
सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले (Pegasus Spyware Case) में एक बड़ा और अहम फैसला सुनाते हुए तकनीकी समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि यह देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा मामला है, जिसे सार्वजनिक फोरम पर चर्चा के लिए नहीं लाया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को ‘सड़कों पर चर्चा का दस्तावेज’ नहीं बनाया जा सकता।
देश की सुरक्षा सर्वोपरि, रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने स्पष्ट किया कि जो भी जानकारी देश की सुरक्षा और संप्रभुता को प्रभावित कर सकती है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, “यह देश की सुरक्षा का मामला है, इसे सड़क पर चर्चा के लिए नहीं लाया जा सकता।”
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सरकार पर यह आरोप था कि उसने पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर 300 से अधिक नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि की जासूसी की। इस पर कोर्ट ने यह भी कहा कि स्पाइवेयर का इस्तेमाल अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन हुआ है, तो उस पहलू पर विचार जरूर किया जाएगा।
2021 में गठित हुआ था टेक्निकल पैनल
पेगासस मामले की जांच के लिए 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक तकनीकी समिति (Technical Panel) का गठन किया गया था। इस समिति को यह जांच करनी थी कि भारत में पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग हुआ था या नहीं, और यदि हुआ था तो किसके खिलाफ। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंप दी थी, जिसे अब सार्वजनिक करने से मना कर दिया गया है।
वकीलों ने रिपोर्ट साझा करने की मांग की
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकीलों, जिनमें वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और श्याम दीवान प्रमुख थे, ने समिति की रिपोर्ट को याचिकाकर्ताओं के साथ साझा करने की मांग की। सिब्बल ने सुझाव दिया कि रिपोर्ट के संवेदनशील हिस्सों को हटाकर उसे पक्षकारों को दिया जा सकता है। उन्होंने अमेरिका की अदालत के एक फैसले का हवाला भी दिया और यह कहा कि WhatsApp ने भी पहले Pegasus द्वारा हैकिंग की बात मानी थी।
हालांकि, कोर्ट ने उनकी इस मांग को खारिज करते हुए साफ कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) से संबंधित किसी भी दस्तावेज को सार्वजनिक करना उचित नहीं है। लेकिन कोर्ट ने यह जरूर कहा कि यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि वह इस जासूसी का शिकार हुआ है, तो उसे व्यक्तिगत रूप से सूचित किया जा सकता है।
आतंकवाद के खिलाफ इस्तेमाल को कोर्ट ने ठहराया जायज
सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि अगर स्पाइवेयर का उपयोग आतंकवाद के खिलाफ हो रहा है, तो इसमें कोई गलत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवादी निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकते। इस पर कोर्ट ने सहमति जताई और कहा कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए सतर्क रहना आवश्यक है।
कोर्ट ने क्या कहा निजता और निगरानी पर?
कोर्ट ने दो टूक कहा कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) महत्वपूर्ण है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा उससे ऊपर है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह देखेगा कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट किन-किन हदों तक साझा की जा सकती है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 जुलाई की तारीख तय की है और कपिल सिब्बल को आवश्यक दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति दी है।
मामला क्या था?
पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus Spyware) से जुड़ा यह मामला 2019 में उस समय सामने आया था, जब एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि भारत सरकार ने लगभग 300 लोगों की जासूसी के लिए इस इजरायली तकनीक का उपयोग किया। इन लोगों में राजनेता, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल थे। 2021 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और तब अदालत ने तकनीकी समिति का गठन किया।
रिपोर्ट सार्वजनिक न होने पर उठे सवाल
श्याम दीवान ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि समिति की रिपोर्ट को अब तक साझा नहीं किया गया है जबकि इसे सार्वजनिक करने का वादा किया गया था। उन्होंने यह मांग की कि सीलबंद लिफाफे में दी गई रिपोर्ट को सबके सामने लाया जाए, क्योंकि इसमें नागरिकों के खिलाफ सरकार द्वारा निगरानी किए जाने जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। हालांकि, कोर्ट की ओर से इस मांग को राष्ट्रीय हित में खारिज कर दिया गया।