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Bofors Scam: फिर गरमाया बोफोर्स घोटाला! ‘सबूतों के डिब्बे’ से निकली नई जानकारी को सार्वजनिक करने की मांग

क्या गांधी परिवार का कनेक्शन गहराता जा रहा है? अमिताभ बच्चन को फंसाने की थी साजिश? 64 करोड़ की रिश्वत या असल घोटाला इससे भी बड़ा? जानिए स्विट्जरलैंड से मिले दस्तावेजों का पूरा सच और क्यों सीबीआई अब अमेरिका से मांग रही है मदद!

By Saloni uniyal
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Bofors Scam: फिर गरमाया बोफोर्स घोटाला! ‘सबूतों के डिब्बे’ से निकली नई जानकारी को सार्वजनिक करने की मांग
फिर गरमाया बोफोर्स घोटाला! ‘सबूतों के डिब्बे’ से निकली नई जानकारी को सार्वजनिक करने की मांग

बोफोर्स घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। चर्चित पत्रकार और लेखिका चित्रा सुब्रमण्यम ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से यह मांग की है कि वह बोफोर्स मामले में रिश्वत से संबंधित स्विट्जरलैंड से प्राप्त ‘सबूतों के डिब्बे’ की जानकारी को सार्वजनिक करे। यह वही दस्तावेज हैं, जिनका इस्तेमाल जांच और आरोपपत्र दाखिल करने में किया गया था। सुब्रमण्यम का कहना है कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि इन डिब्बों को कब, किसने और क्यों खोला गया था। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सौदे में 18 प्रतिशत कमीशन वाकई लिया गया था, जैसा कि स्वीडन की फर्म बोफोर्स द्वारा भारत सरकार को दिए गए सबूतों में दिखाया गया था।

‘सबूतों के डिब्बे’ को लेकर उठा बड़ा सवाल

बोफोर्स मामले में लंबे समय से जांच से जुड़ी रही चित्रा सुब्रमण्यम ने इस घोटाले से जुड़ी एक अहम किताब ‘Boforsgate: A Journalist’s Pursuit of Truth’ लिखी है। इस किताब में उन्होंने इस बात को उठाया है कि आखिरकार सबूतों का डिब्बा कब और कैसे खोला गया? उन्होंने पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि 1999 के अंत में उन्हें यह बताया गया था कि तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्रा ने डिब्बे को न खोलने की सलाह दी थी।

राजस्थान पुलिस के पूर्व महानिदेशक ओ. पी. गलहोत्रा, जो कि सीबीआई में अपनी तैनाती के दौरान इस मामले की जांच से जुड़े थे, ने बताया कि यह दस्तावेज स्विट्जरलैंड की अदालत से भारतीय अदालत को सौंपे गए थे। इन दस्तावेजों के आधार पर सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया था। गलहोत्रा ने कहा कि जांच एजेंसी अदालत के प्रति जवाबदेह है और आरोपपत्र सार्वजनिक दस्तावेज होता है।

जांच और राजनीतिक साजिश के आरोप

चित्रा सुब्रमण्यम ने दावा किया कि सीबीआई ने जांच को भटकाने के लिए बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन और उनके परिवार का नाम उछाला था। उन्होंने कहा कि बच्चन परिवार पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद थे और राजनीतिक प्रतिशोध के तहत उन्हें घोटाले से जोड़ा गया। सुब्रमण्यम ने याद किया कि जब बच्चन उनके पास आए और पूछा कि क्या उनके नाम का जिक्र दस्तावेजों में है, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि यह घोटाला बहुत बड़ा था और इसके पीछे कई बड़े लोग शामिल थे। राजीव गांधी से लेकर वी. पी. सिंह तक सभी सरकारों ने इस मामले का राजनीतिक इस्तेमाल किया।

गांधी परिवार और क्वात्रोची का कनेक्शन?

बोफोर्स घोटाले में गांधी परिवार की संलिप्तता के सवाल पर सुब्रमण्यम ने कहा कि वह राजीव गांधी के बारे में निश्चित नहीं हैं, लेकिन इतना जरूर कहा कि रिश्वत की रकम इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची तक पहुंची थी। उन्होंने सवाल उठाया कि जब इस मामले में सबसे बड़े सबूत स्वीडन में मौजूद हैं, तो भारतीय जांच एजेंसियां वहां की जांच एजेंसियों से संपर्क क्यों नहीं कर रही हैं?

क्या 64 करोड़ ही पूरा भ्रष्टाचार था?

बोफोर्स घोटाले में रिश्वत की रकम 64 करोड़ रुपये बताई जाती रही है, लेकिन चित्रा सुब्रमण्यम का मानना है कि यह पूरी सच्चाई नहीं है। उन्होंने कहा कि कमीशन की वास्तविक दर 18.5 प्रतिशत हो सकती है, न कि केवल 3 प्रतिशत, जैसा कि पहले बताया गया था।

उन्होंने सवाल उठाया कि इतना बड़ा लोकतंत्र केवल 64 करोड़ रुपये के लिए इतनी मशक्कत क्यों करेगा? उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि स्वीडिश जांचकर्ताओं का मानना है कि रिश्वत की रकम इससे कहीं ज्यादा थी।

अमेरिका से मदद मांगने पर उठे सवाल

हाल ही में खबर आई थी कि सीबीआई ने अमेरिका को एक अनुरोध पत्र (Letter Rogatory) भेजा है, जिसमें बोफोर्स घोटाले से जुड़ी जानकारी मांगी गई है। इस पर सुब्रमण्यम ने सवाल उठाया कि सीबीआई स्वीडन से मदद क्यों नहीं मांग रही है, जबकि घोटाले से जुड़े मूल दस्तावेज वहीं उपलब्ध हैं?

उन्होंने इस जांच को लेकर भारतीय एजेंसियों के रुख पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि भारतीय जांच एजेंसियां जानबूझकर कुछ अहम पहलुओं की अनदेखी कर रही हैं।

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