
कैंडिडेट ने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) प्रमाणपत्र केंद्र सरकार के लिए मान्य प्रारूप में प्रस्तुत किया था, जबकि सरकारी भर्ती विज्ञापन में स्पष्ट रूप से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप में प्रमाणपत्र की मांग की गई थी। इस तकनीकी गलती के कारण अभ्यर्थी को आरक्षण का लाभ नहीं मिला। इस प्रकरण पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्पष्ट कर दिया कि यदि ओबीसी प्रमाणपत्र विज्ञापन में निर्धारित प्रारूप के अनुरूप नहीं है, तो उम्मीदवार को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: तकनीकी गलती भी निर्णायक
हाल ही में सुनाए गए इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण (Reservation in Government Jobs) केवल तभी मान्य होगा जब आवेदक द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाणपत्र नियमानुसार और विज्ञापन में निर्धारित प्रारूप के अनुसार हो। भले ही अभ्यर्थी ओबीसी श्रेणी में आता हो, लेकिन यदि उसका प्रमाणपत्र राज्य सरकार द्वारा निर्धारित निर्धारित फॉर्मेट में नहीं है, तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार की गलती को ‘साधारण त्रुटि’ मानना संभव नहीं है क्योंकि यह चयन प्रक्रिया की वैधता को प्रभावित करती है।
केंद्र बनाम राज्य: प्रमाणपत्र में अंतर बना समस्या का कारण
यह मामला उस समय उठा जब एक अभ्यर्थी ने केंद्र सरकार के लिए मान्य ओबीसी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, जबकि राज्य सरकार की सेवा के लिए आवेदन करते समय राज्य द्वारा निर्धारित प्रारूप आवश्यक था। सरकारी भर्तियों में आरक्षण नीति के तहत उम्मीदवारों को उसी संस्था द्वारा निर्धारित प्रारूप में प्रमाणपत्र देना होता है, जिसके अधीन वह नौकरी करता है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के ओबीसी प्रमाणपत्रों में भाषा, प्रारूप और वैधानिक अधिकारी अलग हो सकते हैं, जो उनके स्वीकार्यता को प्रभावित करता है।
अदालत ने कहा – नियमों का पालन अनिवार्य
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि “किसी भी अभ्यर्थी को नियमों की अनदेखी कर छूट नहीं दी जा सकती, चाहे वह सामाजिक रूप से पिछड़ा क्यों न हो।” उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के प्रमाणपत्रों की सत्यता और प्रारूप में एकरूपता से ही नौकरी प्रक्रिया की पारदर्शिता (Transparency in Recruitment) सुनिश्चित की जा सकती है। यदि कोई उम्मीदवार निर्धारित प्रारूप में प्रमाणपत्र नहीं देता, तो वह खुद ही चयन प्रक्रिया से बाहर हो जाता है।
यह भी पढें- RBI ला रहा ₹20 का नया नोट – कैसा होगा लुक और पुराने नोटों का क्या होगा? जानिए पूरी जानकारी
क्या है ओबीसी प्रमाणपत्र का मान्य प्रारूप?
ओबीसी प्रमाणपत्र (OBC Certificate) में उम्मीदवार की जाति, जातीय उपवर्ग, आरक्षण की पात्रता, क्रीमी लेयर से बाहर होने की पुष्टि, और प्रमाणपत्र जारी करने वाले सक्षम अधिकारी की जानकारी होती है। राज्य सरकार द्वारा जारी प्रमाणपत्र में उस राज्य की अधिसूचित जातियों की सूची से मिलान अनिवार्य होता है। वहीं, केंद्र सरकार के लिए यह प्रमाणपत्र केंद्र की अधिसूचना के अनुरूप होता है। अगर कोई अभ्यर्थी राज्य सेवा परीक्षा (State Service Exam) के लिए आवेदन करता है, तो उसे राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त प्रारूप में प्रमाणपत्र देना अनिवार्य होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने की चयन बोर्ड की सराहना
अदालत ने कहा कि चयन बोर्ड ने उम्मीदवार को बार-बार नोटिस भेजकर प्रमाणपत्र ठीक प्रारूप में जमा कराने का अवसर दिया था। बावजूद इसके, उम्मीदवार ने केंद्र सरकार वाला ही प्रमाणपत्र दिया, जो नियमानुसार अमान्य था। सुप्रीम कोर्ट ने चयन बोर्ड के निर्णय को उचित ठहराते हुए कहा कि चयन प्रक्रिया को नियमों के विरुद्ध जाकर लचीला नहीं किया जा सकता।
आरक्षण का लाभ तभी जब दस्तावेज हों सही
यह फैसला अन्य उम्मीदवारों के लिए भी एक चेतावनी है कि यदि वे आरक्षण का लाभ (Reservation Benefit) लेना चाहते हैं, तो उन्हें अपने दस्तावेज पूरी तरह सही, वैध और नियमानुसार प्रारूप में प्रस्तुत करने होंगे। सरकारी नौकरी की प्रक्रिया में दस्तावेजों की तकनीकी गड़बड़ी को क्षमा नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब उम्मीदवार को सुधारने के पर्याप्त अवसर दिए गए हों।
भविष्य के लिए सबक
इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि केवल जातीय पहचान ही नहीं, बल्कि प्रक्रियात्मक अनुशासन (Procedural Compliance) भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जो उम्मीदवार भविष्य में राज्य या केंद्र सरकार की किसी भी नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्रमाणपत्र संबंधित विभाग द्वारा स्वीकृत प्रारूप में ही हों। अन्यथा, मेहनत और योग्यता के बावजूद उनका चयन रद्द किया जा सकता है।