
भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan) के बीच लगातार बढ़ रहे तनाव के बीच एक बार फिर युद्ध (War) की परिस्थितियां बनती नजर आ रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या भारतीय सेना (Indian Army) के जवान युद्ध में लड़ने से इनकार कर सकते हैं? Can Soldiers Refuse to Fight जैसे सवाल सोशल मीडिया और आम चर्चा में छा गए हैं। इसी विषय को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको विस्तार से बताएंगे कि क्या वाकई कोई सैनिक जंग से पीछे हट सकता है और इसके क्या नियम-कानून हैं।
युद्ध की आशंका और सरकार की तैयारी
हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बढ़ता तनाव किसी भी वक्त युद्ध का रूप ले सकता है। इसे देखते हुए भारत सरकार ने कई राज्यों में मॉक ड्रिल (Mock Drill) आयोजित करने का निर्देश दिया है। गृह मंत्रालय ने विशेष रूप से 7 मई को सभी राज्यों में सिविल डिफेंस (Civil Defence) मॉक ड्रिल आयोजित करने का आदेश जारी किया है, ताकि हवाई हमले की स्थिति में आम जनता को सुरक्षित रखा जा सके। ऐसा आदेश इससे पहले 54 साल पहले 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जारी हुआ था।
सेना में ड्यूटी से इनकार का क्या है नियम?
भारतीय सेना के जवान देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए हर परिस्थिति में तैयार रहते हैं। उनकी ट्रेनिंग, अनुशासन और शपथ इस बात की गवाही देते हैं कि वे अपनी ड्यूटी निभाने से पीछे नहीं हटते। जब कोई व्यक्ति सेना में भर्ती होता है, तब वह एक औपचारिक शपथ लेता है कि वह देश की सेवा और रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति तक देने को तैयार रहेगा। इसलिए सामान्य परिस्थितियों में कोई सैनिक युद्ध लड़ने से इनकार नहीं कर सकता।
विवेकपूर्ण आपत्ति (Conscientious Objection) क्या है?
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकार सिद्धांतों के अंतर्गत एक विशेष परिस्थिति मानी जाती है — जिसे “विवेकपूर्ण आपत्ति” (Conscientious Objection) कहा जाता है। यह तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने धार्मिक, नैतिक या निजी सिद्धांतों के आधार पर हथियार उठाने या सैन्य सेवा करने से इनकार करता है। भारत में इस सिद्धांत को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं मिली है, लेकिन कुछ लोकतांत्रिक देशों में इसे संवैधानिक अधिकार माना गया है।
भारतीय सेना में, यदि कोई सैनिक विवेकपूर्ण आपत्ति के आधार पर जंग से इनकार करता है, तो इसे सैन्य अनुशासन की अवहेलना माना जा सकता है, क्योंकि भारत में सैन्य सेवा अनिवार्य ड्यूटी मानी जाती है।
किन परिस्थितियों में सैनिक को जंग से छुट दी जा सकती है?
सेना में कुछ विशेष परिस्थितियों में सैनिक को जंग में भाग लेने से छूट दी जा सकती है। जैसे:
- अगर वह गंभीर रूप से बीमार या घायल हो।
- मानसिक तनाव या मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा हो।
- अगर उसे ड्यूटी से पूर्व ही अवकाश स्वीकृत किया गया हो।
हालांकि, यह निर्णय केवल संबंधित सैन्य अधिकारी और मेडिकल टीम की रिपोर्ट के आधार पर लिया जाता है। स्वेच्छा से या निजी कारणों के आधार पर जंग से इनकार करने को सैन्य अनुशासन का उल्लंघन माना जाता है, और इसके लिए कोर्ट मार्शल (Court Martial) तक की कार्रवाई हो सकती है।
भारतीय सेना की भूमिका और कर्तव्य
भारतीय सेना न केवल युद्ध के समय बल्कि प्राकृतिक आपदा, आतंकवाद और अन्य संकटों में भी अहम भूमिका निभाती है। सेना के जवान हर परिस्थिति में जनता की सुरक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। युद्ध के समय उनका कर्तव्य और दायित्व और भी बढ़ जाता है, और वे व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर उठकर देश सेवा करते हैं।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि सेना में शामिल होने से पहले प्रत्येक जवान यह समझ और शपथ लेता है कि वह किसी भी परिस्थिति में देश की रक्षा के लिए तैयार रहेगा — चाहे वह युद्ध हो या सीमावर्ती संघर्ष।