![सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! अब इस चीज़ पर नहीं लगेगा सर्विस टैक्स, सरकार को झटका](https://newzoto.com/wp-content/uploads/2025/02/Big-decision-of-Supreme-Court-1024x576.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में लॉटरी की बिक्री और उस पर लगाए जाने वाले कर को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो इस उद्योग से जुड़े सभी लोगों के लिए एक अहम संदेश देता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि लॉटरी पर केंद्र सरकार सर्विस टैक्स नहीं लगा सकती, क्योंकि यह सट्टेबाजी और जुआ के अंतर्गत आती है, जो संविधान की राज्य सूची का हिस्सा है। इस फैसले से लॉटरी उद्योग में काम कर रहे वितरकों और खरीदारों को बड़ी राहत मिली है।
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केंद्र सरकार की अपील खारिज, राज्यों के अधिकारों की पुष्टि
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एनके सिंह शामिल थे, ने केंद्र सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें लॉटरी वितरकों से सर्विस टैक्स वसूलने की मांग की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि लॉटरी वितरकों को केंद्र सरकार को कोई सर्विस टैक्स देने की आवश्यकता नहीं है।
यह मामला सिक्किम उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर किया गया था, जिसमें यह कहा गया था कि लॉटरी पर केवल राज्य सरकार को कर लगाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखते हुए केंद्र की दलीलों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि लॉटरी टिकट की बिक्री और वितरण किसी सेवा के दायरे में नहीं आता, इसलिए इस पर सर्विस टैक्स नहीं लगाया जा सकता।
राज्य सरकारें ही कर वसूलने के लिए अधिकृत
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेदों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि लॉटरी ‘सट्टेबाजी और जुआ’ की श्रेणी में आती है, जो राज्य सूची की एंट्री 62 के अंतर्गत आती है। इसका अर्थ यह है कि केंद्र सरकार को इस पर कोई कर लगाने का अधिकार नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है।
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि यह निर्णय लॉटरी वितरकों और खरीदारों के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल राज्य सरकारें ही लॉटरी पर कर लगा सकती हैं। इससे लॉटरी उद्योग में पारदर्शिता बनी रहेगी और राज्यों को राजस्व प्राप्ति का पूरा अधिकार मिलेगा।
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भविष्य में लॉटरी उद्योग पर क्या होगा प्रभाव?
इस फैसले का सबसे बड़ा असर यह होगा कि लॉटरी व्यवसाय से जुड़े वितरकों को अब केंद्र सरकार को कोई सर्विस टैक्स नहीं देना पड़ेगा, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। साथ ही, राज्य सरकारों को इस उद्योग से मिलने वाले राजस्व में कोई बाधा नहीं आएगी और वे अपने नियमानुसार कर लागू कर सकेंगी।
इसके अलावा, यह फैसला भविष्य में केंद्र और राज्यों के अधिकारों को लेकर होने वाले अन्य कर संबंधी विवादों के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह स्पष्ट करता है कि संविधान में दी गई शक्तियों का पालन किया जाना आवश्यक है और केंद्र सरकार को केवल उन्हीं करों को लगाने का अधिकार है, जो उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।