हम सब अपने बचपन से ही अपने बड़ों से, जैसे कि माता-पिता, नाना-नानी, दादा-दादी, से बहुत सी कहानियों को सुनकर बड़े हुए हैं। प्राचीन काल से ही कहानियों का सुनना और सुनाना हमारे देश की परंपरा रही है। हमने देखा है कि अकसर गाँवों में, जहाँ मनोरंजन के लिए बहुत कम साधन होते हैं, वहां लोग नैतिक कहानियां (Moral Stories) और कविताओं को गाकर या सुनाकर बच्चों का मनोरंजन करते हैं। ये कहानियां न केवल मनोरंजक होती हैं, बल्कि ये शिक्षाप्रद भी होती हैं और हमें जीवन के मूल्यों और नैतिकता के प्रति जागरूक करती हैं।
आपको बता दें की हिंदी-साहित्य में कई ऐसे लेखक हुए हैं जिन्होंने शिक्षा लाभप्रद ऐसे छोटी-छोटी नैतिक कहानियां (Short Story) लिखी हैं। इन छोटी कहानियों में अकबर-बीरबल, तेनाली-रामा, पंचतंत्र आदि की कहानियां बहुत ही ज्यादा प्रचलित हैं। दोस्तों आप जानते हैं की बड़े-बुज़ुर्गों के द्वारा सुनाई जाने वाली यह छोटी-छोटी कहानियां हमें जीवन की बड़ी सीख सीखा जाती हैं। इन कहानियों से मिलने वाली शिक्षा का हमारे जीवन में बड़ा प्रभाव पड़ता है। आज हम आपको अपने आर्टिकल में हिंदी की कुछ ऐसे ही प्रेरणादायक नैतिक कहानियों (Short Moral Stories) का संग्रह यहां दे रहे हैं।
इन हिंदी नैतिक कहानियां (Hindi stories) पढ़कर आप अपना मनोरंजन भी कर पाएंगे और जीवन में काम आने वाली शिक्षा के बारे में जान पाएंगे।
1.लालची लोमड़ी की कहानी (The Greedy fox Story in Hindi):
लालची लोमड़ी की कहानी में यह है की एक बार की बात है एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहा करती थी। गर्मियों के दिन थे और वह भूख से परेशान होकर जंगल में भटक रही थी। बहुत देर जंगल में भटकने के बाद लोमड़ी को एक खरगोश मिला। लेकिन खरगोश मिलने के बाद लोमड़ी ने खरगोश को खाने की बजाय उसे छोड़ दिया क्योंकि वह इतना छोटा था की उसे खाने से लोमड़ी का पेट कहाँ भरने वाला था।
इसके बाद लोमड़ी आगे बढ़ी फिर से जंगल में भटकने लगी। कुछ देर जंगल में भटकने के बाद भूखी लोमड़ी को एक हिरण (Deer) दिखा हिरण को देखते ही लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया। लोमड़ी हिरण को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ने लगी। लोमड़ी ने अपनी पूरी ताकत से हिरण का पीछा किया पर हिरण लोमड़ी की पकड़ में नहीं आया।
अब लोमड़ी खाने की तलाश में बहुत ही थक चुकी थी। जब लोमड़ी के हाथ हिरन भी नहीं लगा तो लोमड़ी सोचने लगी की इससे अच्छा होता वह छोटे से खरगोश को ही खा लेती जिसको उसने छोड़ा था। कुछ देर आराम करने के बाद लोमड़ी खरगोश को ढूंढने के लिए फिर से जंगल में भटकने लगी।
जंगल में खरगोश को ढूंढते हुए लोमड़ी वहां पहुँची जहाँ उसने खरगोश (Rabbit) को देखा था। लेकिन लोमड़ी को वहां खरगोश नहीं दिखा। थक हारकर लोमड़ी को अपनी गुफा में लौटना पड़ा। जिसके बाद कई दिनों तक भूखी लोमड़ी अपनी गुफा में भूखा रहना पड़ा और बहुत दिन बीत जाने के बाद लोमड़ी को खाना मिला।
कहानी की सीख: उपरोक्त लोमड़ी की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें लालच नहीं करना चाहिए। यदि लालच किये बिना संतोषी जीवन जीते हैं तो आप सुखी रहते हैं। हिंदी में लालच (Geedy) के प्रसिद्ध मुहावरा भी है की “लालच बुरी बला है”
2.प्यासे कौवे की कहानी (Story of Thirsty Crow):
दोस्तों एक बार की बात है की बहुत तेज चिलचिलाती गर्मी पड़ रही थी। दोपहर का समय था। इस गर्मी भरी दोपहर में एक कौवा प्यास के मारे पानी की तलाश में भटक रहा था। बहुत से जगह ढूंढने के बाद भी कौवे को पानी नहीं मिला। पानी की तलाश में कौवा उड़ता ही जा रहा था।
पानी की तलाश में उड़ते हुए प्यासे कौवे की नज़र एक पानी से भरे घड़े पर पड़ी। कौवा घड़े के पास आया और पानी पीने के लिए प्यासे कौवे ने जैसे ही अपना मुँह घड़े के अंदर डाला तो देखा की पानी उसकी पहुँच से बाहर है। बहुत प्रयास करने के बाद भी कौवा अपनी चोंच पानी तक नहीं पहुंचा पा रहा था।
जब कौवे ने देखा की वह पानी तक अपनी चोंच नहीं पहुंचा पा रहा है तो कौवे ने इसके लिए एक तरकीब निकाली। कौवे ने घड़े के पास पड़े पत्थर और कंकड़ अपनी चोंच में लाकर घड़े में डालने लगा। एक-दो कंकड़ कौवा अपनी चोंच में दबाकर लाता और घड़े में डाल देता। पत्थर और कंकड़ डालने से घड़े का पानी ऊपर आने लगा। प्यासा कौवा बड़ी मेहनत से तब तक घड़े में पत्थर डालता रहा जब तक घड़े का पानी घड़े के ऊपरी सिरे तक नहीं आ गया।
कौवे की मेहनत रंग लाई और देखते ही देखते पानी घड़े के ऊपरी सिरे तक पहुंच गया जिसके बाद प्यासे कौवे ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई।
कहानी की सीख: ऊपर बताई गई कौवे की कहानी हमें यह सीख देती है की किसी भी परिस्थिति में अपना स्वभाव सकारात्मक रखें। यदि आप किसी कार्य को शुरू करने से पहले हार मान लेंगे तो हार निश्चित है। आपको बस अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए ईमानदारी से मेहनत करते रहना है आपको सफलता जरूर मिलेगी।
3.सुनहरी कुल्हाड़ी और लकड़हारे की कहानी
बहुत साल पहले की बात है की एक नगर में किशन नाम का लकड़हारा (Woodcutter) रहा करता था। वह अपने गुजर बसर के लिए जंगल से लकड़ी काटकर लाता और नगर में बेचता था। इन लकड़ियों को बेचने से लकड़हारे को जो पैसे मिलते थे उससे वह अपने लिए खाना खरीदकर खा लेता था। यह उसकी रोज की दिनचर्या थी।
एक दिन की बात है की जंगल में लकड़हारा एक तेज बहती हुई नदी के पास एक पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काट रहा था। पेड़ से लकड़ी काटते हुए कुल्हाड़ी लकड़हारे के हाथ से छूटकर नदी में जा गिरी।
कुल्हाड़ी ढूंढने के लिए लकड़हारा पेड़ से नीचे उतरा और कुल्हाड़ी ढूढ़ने लगा लेकिन बहुत प्रयास करने के बाद लकड़हारे को उसकी कुल्हाड़ी नहीं मिली। लकड़हारे ने सोचा की नदी में पानी बहुत गहरा है और बहाव भी तेज है। कुल्हाड़ी नदी में पानी के साथ बह गयी होगी।
उदास और मायूस होकर लकड़हारा नदी किनारे बैठकर रोने लगा। कुल्हाड़ी खो जाने से लकड़हारा काफी दुखी था। लकड़हारे यह सोचने लगा की उसके पास इतने पैसे भी नहीं हैं की वह नयी कुल्हाड़ी खरीद सके।
जब लकड़हारा दुखी होकर नदी किनारे बैठा हुआ था तब नदी से एक देवता स्वरुप मनुष्य प्रकट हुए और उन्होंने लकड़हारे को आवाज़ लगाई। देवता ने लकड़हारे से पूछा की तुम इतने दुखी क्यों हो और तुम रो क्यों रहे हो। देवता के पूछने पर अपनी कुल्हाड़ी खोने की पूरी कहानी बताई। लकड़हारे की बात सुनकर देवता ने कहा की मैं तुम्हारे लिए कुल्हाड़ी ढूंढकर लाऊंगा ये बात कहकर देवता ने लकड़हारे को उसकी मदद का भरोसा दिलाया।
इसके बाद देवता नदी में समा गए और कुछ देर के बाद नदी से बाहर निकले। लकड़हारे ने देखा की देवता के हाथ में तीन तरह की कुल्हाड़ियाँ हैं। पहली कुल्हाड़ी को दिखाकर जो सोने की बनी हुई थी देवता ने लकड़हारे से पूछा की बताओ क्या यह कुल्हाड़ी तुम्हारी है ? लकड़हारे ने जवाब दिया की नहीं भगवन यह सोने की कुल्हाड़ी मेरी नहीं इसके बाद देवता ने चांदी की कुल्हाड़ी को दिखाते हुए पूछा की क्या यह कुल्हाड़ी तुम्हारी है ?
लकड़हारे ने जवाब दिया की नहीं भगवान यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं। इसके बाद लकड़ी से बनी कुल्हाड़ी को दिखाते हुए देवता ने वही प्रश्न दोबारा किया। इस बार लकड़हारे ने जवाब दिया की जी हाँ यह लकड़ी से बनी कुल्हाड़ी मेरी हैं इसी से मैं पेड़ पर बैठकर लकड़ी काट रहा था। लकड़ी काटते समय यह मेरे हाथ से छूटकर नदी में गिर गई थी।
देवता के द्वारा लकड़हारे की ईमानदारी को देखकर बहुत अधिक प्रसन्न हुए। देवता ने कहा की किशन यदि तुम्हारी जगह कोई और होता तो वह लालच में आकर सोने या चांदी की कुल्हाड़ी ले लेता परन्तु तुमने ऐसा नहीं किया। हम तुम्हारी ईमानदारी से बहुत अधिक प्रसन्न हैं।
तुमने पवित्र और सच्चे मन से मेरे द्वारा पूछे गए सभी सवालों के जवाब दिए तो मैं तुम्हें उपहार के रूप यह तीनों कुल्हाड़ी भेंट करता हूँ। तुम यह तीनों कुल्हाड़ी भेंट स्वरुप अपने पास रख लो। लकड़हारा तीनों कुल्हाड़ी लेकर बहुत खुश था। वह तीनों कुल्हाड़ी लेकर अपने घर चला गया।
कहानी की सीख: उपरोक्त लकड़हारे की कहानी हमें सिखाती है की हमें कभी भी जीवन में ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
4. हलवा पराठा की कहानी
एक बार की बात है की एक गाँव में दो भाई रहा करते थे बड़े भाई का नाम था अली और दूसरे भाई का नाम था अकरम। दोनों भाई अपने स्वभाव के कारण एक-दूसरे के बिलकुल विपरीत थे। बड़ा भाई अली हलवे पराठे की ठेली लगाता था। इसी तरह दूसरा छोटा भाई अकरम एक नंबर का आलसी था और कोई काम धंधा नहीं करता था। अकरम बस जल्द से जल्द अमीर बनने के सपने देखा करता था।
एक बार की बात है की छोटा भाई अकरम अपनी भाभी के लिए सूट लेकर आया। अकरम ने सूट भाभी को दिया जो अकरम की भाभी को बहुत पसंद आया। सूट दख अकरम की भाभी ने कहा अरे अकरम तू तो कुछ कमाता भी नहीं हैं फिर तेरे पास इतने पैसे कहाँ से आये। अकरम बोला, ” भाभी जान आप यह सब मत पूछा करो मैं तो सिर्फ जुगाड़ करता हूँ ” और इन जुगाड़ से मैं बहुत ही जल्दी अमीर बन जाऊंगा।
यह सब बातें सुनकर अकरम का बड़ा भाई अली बोला की तू इन जुगाड़ों से भले ही अमीर बन जाए पर ऐसे पैसों से कमाई गई तेरी अमीरी ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगी। इतने में अकरम बोला की भाईजान आप तो रहने दो आप ईमानदारी से काम करते हो लेकिन ईमानदारी से सिर्फ जरूरतें पूरी हो सकती हैं अमीर बनने का सपना नहीं इतना कहकर अकरम हमेशा अपने बड़े भाई का मुंह बंद करा देता था।
अली बाज़ार के बीच में हलवा पराठे की ठेली लगाता था। अली का बना हलवा अच्छी क्वालिटी का होता था जिसके कारण ग्राहकों की भीड़ हमेशा ही अली के ठेले पर लगी रहती थी। लोगों को अली का बनाया हलवा इतना पसंद आता था की लोग हलवा पैक कराकर अपने घर भी ले जाया करते थे। लेकिन इसमें अली को अपने मुनाफे में काफी नुकसान उठाना पड़ता था।
एक बार जब अली ने अपने पुरे महीने का हिसाब अपनी पत्नी फातिमा को दिया तो। अली की पत्नी फातिमा ने कहा की इस बार का मुनाफे का हिसाब पिछले महीने के हिसाब से कम है। इस पर अली की पत्नी फातिमा बोली की ऐसे तो हमारा गुजारा नहीं चल पायेगा। तब अली बोला की इस महीने तेल के दाम बढ़ चुके हैं इसलिये मुनाफ़ा थोड़ा कम हुआ है। यह सुनकर फातिमा बोली की आप भी अपने हलवे और पराठे के दाम बढ़ा दीजिये अच्छा मुनाफा होगा।
इस पर अली बोला की नहीं फातिमा मैं ऐसा नहीं कर सकता अगर मैं ऐसा करता हूँ तो ज्यादा लोग मेरा बना हुआ हलवा नहीं खरीद पाएंगे। इसके बाद फातिमा ने कहा की जैसा आप ठीक समझें। अली और फातिमा की यह बातें अली का छोटा भाई अकरम सुन रहा था।
एक दिन की बात है की फातिमा को एक फ़ोन आता है। फ़ोन पर बात करते ही वह रोने लगती है। जब अली फातिमा को देखता है की फातिमा रो रही है तो वह पूछता है की क्या हुआ फातिमा क्यों रो रही हो ?फातिमा बताती है की मेरी चाची अब इस दुनिया में नहीं रही। उनका इंतकाल हो चूका है। मुझे जल्द से जल्द चाचा के यहाँ जाना होगा।
यह सुनकर अली बोलता है रोओ मत फातिमा मैं भी तुम्हारे साथ चाचा के यहाँ चलता हूँ। इसके बाद अली अपने भाई अकरम से कहता है की जब तक मैं नहीं आता तब तक तुम हलवे पराठे की ठेली लगाना। और देखना की मेरे ग्राहकों को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। याद रखना की मैं हलवा बनाने के लिए दूकान से मंहगा और अच्छी गुणवत्ता का सामान खरीदता हूँ तुम सस्ते के चक्कर में मत पड़ना। इतना कहकर अली चला जाता है।
इसके बाद अकरम हलवे पराठे की ठेली लगना शुरू कर देता है। ग्राहक आकर आराम से हलवा पराठा खा रहे हैं। अकरम देखता है की पराठा बनाने के लिए तेल खत्म हो गया है। अकरम सोचता है अगली सुबह जाकर वह दूकान से सारा सामान खरीद लेगा।
अगली सुबह जब अकरम सामान लेने दूकान जाता है तो वह यह सोचकर सस्ता तेल ले लेता है की यह कौन सा उसके घर में उपयोग होने वाला है। रोज़ की तरह लोग ठेले पर आकर हलवा पराठा खाने लगते हैं। लेकिन कुछ देर बाद दो ग्राहक आते हैं हमने तुम्हारे यहाँ से हलवा खाया था और हमारी तबियत ख़राब हो गई। तुम्हारा बड़ा भाई अली कहाँ है हम उससे बात करते हैं की ये कैसा हलवा बनाया। यह सुनकर अकरम डर जाता है क्योंकि वह कई दिनों से सस्ता और मिलावटी तेल में बना हलवा पराठा बेच रहा था।
यह बात जब अली को पता चलती है तो वह अकरम को बहुत डांटता है और अकरम से कहता है की वह लोगों से माफ़ी मांगे। अकरम को अपनी गलती का एहसास जाता है और लोगों से माफ़ी मांगते हुए कहता है की वह आगे से ऐसा नहीं उसे अपने किये पर बहुत पछतावा है।
कहानी की सीख: कहानी हमें यह सिखाती है हमें अपने मतलब के लिए दूसरों को तकलीफ नहीं देनी चाहिए। ईमानदारी और मेहनत से कमाया पैसा जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
5.भेड़िये और सारस की कहानी
एक बार की बात है जंगल में एक भेड़िया बहुत ही भूखा प्यासा भटक रहा था। बहुत देर भूखा प्यासा भटकने के बाद भेड़िये को शिकार के लिए एक जानवर दिखा और भेड़िये ने जानवर को मारकर खा लिया जब भेड़िया जानवर को खा रहा था तो भेड़िये के गले में जानवर की हड्डी फंस गई।
बहुत प्रयास करने के बाद भी भेड़िये के गले से हड्डी नहीं लगी। गली में हड्डी को लेकर परेशान होने के बाद इधर उधर घूमने लगा की कोई गले से हड्डी निकलने में मेरी मदद कर दे पर कोई भी जानवर भेड़िये की मदद करने को तैयार नहीं था।
बहुत देर तक भटकने के बाद भेड़िये को एक सारस(stork) मिला भेड़िये अपनी सारी समस्या सारस को बताई। इसके बाद सारस ने कहा की अगर मैं तुम्हारी मदद करूँ तुम मुझे क्या दोगे। जिसके बाद भेड़िये ने कहा अगर तुम मेरी मदद करते हो मैं तुम्हें इनाम दूंगा। इनाम के लालच में सारस भेड़िये की मदद को तैयार हो गया।
अब सारस ने अपनी लम्बी चोंच को भेड़िये के मुंह में डालकर गले में फंसी हड्डी को बाहर निकाल दिया। जैसे ही सारस ने गले में फंसी हड्डी को बाहर निकाला भेड़िया बहुत खुश हुआ और जाने लगा। यह देखकर सारस ने कहा की तुमने तो कहा था की मदद करने के बदले में मुझे इनाम दोगे। और तुम तो जा रहे हो यह तो गलत है।
इसके बाद भेड़िये ने सारस से कहा की तुमने मेरे मुंह में अपनी गर्दन डाली और इसके बाद तुम सही सलामत बचे हुए हो यही तुम्हारा इनाम है। यह सुनकर सारस बहुत दुखी हुआ।
कहानी की सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमें स्वार्थी लोगों का साथ नहीं देना चाहिए। जीवन में हमेशा स्वार्थी लोगों से सावधान रहें।
6.दो मेढकों की कहानी
बहुत समय पहले की बात है की एक जंगल में मेंढकों का एक समूह रहता था। एक दिन सभी मेंढकों ने यह तय क्या की आज हम पुरे जंगल की यात्रा करते हैं। सभी मेंढक यात्रा करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद यात्रा करते हुए समूह में से दो मेंढक गहरे गड्ढे में गिर जाते हैं। जिसके बाद दोनों मेढक बाहर निकलने का काफी प्रयास करते हैं लेकिन दोनों में से कोई भी बाहर नहीं निकल पाता।
यह सब देखकर गड्ढे के बाहर उन दोनों मेंढकों के साथी तेज आवाज में चिल्ला रहे थे। और आपस में बात करते हुए यह बोल रहे थे की तुम्हारी कोशिश करना बेकार है। तुम कितनी भी कोशिश कर लो गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाओगे।
गड्ढे में मौजूद दोनों मेंढकों में एक मेंढक गड्ढे के बाहर सभी मेंढकों की यह बाते सुन रहा था। यह बातें सुनकर गड्ढे में मौजूद मेंढक बहुत निराश हुआ और गड्ढे से बाहर निकलने का प्रयास छोड़ दिया और निराश होकर अपने प्राण त्याग दिए। परन्तु दूसरा मेंढक अभी भी पूरी तरह से गड्ढे बाहर निकलने की कोशिश करने में लगा हुआ था। और गड्ढे के बाहर मौजूद सभी मेंढक उसका मजाक बना रहे थे और हंस रहे थे।
बार-बार प्रयास करने के बाद दूसरे मेंढक ने एक लम्बी छलांग लगायी और गड्ढे से बाहर निकल गया। समूह के सभी मेंढक यह देखकर हैरान रह गए। जब सबने पूछा की उसने ये कैसे किया तो उस मेंढक ने जवाब दिया वह बहरा है और वह बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था की उसे लगा बाकी सभी मेंढक उसे उत्साहित करने के लिए उछल रहे हैं।
कहानी की सीख: उपरोक्त मेंढक की कहानी हमें सिखाती हैं हमें जीवन में किसी की भी नकारत्मक बात नहीं सुननी चाहिए। दूसरों की नकारत्मक बातों में ध्यान देने की बजाय अगर हम सकारात्मक सोच के साथ प्रयास करें तो अपने कार्य में सफल हो सकते हैं।
7. शेर और चूहे की कहानी
एक बार की बात है की एक जंगल में जंगल का राजा शेर और चूहा रहा करते थे। एक बार जब शेर गहरी नींद में सो रहा था तब एक चूहा बिल से निकलकर शेर के ऊपर उछल कूद करने लगा। चूहे के इस तरह उछल कूद करने से शेर की नींद खुल गई और शेर ने चूहे को पकड़ लिया।
शेर द्वारा चूहे के पकड़े जाने के बाद चूहा बहुत ही ज्यादा डर गया। चूहे को डरा देखकर शेर ने कहा की तुमने मेरी नींद ख़राब की है अब मैं तुम्हें खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा। अपने को असहाय देखकर चूहे ने कहा की हे जंगल के राजा मुझ छोटे से प्राणी को खाने से आपकी भूख नहीं मिटेगी आप मुझे मत खाइये।
हे शेर राजा मैं विनती करता हूँ की आप मुझे छोड़ दो यदि कभी आपके ऊपर कभी कोई मुसीबत आती है तो मैं आपकी मदद कर सकता हूँ। यह सुनकर शेर हंसने लगा। तुम तो बहुत छोटे हो तुम क्या मेरी मदद करोगे। तुम्हारे विनती करने पर चलो आज तो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ लेकिन अगली बार ऐसा करने पर मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। यह कहकर शेर ने चूहे को छोड़ दिया।
कुछ दिन के बाद जब शेर खाने की तलाश में जंगल में भटक रहा था तो तभी शेर एक शिकारी द्वारा फैलाये गए जाल में फंस गया। शेर अपने आप को छुड़ाने के लिए बहुत प्रयास करने लगा। लेकिन अपने आप नहीं छुड़ा पाया। इसके कुछ देर बाद शेर जोर-जोर से दहाड़ मारने लगा। शेर की दहाड़ सुनकर चूहा वहां आ गया। जैसे ही चूहे ने शेर को जाल में फंसा हुआ देखा चूहा तुरंत ही शेर के पास पहुँच गया।
जब चूहे ने शेर को जाल में फंसा देखा तो चूहे ने फटाफट अपने तेज दांतों से जाल को काटना शुरू कर दिया। कुछ देर के बाद चूहे ने पूरा जाल काट दिया। जाल काटने के बाद शेर आजाद हो गया। चूहे की इस मदद से शेर बहुत ही भावुक हो गया। शेर ने चूहे को धन्यवाद दिया और दोनों उस दिन के बाद से अच्छे दोस्त बन गए।
कहानी की सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती सिर्फ शरीर के आधार पर किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए।
8. हाथी और सियार की कहानी
एक जंगल में एक हाथी और एक सियार रहता था। जंगल में सियार भूख से इधर उधर भटक रहा था। वन में घूमते-घूमते सियार एक जगह पर आया जहाँ उसने हांथी को देखा। हांथी को देखते ही सियार के मुंह में पानी आ गया। सियार हांथी को खाने के बारे में सोचने लगा।
यह सोचकर सियार हांथी के पास गया। हाथी के पास जाकर सियार बोला हाथी इस जंगल में बहुत से जानवर रहते हैं , लेकिन कोई भी जानवर आपसे ज्यादा बड़ा और समझदार जानवर नहीं है। क्या आप जंगल का राजा बनना पसंद करोगे। सियार की यह बात हाथी को अच्छी लगी। हाथी ने सियार को जंगल का राजा बनने के लिए हाँ बोल दिया।
हाथी के हाँ बोलने पर सियार ने बोला आप मेरे साथ चलो। खुशी से फुला ना समा रहा हाथी सियार के साथ चल दिया। सियार हाथी को एक तालाब के पास ले गया। सियार बोला आप तालाब में नहाने के लिए उतर जाओ। तालाब में बहुत ही दलदल था। राजा बनने की खुशी में हाथी तालाब में उतर गया। तालाब में उतरते हाथी धंसने लगा।
हाथी सियार से बोला की ये तुम मुझे कैसे तालाब में ले आये, मैं इसमें धंसता ही जा रहा हूँ। सियार यह सुनकर जोर-जोर से हँसने लगा। सियार बोला की मैं तुम्हें अपना शिकार बनाना चाहता था इसलिए मैं तुम्हें इस तालाब में लाया।
यह सुनकर हाथी मायूस होकर रोने लगा। हाथी ने तालाब से बाहर निकलने का बहुत प्रयास किया। लेकिन बाहर नहीं निकल पाया। धीरे-धीरे हाथी दलदल में धंसने लगा। हाथी को दलदल में फंसा देख सियार हाथी को खाने के लिए तालाब में उतर गया। जिसके बाद सियार के साथ -साथ हाथी भी दलदल में फंसकर मर गया।
कहानी की सीख: उपरोक्त कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वह स्वयं भी उस गड्ढे में गिरता है।
9.नन्हीं चिड़िया की कहानी
बहुत समय पहले की बात है। एक बहुत बड़ा घना जंगल हुआ करता था। एक बार की बात है जंगल में बहुत ही बड़ी भीषण आग लग गई। सभी जानवर आग देखकर डर गए और जान – बचाने हेतु इधर उधर भागने लगे।
आग लगने के कारण जंगल में बहुत ही ज्यादा भगदड़ मची हुई थी। हर कोई अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहा था। इस जंगल में एक नन्हीं सी चिड़ियाँ भी रहती थी। चिड़ियाँ ने देखा सभी जानवर बहुत भयभीत हैं। इस आग लगे हुए जंगल में मुझे जानवरों की मदद करनी चाहिए।
यह सोचकर नन्हीं सी चिड़िया एक नदी के पास चली गई। नदी में जाने के बाद चिड़ियाँ अपनी छोटी सी चोंच नदी की जल भर कर आग बुझाने का प्रयास करने लगी। चिड़ियाँ को देखकर एक उल्लू यह सोच रहा था की ये चिड़िया कितनी मुर्ख है। इतनी भीषण आग इसके द्वारा लाये पानी कहाँ बुझेगी।
यह देखकर उल्लू चिड़िया के पास गया की तुम बेकार ही मेहनत कर रही हो तुम्हारे लाये पानी से यह आग कहाँ बुझेगी। इस पर चिड़ियाँ ने बड़ी ही विनम्रता से जवाब दिया की मुझे बस अपना प्रयास करते रहना है चाहे आग कितनी भी भयंकर हो।
यह सुनकर उल्लू बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ और चिड़ियाँ के साथ आग बुझाने में लग गया।
कहानी की सीख: कहानी हमें यह सिखाती है की मुसीबत कितनी भी बड़ी हो हमें अपना प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए।
10.गधे और धोबी की कहानी
एक निर्धन धोबी था। उसके पास एक गधा था। गधा काफी कमजोर था क्योंकि उसे बहुत कम खाने-पीने को दिया जाता था। एक दिन , धोबी को एक मरा हुआ बाघ मिला। धोबी ने सोचा की , मैं गधे के ऊपर इस बाघ की खाल को डाल दूँ और इस गधे को पड़ोसियों के खेत में चरने के लिए छोड़ दूँ।
गधे को देखकर किसान समझेंगे की यह एक सचमुच का बाघ है। इससे डरकर दूर रहेंगे और गधा आराम से सारा खेत चर लेगा। धोबी ने यह योजना बनाकर तुरंत इस योजना पर काम किया।
एक रात की बात है की गधा खेत चर रहा था। तभी गधे को किसी गधी की रेंकने की आवाज सुनाई दी। इस आवाज को सुनकर गधा इतने जोश में आ गया की वह जोर-जोर से रेंकने लगा। गधे के चिल्लाने से गांव वालों गधे की असलियत का पता चल गया। और लोगों ने गधे की खूब पिटाई कर दी।
कहानी की सीख: ऊपर दी गई कहानी हमें सिखाती है की सच्चाई कभी नहीं छुपती। वह एक न एक दिन बाहर आ ही जाती है।
11.एक बूढ़े आदमी की कहानी
एक बार की बात है एक गांव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। पुरे गाँव में बूढ़े व्यक्ति को सब बद किस्मत मानते थे। पूरा गांव बूढ़े व्यक्ति को अपनी अजीबो गरीब हरकतों से परेशान करता था। सारा गाँव उस बूढ़े व्यक्ति से थक चूका था।
बूढ़ा व्यक्ति हमेशा ही सबसे नाराज़ रहता था। जिस कारण बूढ़े व्यक्ति का स्वाभाव हमेशा ही उदास और चिड़चिड़ेपन वाला हो गया था।
बूढ़ा व्यक्ति जितने दिन भी जीवित रहता वह उतना ही दुखी रहता। बूढ़े व्यक्ति के द्वारा बोले गए शब्द लोगों को तीर की तरह चुभते थे। हर कोई उस बूढ़े व्यक्ति से बात करने से बचता था। कहने की बात यह है की बूढ़े व्यक्ति का दुर्भाग्य हर किसी के लिए घातक हो गया था।
उस बूढ़े व्यक्ति से जो भी मिलता था उसके लिये सारा दिन अशुभ हो जाता था , लोगों को लगता था की बूढ़े व्यक्ति के बगल में रहना अस्वाभाविक और अपमानजनक है। बूढ़े व्यक्ति के पास होने से लोग बहुत ही ज्यादा दुखी हो जाते थे।
लेकिन एक दिन ऐसा हुआ ही बूढ़ा व्यक्ति सबको बहुत ही ज्यादा खुश नज़र आ रहा था। बात ऐसी थी की आज बूढ़ा व्यक्ति 80 साल का हो गया था। यह बात पुरे गाँव में आग की तरह फ़ैल गई। बूढ़ा व्यक्ति आज किसी से कोई शिकायत नहीं कर रहा था। लोगों ने पहली बार जीवन में बूढ़े व्यक्ति को इतना खुश देखा
सभी गाँव के लोग इकट्ठा हो गए। सबने में यह जानने की इच्छा थी की आज बूढ़ा व्यक्ति इतना खुश क्यों है एक आदमी से बूढ़े आदमी से पूछा तुम्हें क्या हुआ है ?आज इतना क्यों खुश हो।
जवाब देते हुए बूढ़ा व्यक्ति बोला : आज कुछ ख़ास नहीं। मैं अपने पुरे जीवन में 80 साल से खुशी की तलाश कर रहा था। पर मुझे कभी खुशी नहीं मिली। जीवन भर मेरी यह तलाश बेकार ही गई। लेकिन आज मैंने यह सोच लिया है की अब से मैं बिना खुशी की तलाश के जीवन जीऊंगा और में अब यही सोच कर खुश हूँ।
कहानी की सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिली की हमें जीवन में खुशी को ढूढ़ने के लिए उसके पीछे नहीं भागना चाहिए। जीवन आनंदमयी तरीके से जिओ तो खुशी अपने आप मिलेगी।
12. लोमड़ी और अंगूर की कहानी
बहुत समय पहले की बात है की एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहा करती थी। एक दिन लोमड़ी भूख के मारे पुरे जंगल में इधर-उधर भटक रही थी। लोमड़ी ने पूरा जंगल छान मारा लेकिन लोमड़ी को खाने को कुछ नहीं मिला। पुरे जंगल में खाने की तलाश में भटकते हुए लोमड़ी थक हार कर एक पेड़ के नीचे बैठ गई।
बैठे-बैठे लोमड़ी को नींद आ गई। थोड़ी देर सोने के बाद लोमड़ी की आँखे खुली तो देखा की एक पेड़ पर पके और रसभरे अंगूर लटक रहे हैं। अंगूर को देखते ही लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया। अंगूर खाने के लिए लोमड़ी उछल-उछल कर प्रयास करने लगी। लेकिन कई बार प्रयास करने के बावजूद अंगूर लोमड़ी के हाथ नहीं लगे। पेड़ पर अंगूर काफी ऊंचाई पर लगे हुए थे। थक हार कर लोमड़ी ने कहा की छोड़ो मैं अंगूर नहीं खाती अंगूर खट्टे हैं।
13. नगर में कितने तोते हैं लघु कथा
एक बार की बात है की अकबर बादशाह ने अपनी सभा में मौजूद सभी लोगों से एक बहुत ही अजीब सा सवाल पूछा की हमारे नगर में कितने तोते हैं ? यह सवाल सुनकर सभा में सभी लोग हैरान थे। तभी सभा में बीरबल दाखिल हुए। पूछा की क्या बात है ?
अकबर बादशाह ने अपना सवाल फिर से दोहराया तो इस पर बीरबल ने जवाब दिया की बादशाह अकबर हमारे नगर में बीस हजार पांच सौ तेईस (20,523) तोते हैं। सब बीरबल का यह जवाब सुनकर चौंक गए।
सभा में सब यह सोच रहे थे की बीरबल को यह जवाब कैसे पता। इसके बाद बीरबल ने बादशाह अकबर से कहा की बादशाह अकबर आप अपने आदमियों को तोते गिनने के लिए कहें।
बादशाह यदि आप आपके द्वारा भेजे गए आदमियों को तोते ज्यादा मिलते हैं तो इसका मतलब यह है की तोते के रिश्तेदार आस – पास के दूसरे शहर से मिलने आये होंगे। और यदि तोते कम मिलते हैं तो जरूर नगर के तोते अपने रिश्तेदारों से मिलने दूसरे नगर गए होंगे।
बीरबल का यह जवाब सुनकर बादशाह अकबर को बहुत अच्छा लगा। अकबर ने खुश होकर बीरबल को हीरे और मोती से जड़ी माला भेंट कर दी। इसके बाद अकबर ने बीरबल की बुद्धि की बहुत तारीफ़ की।
कहानी की सीख: उपरोक्त कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमारे द्वारा दिए गए किसी प्रश्न के उत्तर को समझाने के लिए तर्कपूर्ण सपष्टीकरण होना चाहिए।
14.जादुई बॉल की कहानी (magic ball story):
बहुत समय से पहले की बात है की एक बार एक छोटा लड़का था जिसका नाम श्याम था वह एक बगीचे में एक बरगद पेड़ के नीचे खेल रहा था। बच्चे को खेलते-खेलते बगीचे में एक क्रिस्टल बॉल मिली। यह एक जादुई क्रिस्टल बॉल थी जो किसी भी इच्छा को पूरा कर सकती थी।
बच्चा यह जानकर बहुत खुश हुआ की उसे जादुई बॉल मिल गई। बॉल मिलते ही बच्चे ने बॉल को अपने बैग में रख लिया। बच्चे ने सोचा जब तक उसकी इच्छाएं पूरी नहीं होती वह बॉल को अपने पास ही रखेगा।
ऐसा सोचते हुए बहुत दिन निकल गए और बच्चे को यह समझ नहीं आ रहा था की वह जादुई बॉल से क्या मांगे। एक दिन श्याम का एक दोस्त राम उसके पास पाया राम ने क्रिस्टल बॉल श्याम के पास देखी और बॉल बैग से निकाल ली। इसके बाद राम बॉल को लेकर पुरे गांव में घूमने लगा।
गाँव में बॉल को देखकर सब अपने लिए धन , महल और सोना चांदी मांगने लगे। लेकिन सभी को बस अपनी एक ही इच्छा पूरी करने का मौका मिल रहा था। अंत में सबको अपनी इच्छाओं को पूरी करने का पछतावा हो रहा था। क्योंकि लोगों को लग रहा था की उन्हें जो चाहिए था वो नहीं मिला।
गाँव के सभी लोग दुखी होकर श्याम के पास पहुंचे। श्याम ने सबकी हालत देखी और बॉल से इच्छा व्यक्त की सब कुछ पहले जैसा हो जाए। बॉल ने सब कुछ पहले जैसा कर दिया यह देख सबने श्याम को धन्यवाद किया। सब श्याम के सूझबूझ की तारीफ कर रहे थे।
कहानी की सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है बहुत ज्यादा धन, सोना और चांदी भी हमें खुशी और सुख नहीं दे सकता। जीएवं में हमें जितना मिला है उसी में संतोष करें। जीवन तभी सुखमय होगा।
15.बातूनी कछुए की कहानी
एक बार की बात है की एक तालाब में एक कछुआ और दो हंसों का जोड़ा रहा करता था। हंस और कछुए में बहुत ही गहरी दोस्ती थी। कछुआ बहुत ही बातूनी था वह हंसों से बहुत बाते करता और शाम होते ही अपने घर चला जाता।
एक बार की बात है जहाँ तालाब था वहां बारिश के मौसम में बारिश नहीं हुई तालाब सूखने लगा। कछुए को चिंता होने लगी की गर्मी के मौसम आते-आते तालाब पूरी तरह से सुख जाएगा। इस पर कछुआ हंसों के पास गया और कहा की तुम आस-पास के क्षेत्र में जाओ और ऐसा तालाब का पता लगाओ की जहाँ पानी हो जहां हम जाके रह सके।
हंसों ने पास के एक गाँव में एक पानी से भरा तालाब खोज लिया। ये बात उन्होंने कछुए को जाकर बता दी। इसके बाद कछुए ने हंसों से कहा की तुम मुझे भी वहां ले चलो। हंसों ने कहा की ठीक है हम एक लकड़ी लाते हैं हम तुम्हें उस पर बिठा देंगे और तुम्हें ले चलेंगे। बस एक शर्त यह है की तुम पुरे रास्ते अपना मुंह बंद रखोगे। यदि तुम मुंह खोलोगे तो तुम गिर जाओगे। कछुए ने वादा किया ठीक है।
इसके बाद दोनों हंसों ने लकड़ी एक-एक कोने से अपनी चोंच में दबा ली और लकड़ी को बीच में से कछुए ने अपने मुंह में पकड़ ली। जब दोनों हंस कछुए को लेकर आसमान में उड़ रहे थे तो तभी रास्ते में एक गाँव आया। गाँव में खेल रहे सभी बच्चे यह देख चिल्लाने लगे की कछुआ आसमान में उड़ रहा है।
यह देख कछुआ नीचे देखने लगा। कछुए को यह सब देख रहा नहीं गया। कछुए ने हंसों से बात करने के लिए जैसे ही मुंह खोला लकड़ी टूट गई और कछुआ हंसों से छूटकर गांव में गिर गया।
ज्यादा ऊंचाई से गिरने के कारण कछुए को बहुत चोट लगी और थोड़ी देर बाद कछुआ तड़पकर मर गया।
कहानी की सीख: कहानी से हमें यह सीख मिलती है की बुद्धिमान व्यक्ति शांत और चुप रहते हैं और मुर्ख व्यक्ति चंचल और अपने पर काबू नहीं रख पाते।
16.चींटी और कबूतर की कहानी
एक जंगल में गर्मियों के दिन थे और एक चींटी पानी की तलाश में इधर-उधर घूम रही थी। प्यासी चींटी को काफी देर भटकने के बाद एक नदी देखी। नदी को देखकर चींटी बहुत खुश हुई। प्यासी चींटी पानी पीने के लिए एक छोटी सी चट्टान पर चढ़ी और वह फिसल कर नदी में गिर गई।
नदी में गिरने के कारण चींटी नदी में डूबने लगी। नदी के पास में एक कबूतर रहता था वह पेड़ पर बैठकर यह सब देख रहा था कबूतर ने देखा की चींटी को तुरंत ही मदद की जरूरत है। कबूतर उड़कर गया और एक पेड़ से पत्ता तोड़कर ले आया। इसके बाद कबूतर ने पत्ता नदी में गिरा दिया। जिसके बाद चींटी तैरकर पत्ते पर चढ़ गई और पत्ता बहकर नदी के किनारे आ गया। जिसके बाद चींटी नदी किनारे आ गयी और चींटी की जान बच गयी।
इस घटना के चींटी और कबूतर में अच्छी दोस्ती हो गई। दोनों खुशी से साथ रहने लगे। फिर एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। शिकारी ने पेड़ पर कबूतर को बैठे देखा शिकारी ने कबूतर मारने के लिए बन्दूक से निशाना साधा।
लेकिन पास में मौजूद चींटी यह सब देख रही थी चींटी तुरंत ही शिकारी के पास गई। और चींटी ने पूरी ताकत से शिकारी के पैर पर काटा। जिससे शिकारी दर्द के मारे चिल्लाने लगा। शिकारी के हाथ से बंदूक गिर गई। शिकारी की आवाज़ सुनकर कबूतर ने शिकारी को देख लिया। कबूतर तुरंत ही वहां से उड़ गया।
जब शिकारी चला गया और इसके बाद कबूतर ने चींटी के पास जाकर उसका धन्यवाद किया। इस तरह से हम देखें चींटी और कबूतर एक दूसरे के काम आये।
कहानी की सीख: उपरोक्त कहानी से हमें यह सीख मिलती है की जीवन में किये गए नेकी और अच्छे काम कभी बेकार नहीं जाते। अच्छे काम करते रहिये इनका फल लौटकर जरूर आपके पास आता है।
17. चुगलखोर नंदू को दण्ड
नंदू चूहे में एक बुरी आदत थी, वह भी बहुत बोलने की हर समय वह कुछ न कुछ बोलता ही रहता था। उसकी माँ उसे समझाया करती थी कि बेटा बहुत बोलने की आदत ठीक नहीं है। व्यर्थ बोलने में बहुत-सी शक्ति खर्च होती है। काम की बात ही बोलो, पर नंदू था कि मानता ही न था।
धीरे-धीरे नंदू में चुगलखोरी की आदत भी आ गयी। वह इधर की उधर लगाने लगा, झूठ भी बोलने लगा। वह झूठ बोलकर, चुगलखोरी करके दूसरों में लड़ाई भी कराने लगा। ऐसा करने में उसे मजा आने लगा।
नंदू रोज ही कुछ न कुछ शरारत करने लगा। एक दिन उसने देखा कि मीतू बतख अपनी चोंच में खाना दबाये चली आ रही है। मीतू यह खाना अपने बच्चों के लिये ले जा रही थी। खाना देखकर नंदू को भी भूख लगने लगी। वह सोचने लगा कि वैसे तो मीतू कुछ देगी नहीं। इसलिये उसके पास पहुँच गया और बोला- “नमस्ते मीतू मौसी!”
‘नमस्ते बेटा! खुश रहो।’ मीतू कहने लगी।
नंदू बोला- ‘मौसी! सारस मामा कह रहे थे कि तुम कुछ भी काम नहीं करती हो। तुम्हारा खाना भी वे ही खोजते है।’
यह सुनकर मीतू एकदम भड़क उठी और बोली-‘हाँ-हाँ! मैं तो निकम्मी हूँ, मैं क्यों ढूँढूगी अपना खाना?’
फिर वह अपने मुँह से जोर-जोर से बक-बक की आवाज निकालते हुए, आँखें नचाते हुए बोली-‘यह सोना सारस भी न जाने अपने आप को क्या समझता है। एक दिन खाना खिला दिया तो रोज-रोज गाता फिरता है। अभी देखती हूँ उसे जाकर।’ और वह पैर पटकती, अपना खाना छोड़कर तुरंत चल दी। नंदू चूहे ने बड़ी खुशी से वह खाना खाया। फिर संतोष से अपनी मूछों पर हाथ फिराया। इसके बाद वह मीतू बतख और सोना सारस की लड़ाई देखने चल दिया। सोना सारस को तो कुछ भी पता न था। मीतू बतख जोर-जोर से लड़ती ही जा रही थी। नंदू चूहे को उनकी इस लड़ाई में खूब मजा आया। ऐसी अनेक तरह की लड़ाइयाँ कराना नन्दू चूहे के लिये बड़ी मामूली सी बात थी। उसकी माँ उसे हमेशा समझाती थी- ‘नन्दू तुम जैसा काम करोगे वैसा ही तुम्हें फल मिलेगा। बुरे काम करने वालों को सदैव बुरा फल मिलता है।’ पर नन्दू को अभी तक कोई बुरा फल मिला न था। इसलिये वह बुरे काम छोड़ नहीं पाता था।
एक दिन नन्दू घूमते-घूमते महाराज सिंह की गुफा तक जा पहुँचा। महाराज बैठे आराम कर रहे थे। नन्दू को यहाँ भी शरारत सूझी। उसकी झूठ बोलने की आदत यहाँ भी न छूटी। उसने हाथ जोड़कर महाराज के आगे झुककर नमस्कार किया और बोला-‘राजन् ! आप जैसे प्रतापी राजा कभी-कभी ही भाग्य से मिलते हैं।’
सिंह ने अपने नथुनों को जोर से हिलाया और मूछों को गर्व से फड़फड़ाया।
नंदू आगे कहने लगा-‘महाराज ! कोई आपकी बुराई करे तो मुझसे सहन नहीं होता।’
‘किसमें है इतना साहस?’ शेर दहाड़ा।
नंदू ने दोनों हाथ जोड़ते हुए झुककर कहा- ‘महाराज ! आपका मंत्री भोलू भालू यह कह रहा था कि आप तो सारे ही दिन पड़े-पड़े आराम फरमाते रहते है। जनता के सुख-दुःख से आपको कोई मतलब नहीं है।”
‘अच्छा ! कहकर सिंह गरजा। उसने नन्दू को वहीं रुकने का आदेश दिया और एक सैनिक को हुक्म देकर भेजा भोलू भालू को बुलाने के लिये। नंदू मन में सोचने लगा कि आज मैं अच्छा फँसा। उसने तो सोचा था कि सिंह को भड़का कर वह तो चला जायेगा, पीछे सिंह और भालू दोनों आपस में लड़ते रहेंगे। पर सिंह ने तो उसे यहीं पर बैठने का आदेश दिया था। अब तो वहाँ से बाहर निकलना भी संभव न था।
तभी नंदू के दुर्भाग्य से मीतू बतख और सोना सारस भी वहीं आ पहुँचे। अब उन दोनों में सुलह हो गयी थी। नन्दू की वह चालाकी उन्हें पता लग गयी थी। वे उसकी चुगल खोरी की महाराज से शिकायत करने आये थे। मीतू बतख ने विस्तार से सारी घटना बतायी। उसे सुनकर सिंह को नन्दू चूहे पर बड़ा गुस्सा आया।
तभी दरबार में लोमड़ी, हाथी, ऊँट, भालू आदि और जानवर भी आ गये। वे भी कभी न कभी नन्दू की शरारतों को भुगत चुके थे। सभी ने नन्दू की बुराई की। भोलू भालू कह रहा था-‘महाराज ! मैंने तो कभी किसी से आपकी बुराई नहीं की। यह नन्दू ही सभी की बुराई करता फिरता है।’ ऊँट, हाथी, लोमड़ी आदि सभी ने अपनी-अपनी गर्दन हिलाकर इस बात का समर्थन किया।
अब सिंह को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ गया। उसने नंदू को दंड सुनाया ! नंदू तुम्हारी इस आदत से सभी में झगड़ा होता है। दूसरों में लड़ाई करवाकर तुम तमाशा देखते हो, मुझे तुम पर गुस्सा तो इतना आ रहा है की तुम्हे फांसी पर चढ़ा दूँ। पर अभी ऐसा नहीं होगा। एक बार तुम्हे संभलने का मौका दिया जायेगा।
मैं सैनिकों को आदेश देता हूँ की तुम्हारी पुँछ और मूछों को काट लें। सिंह के सैनिकों ने आगे बढ़कर ऐसा ही कर दिया । मीतू बतख बोली-‘कितना ही समझाया था इस नंदू को, पर यह अपनी चुगलखोरी और झूठ बोलने की आदत छोड़ता ही न था । आखिर में इसे इसका दण्ड तो मिल गया। अब यह अपनी सब गलत आदतें छोड़ देगा।’ सोना सारस कर रहा था- ‘बुरे काम का फल निश्चित ही मिलता है। आज नहीं तो कल वह भुगतना पड़ता है।’ ‘न तो कोई प्राणी किसी का बुरा सोचें और न किसी का बुरा करें। हमेशा सबका भला सोचे और भला करें। इसी में बुद्धिमानी है।’ भोलू भालू ने कहा।
नंदू चूहे का सिर शर्म से झुक गया था। कटी पूँछ और कटी मूछों को लेकर माँ के सामने वह दहाड़े मारकर रो पड़ा।
माँ सिर पर हाथ फिराती हुई बोली-‘बेटा ! जो हुआ है उसे भूल जाओ। मूँछ और पूँछ तो दुबारा आ जायेंगी। अब तुम अच्छा बनने की कोशिश करो।’ ‘हाँ माँ।’ ऐसा कहकर नन्दू अपनी माँ से चिपटकर बिलख पड़ा।
कहानी की सीख: हमेशा बड़ों की बात माननी चाहिए, वे हमेशा हमारा भला ही चाहते हैं, दूसरा हमें कभी भी किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए।
हिंदी की लघु कथाओं (Short Stories) से संबंधित प्रश्न एवं उत्तर (FAQs)
प्रसिद्ध दो बैलों की कथा किसकी रचना है ?
प्रसिद्ध लघु कथा दो बैलों की कथा हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की रचना है।
रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविता कौन सी है ?
रामधारी सिंह दिनकर 10 प्रसिद्ध कविताएँ इस प्रकार से है –
अरुणोदय
हिमालय
तक़दीर का बँटवारा
आग की भीख
जवानी का झंडा
दिल्ली
वसंत के नाम पर
प्रभाती
शेर और चूहे की कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
शेर और चूहे की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की शरीर के आकर पर हमें किसी की क्षमता को नहीं आंकना चाहिए।
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