
परमाणु हथियार (nuclear weapons) को लेकर एक बार फिर से वैश्विक स्तर पर चर्चा तेज हो गई है। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान की ओर से आए गैरजिम्मेदाराना बयानों ने इस बहस को और गर्मा दिया है। पाकिस्तानी नेताओं द्वारा परमाणु बम (Atomic Bomb) हमले की धमकी देने के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर एक परमाणु बम की कीमत कितनी होती है, इन्हें कहां छिपाया जाता है और इसके उपयोग का फैसला कौन करता है।
परमाणु बम की कीमत कितनी होती है
परमाणु बम केवल एक विस्फोटक हथियार नहीं बल्कि एक जटिल और महंगा सिस्टम होता है। न्यूक्लियर वॉरहेड (Nuclear Warhead) बनाने की लागत करीब 1.8 करोड़ डॉलर यानी लगभग 1530 करोड़ रुपये से लेकर 5.3 करोड़ डॉलर यानी करीब 4516 करोड़ रुपये तक जाती है। इसमें केवल बम की नहीं, बल्कि उसे दागने के लिए जरूरी लॉन्चिंग सिस्टम, मिसाइल, लड़ाकू विमान, लांच पैड और रखरखाव की लागत भी शामिल होती है।
फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका का घातक B61-12s परमाणु बम करीब 2.8 करोड़ डॉलर का है, जबकि पूरे सिस्टम की कीमत 27 करोड़ डॉलर यानी करीब 2300 करोड़ रुपये होती है। यह आंकड़ा बताता है कि परमाणु हथियार केवल सामरिक शक्ति ही नहीं, बल्कि एक भारी आर्थिक बोझ भी होते हैं।
कहां छिपाए जाते हैं परमाणु बम
हर देश अपने परमाणु हथियारों को अत्यधिक गोपनीयता के साथ छिपा कर रखता है। पाकिस्तान के पास मौजूद परमाणु बमों को लेकर यह माना जाता है कि वे Sargodha Weapons Storage Complex में रखे गए हैं, जो कि मुषाफ (Mushaf) एयरबेस से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा शाहबाज एयरबेस भी इन हथियारों के लिए प्रमुख स्थानों में से एक है।
पाकिस्तान की मिसाइल प्रणाली में अब्दाली, शाहीन, गौरी, हत्फ जैसी मिसाइलें शामिल हैं, जो परमाणु हमले में सक्षम हैं। इन मिसाइलों के ज़रिए ज़रूरत पड़ने पर एटम बम लॉन्च किया जा सकता है।
कौन लेता है परमाणु हमले का फैसला
परमाणु हमले का फैसला किसी देश का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री अकेले नहीं करता। इसके लिए एक जटिल निर्णय प्रक्रिया होती है। पाकिस्तान में यह जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली National Command Authority की होती है।
भारत में भी यह निर्णय प्रक्रिया सामूहिक होती है। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Security), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA), चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) और तीनों सेनाओं के प्रमुखों की सलाह पर प्रधानमंत्री अंतिम निर्णय लेते हैं।
अमेरिका में राष्ट्रपति के पास ‘न्यूक्लियर फुटबॉल’ नामक ब्रीफकेस होता है, जिसमें सभी कोड्स और योजनाएं मौजूद होती हैं। रूस के राष्ट्रपति के पास भी ऐसा ही एक ब्रीफकेस होता है।
भारत की न्यूक्लियर ट्रॉयड क्षमता
भारत के पास जमीन, हवा और समुद्र से परमाणु हमला करने की पूर्ण क्षमता है, जिसे ‘न्यूक्लियर ट्रॉयड’ (Nuclear Triad) कहा जाता है। भारत की मिसाइल प्रणाली में अग्नि, शौर्य, प्रलय और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें शामिल हैं। भारत की नीति ‘नो फर्स्ट यूज’ (No First Use) की है यानी भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा, लेकिन यदि उस पर हमला होता है तो वह मुंहतोड़ जवाब देगा।
परमाणु हथियारों का रखरखाव और खर्च
दुनिया भर में कुल मिलाकर 91.4 अरब डॉलर हर साल परमाणु हथियारों के रखरखाव पर खर्च किए जाते हैं। यह राशि इतनी बड़ी है कि यदि इसे सेकंड के हिसाब से देखा जाए तो यह 2898 डॉलर प्रति सेकंड यानी करीब ढाई लाख रुपये प्रति सेकंड खर्च होती है।
यह आंकड़ा दर्शाता है कि परमाणु शक्ति केवल सैन्य नहीं, आर्थिक रूप से भी एक बहुत बड़ा दायित्व है। दुनिया के 100 से ज्यादा देशों की GDP भी इस खर्च से कम है।
किस देश के पास कितने परमाणु हथियार
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, नौ देशों के पास करीब 12,000 से ज्यादा परमाणु हथियार हैं।
रूस – 2815
अमेरिका – 1928
चीन – 410
फ्रांस – 290
ब्रिटेन – 225
पाकिस्तान – 170
भारत – 172
इज़रायल – अज्ञात
उत्तर कोरिया – 30
पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की कुल कीमत करीब 4455 करोड़ डॉलर बताई जाती है, जबकि उसका विदेशी कर्ज 2740 करोड़ डॉलर है। यदि वह अपने एटमी हथियार बेच दे तो पूरा कर्ज चुकाया जा सकता है – लेकिन यह केवल एक काल्पनिक गणना है, व्यावहारिक रूप से असंभव।
एटमी हथियार और दुर्घटनाएं
इतिहास में कई बार परमाणु बम गलती से या दुर्घटनावश गिर चुके हैं। 1957 में न्यू मैक्सिको, 1958 में साउथ कैरोलिना और 1961 में कैलीफोर्निया में ऐसे मामले सामने आए। 1965 में एक अमेरिकी विमानवाहक पोत से उड़ते समय एक परमाणु बम समुद्र में गिर गया, जो आज तक नहीं मिला।
किसने किए परमाणु हथियार नष्ट
शीत युद्ध के दौरान परमाणु हथियारों की संख्या 60 हजार तक पहुंच गई थी। बाद में परमाणु निरस्त्रीकरण (Nuclear Disarmament) की दिशा में कई देशों ने पहल की। अब तक केवल दक्षिण अफ्रीका ने ही स्वेच्छा से अपने सभी एटमी हथियार नष्ट कर दिए हैं।
जापान पर हमला और उसका असर
अमेरिका द्वारा 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम ‘लिटिल बॉय’ और ‘फैटमैन’ ने लाखों लोगों की जान ले ली और इन शहरों ने कई दशकों तक इसके दुष्परिणाम झेले। यह मानव इतिहास का सबसे घातक हमला था, जो आज भी दुनिया को परमाणु युद्ध के खतरे से आगाह करता है।