य स्कूल भी नियमों का पालन करेंगे और शिक्षा को व्यापार की जगह सेवा का माध्यम बनाएंगे।

शिक्षा के निजीकरण पर बड़ा सवाल

यह मामला केवल सतना जिले का नहीं, बल्कि देशभर के उन जिलों का भी है जहां शिक्षा के निजीकरण ने अभिभावकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। NCERT की किताबों की जगह निजी पब्लिशर्स की किताबें चलाना, शिक्षा को बाजारू बना देना और यूनिफॉर्म व स्टेशनरी पर मुनाफा कमाना—ये सब आज आम समस्याएं बन चुकी हैं।

अब जबकि प्रशासनिक स्तर पर इस दिशा में पहल हो चुकी है, तो जरूरत है कि यह मॉडल अन्य जिलों में भी अपनाया जाए, जिससे शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी और समान बनाया जा सके।

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