
हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) एक बार फिर से चीन और नेपाल के बीच कूटनीतिक तनाव का कारण बन गई है। चीन लगातार इसे ‘चोमोलुंगमा’ (Chomolungma) कह रहा है, जो कि तिब्बती भाषा में इस पर्वत का पारंपरिक नाम है। लेकिन नेपाल, जो कि इस पर्वत के दक्षिणी हिस्से पर अधिकार रखता है, इसे सगरमाथा (Sagarmatha) कहता है। हाल ही में चीन द्वारा अपने आधिकारिक नक्शों, सोशल मीडिया पोस्ट्स और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज़ों में ‘चोमोलुंगमा’ शब्द का बार-बार उपयोग करने से नेपाल के भीतर असंतोष और राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
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चोमोलुंगमा बनाम सगरमाथा: एक नाम, दो दावे
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848.86 मीटर है और यह नेपाल और चीन (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र) की सीमा पर स्थित है। नेपाल इसे ‘सगरमाथा’ कहता है जबकि चीन इसे ‘चोमोलुंगमा’ कहता है। अंग्रेजों द्वारा इसे 19वीं सदी में माउंट एवरेस्ट नाम दिया गया था, लेकिन आज के भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में नाम का चयन भी कूटनीतिक सन्देश देने का माध्यम बन गया है।
चीन ने हाल के वर्षों में अपने राष्ट्रीय नक्शे में एवरेस्ट के तिब्बती नाम ‘चोमोलुंगमा’ को प्रमुखता से दिखाना शुरू किया है। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मीडिया, पर्यटन प्रचार सामग्री और वैश्विक मंचों पर भी चीन इसी नाम का इस्तेमाल कर रहा है। नेपाल इस रुख को अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता और सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ मान रहा है।
नेपाल की चिंता: सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक चुनौती
नेपाल का कहना है कि माउंट एवरेस्ट का दक्षिणी हिस्सा उसके क्षेत्र में आता है और ‘सगरमाथा’ नाम उसका आधिकारिक और सांस्कृतिक रूप से मान्य नाम है। नेपाल सरकार के विदेश मंत्रालय ने चीन के इस रुख पर आधिकारिक आपत्ति दर्ज कराने के संकेत दिए हैं। काठमांडू में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सिर्फ नाम का मामला नहीं, बल्कि यह नेपाल की भू-राजनीतिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
नेपाल पहले ही चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और अन्य रणनीतिक परियोजनाओं में संतुलन बनाए रखने के प्रयास में है। ऐसे में इस नाम विवाद ने नेपाल के लिए एक नया कूटनीतिक संकट खड़ा कर दिया है।
चीन की मंशा: नाम के पीछे की रणनीति
विशेषज्ञों के अनुसार, चीन की यह रणनीति सिर्फ नामकरण तक सीमित नहीं है। तिब्बत पर अपने नियंत्रण को मजबूत दिखाने और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सांस्कृतिक आधिपत्य स्थापित करने की दिशा में यह कदम एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है। ‘चोमोलुंगमा’ का उपयोग चीन के तिब्बती पहचान को वैध ठहराने का एक तरीका भी है।
इसके अतिरिक्त, चीन माउंट एवरेस्ट के उत्तर हिस्से पर रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) और पर्यटन आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भी कर रहा है, जो कि इसके आर्थिक और रणनीतिक हितों को दर्शाता है।
पर्यटन और वैश्विक मान्यता पर प्रभाव
माउंट एवरेस्ट हर साल हजारों पर्वतारोहियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। नेपाल की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान काफी बड़ा है। नेपाल इसे अपने पर्यटन की रीढ़ मानता है। चीन द्वारा इसके नाम को ‘चोमोलुंगमा’ के रूप में प्रचारित करना नेपाल की अंतरराष्ट्रीय पहचान को कमजोर कर सकता है, जिससे पर्यटन राजस्व और अंतरराष्ट्रीय निवेश पर असर पड़ने की आशंका है।
नेपाल पहले ही कई अंतरराष्ट्रीय IPO और पर्यटन निवेश योजनाओं को आकर्षित करने के प्रयास में लगा है। यदि माउंट एवरेस्ट के नाम को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही, तो यह इन योजनाओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
नेपाल की संभावित प्रतिक्रिया
नेपाल सरकार ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई कड़ा कदम नहीं उठाया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में यह बहस जोरों पर है कि चीन के साथ इस मसले को कूटनीतिक स्तर पर उठाया जाना चाहिए। साथ ही नेपाल में यह मांग भी तेज हो रही है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘सगरमाथा’ नाम को मान्यता दिलाने के लिए प्रयास किए जाएं।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि नेपाल को भारत जैसे पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए। वहीं, कुछ का कहना है कि यह मामला सीधे-सीधे तिब्बत की स्थिति और चीन की आंतरिक राजनीति से भी जुड़ा हुआ है, इसलिए नेपाल को संतुलन बनाए रखना होगा।