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होम लोन नहीं चुका पाए तो क्या बैंक ले जाएगा घर? जानिए नीलामी से पहले कितनी मिलती है मोहलत

होम लोन की EMI समय पर न दे पाने पर क्या तुरंत घर की नीलामी हो जाती है? क्या आपको कोई चेतावनी या मोहलत मिलती है? जानिए बैंक की पूरी प्रक्रिया, आपके विकल्प और वो जरूरी मौका जब आप अपना घर बचा सकते हैं। पढ़ें पूरी जानकारी आगे।

By Saloni uniyal
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होम लोन नहीं चुका पाए तो क्या बैंक ले जाएगा घर? जानिए नीलामी से पहले कितनी मिलती है मोहलत
होम लोन नहीं चुका पाए तो क्या बैंक ले जाएगा घर? जानिए नीलामी से पहले कितनी मिलती है मोहलत

आज के दौर में जब रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छू रही हैं, तो आम आदमी के लिए होम लोन (Home Loan) एकमात्र विकल्प बन गया है अपना खुद का घर खरीदने का। लेकिन जब आप होम लोन की EMI समय पर नहीं चुका पाते, तो सवाल उठता है – क्या बैंक तुरंत मकान छीन लेता है? क्या घर की नीलामी तुरंत कर दी जाती है? इन सवालों को लेकर लोगों के मन में डर और भ्रम दोनों होते हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि अगर कोई व्यक्ति होम लोन की EMI चुकाने में चूक करता है, तो बैंक की तरफ से क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है, कब तक मोहलत दी जाती है और प्रॉपर्टी की नीलामी की स्थिति में क्या-क्या विकल्प उपलब्ध रहते हैं।

होम लोन की EMI नहीं चुकाने पर बैंक का पहला कदम क्या होता है?

अगर आपने Home Loan की EMI एक महीने के लिए मिस कर दी है तो घबराने की जरूरत नहीं होती। बैंक इसे एक सामान्य चूक (Default) के तौर पर देखता है। पहली EMI न चुकाने पर आमतौर पर बैंक कोई कठोर कदम नहीं उठाता बल्कि आपको SMS, ईमेल या कॉल के जरिए रिमाइंडर भेजता है। यह एक चेतावनी होती है जिससे आपको समय रहते अपने बकाया का भुगतान करने का मौका मिलता है। बैंक इस स्तर पर ग्राहक से बातचीत करके समाधान की कोशिश करता है।

लगातार 3 महीनों तक EMI न देने पर क्या होता है?

अगर कोई ग्राहक लगातार तीन महीनों तक अपनी EMI नहीं चुकाता है, यानी 90 दिनों तक अकाउंट में कोई क्रेडिट नहीं होता, तो बैंक उस लोन को NPA यानी Non Performing Asset घोषित कर देता है। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ होता है क्योंकि इसके बाद बैंक कानूनी प्रक्रिया की ओर बढ़ना शुरू कर सकता है।

NPA घोषित होने के बाद क्या बैंक मकान जब्त कर लेता है?

होम लोन डिफॉल्टर (Home Loan Defaulter) घोषित होने के बाद भी बैंक मकान तुरंत जब्त नहीं करता। बैंक सबसे पहले SARFAESI Act के तहत एक कानूनी नोटिस भेजता है जिसमें 60 दिनों की मोहलत दी जाती है। इस नोटिस में लिखा होता है कि आपको बकाया राशि चुकानी है, नहीं तो बैंक अगला कानूनी कदम उठाएगा। यह नोटिस एक और मौका होता है जिससे आप अपने कर्ज की स्थिति सुधार सकते हैं।

नीलामी से पहले कितने मौके मिलते हैं?

नीलामी (Auction) एक अंतिम कदम होता है और इससे पहले बैंक कई मौके देता है। 60 दिनों के नोटिस के बाद भी अगर उधारकर्ता कोई समाधान नहीं देता है, तब बैंक नीलामी की प्रक्रिया शुरू करता है। लेकिन इससे पहले भी डिफॉल्टर को बैंक से बातचीत करने, लोन रीस्ट्रक्चर कराने, टेम्पररी EMI राहत लेने जैसे विकल्प दिए जाते हैं। बैंक के हित में भी होता है कि मामला नीलामी तक न पहुंचे क्योंकि यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है।

नीलामी प्रक्रिया कितनी लंबी होती है?

अगर कोई समाधान नहीं निकलता और बैंक प्रॉपर्टी कब्जे में लेने का फैसला करता है, तो नीलामी की प्रक्रिया में आम तौर पर 6 से 7 महीने का समय लग सकता है। इस दौरान प्रॉपर्टी की वैल्यूएशन की जाती है, फिर सार्वजनिक तौर पर नीलामी की तारीख और नियमों का ऐलान किया जाता है। इसका नोटिस समाचार पत्रों और बैंक की वेबसाइट पर जारी किया जाता है।

क्या प्रॉपर्टी की नीलामी रोकी जा सकती है?

अगर उधारकर्ता को लगता है कि प्रॉपर्टी की कीमत कम आंकी गई है या नीलामी की प्रक्रिया में कोई त्रुटि है, तो वह कोर्ट में अपील कर सकता है या बैंक को कानूनी नोटिस देकर प्रक्रिया को चुनौती दे सकता है। इसके अलावा, अगर डिफॉल्टर आखिरी समय में भी बकाया चुका दे या बैंक से समझौता कर ले, तो नीलामी को टाला जा सकता है।

नीलामी के बाद क्या डिफॉल्टर को कुछ पैसा वापस मिल सकता है?

अगर बैंक द्वारा नीलामी की गई प्रॉपर्टी की कीमत लोन बकाया से अधिक होती है, तो बची हुई रकम उधारकर्ता को लौटा दी जाती है। उदाहरण के लिए, अगर बकाया ₹40 लाख है और प्रॉपर्टी ₹50 लाख में नीलाम होती है, तो ₹10 लाख की राशि उधारकर्ता को मिलती है। इस राशि पर उसका पूरा अधिकार होता है।

क्या होम लोन न चुका पाने की स्थिति में बैंक से समाधान संभव है?

जी हां, यदि समय रहते ग्राहक बैंक से संपर्क करता है और अपनी वित्तीय स्थिति स्पष्ट करता है, तो बैंक कुछ विकल्प दे सकता है जैसे:

  • EMI को अस्थायी तौर पर कम करना
  • लोन की अवधि बढ़ाकर किस्तें घटाना
  • मोरेटोरियम की सुविधा देना
  • लोन रीस्ट्रक्चरिंग की प्रक्रिया लागू करना

इसलिए जरूरी है कि डिफॉल्ट की स्थिति में बैंक से भागने के बजाय संपर्क में रहें और समाधान खोजें।

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