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Supreme Court Verdict: बयाना राशि जब्त करना अब अपराध नहीं, जानें कोर्ट का ताजा फैसला

अगर आप भी Property Deal या IPO Investment में अग्रिम राशि जमा करते हैं, तो यह सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला आपके लिए है बेहद जरूरी जानिए बयाना धन और Advance Payment में असली फर्क, वरना नुकसान तय है!

By Saloni uniyal
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Supreme Court Verdict: बयाना राशि जब्त करना अब अपराध नहीं, जानें कोर्ट का ताजा फैसला
Supreme Court Verdict: बयाना राशि जब्त करना अब अपराध नहीं, जानें कोर्ट का ताजा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सौदा रद्द होने पर बयाना राशि (Earnest Money) की जब्ती को अनुबंध के उल्लंघन की स्थिति में दंड नहीं माना जाएगा। शीर्ष अदालत ने 2 मई 2025 को सुनाए गए फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि खरीदार (Buyer) निर्धारित समय सीमा में शेष भुगतान नहीं करता है, तो विक्रेता (Seller) को सौंपे गए 20 लाख रुपये के बयाना धन को जब्त करना अनुचित नहीं है। यह निर्णय भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 74 (Section 74 of the Indian Contract Act) की व्याख्या के परिप्रेक्ष्य में आया है।

सुप्रीम कोर्ट ने खरीदार की याचिका खारिज की

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने खरीदार द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि 20 लाख रुपये की अग्रिम राशि बिक्री मूल्य का हिस्सा थी, न कि बयाना धन। ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय पहले ही इस दलील को अस्वीकार कर चुके थे, जिसके विरुद्ध अपीलकर्ता सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा था।

बयाना धन और अग्रिम भुगतान में अंतर को रेखांकित किया

फैसले में खंडपीठ ने ‘बयाना धन’ (Earnest Money) और ‘अग्रिम भुगतान’ (Advance Payment) के बीच स्पष्ट अंतर को रेखांकित किया। अदालत ने कहा कि यदि कोई राशि अनुबंध की निष्पादन गारंटी के रूप में दी जाती है, तो वह ‘बयाना’ है, और यदि लेनदेन विफल होता है तो उसकी जब्ती वैध है। दूसरी ओर, कोई राशि जो सिर्फ मूल्य के आंशिक भुगतान के तौर पर दी जाती है, वह ‘अग्रिम’ मानी जाएगी और उसकी जब्ती तभी संभव है जब उसे अनुबंध में स्पष्ट रूप से बयाना बताया गया हो।

अनुबंध अधिनियम की धारा 74 कब लागू होती है

अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 74 तभी लागू होगी जब किसी राशि की जब्ती दंड स्वरूप की जाए। यदि जब्ती उचित, न्यायसंगत और दो पक्षों के बीच समझौते का हिस्सा है, तो यह धारा लागू नहीं होती। न्यायालय ने अपने फैसले में फतेह चंद बनाम श्री बालकिशन दास और कैलाश नाथ एसोसिएट्स बनाम डीडीए जैसे पुराने फैसलों का भी उल्लेख किया, जिससे यह सिद्ध होता है कि यदि ‘Earnest Money’ की जब्ती अनुबंध की निष्पादन गारंटी के तहत हो, तो उसका उद्देश्य दंडात्मक नहीं बल्कि अनुबंध के पालन को सुनिश्चित करना होता है।

समझौते की शर्तों की महत्ता

इस केस में विक्रेता और खरीदार के बीच एक अग्रिम बिक्री समझौता (Advance Sale Agreement) था, जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि 20 लाख रुपये की राशि बयाना धन के रूप में दी गई है। समझौते के अनुसार, यह राशि कुल बिक्री मूल्य 55.50 लाख रुपये में समायोजित होनी थी यदि लेन-देन पूरा होता। लेकिन, यदि खरीदार निर्धारित चार महीने की अवधि में शेष 35.50 लाख रुपये की राशि अदा करने में विफल रहता, तो बयाना धन जब्त किया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज की गई इस बात को भी स्वीकार किया कि विक्रेता के पास लेन-देन को शीघ्र पूरा करने की तात्कालिकता थी, जो अपीलकर्ता को ज्ञात थी।

बयाना की जब्ती अनुबंध का वैध भाग

कोर्ट ने कहा कि जब किसी एग्रीमेंट टू सेल (Agreement to Sell) में स्पष्ट रूप से बयाना की व्यवस्था हो और दोनों पक्ष उसकी शर्तों को स्वीकार कर समझौता करें, तो एकतरफा जब्ती का प्रश्न ही नहीं उठता। इस मामले में, जब खरीदार निर्धारित समय में भुगतान नहीं कर पाया, तो विक्रेता द्वारा बयाना की जब्ती कानूनी और अनुबंधानुसार थी।

कोर्ट ने गोदरेज प्रोजेक्ट्स बनाम अनिल कार्लेकर का दिया हवाला

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हालिया Godrej Projects Development Ltd. v. Anil Karlekar (2024) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि जब्ती का कोई खंड अनुचित या मनमाना हो तो उसे लागू नहीं किया जा सकता। लेकिन यदि वह दोनों पक्षों पर समान रूप से जिम्मेदारी डालता हो, तो वह वैध और लागू होगा। इस मामले में, विक्रेता भी समझौते की अवहेलना करता, तो उसे अग्रिम राशि का दोगुना वापस करना पड़ता।

बयाना धन की जब्ती वैध, अपील खारिज

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों को सही ठहराते हुए यह माना कि अपीलकर्ता खरीदार अनुबंध की शर्तों का पालन करने में विफल रहा और इसलिए विक्रेता को बयाना जब्त करने का पूरा अधिकार है। यह निर्णय ऐसे सभी रियल एस्टेट, संपत्ति खरीद-बिक्री और अनुबंध से जुड़े मामलों में मिसाल बन सकता है, जहां ‘बयाना धन’ और ‘अग्रिम भुगतान’ के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।

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