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भारत का वो जिला जो सिर्फ 1 दिन बना राजधानी! जानिए उस अनसुनी कहानी के पीछे का सच

क्या आप जानते हैं कि भारत का एक जिला ऐसा भी है जो सिर्फ एक दिन के लिए देश की राजधानी बना था? ना दिल्ली, ना कोलकाता – बल्कि एक ऐसा शहर जिसे आज भी लोग इस ऐतिहासिक घटना से अनजान हैं। आखिर क्यों हुआ ऐसा? कब और कैसे बना वो जिला राजधानी? जानिए इस रहस्यमयी सच्चाई के पीछे की पूरी कहानी

By Saloni uniyal
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भारत का वो जिला जो सिर्फ 1 दिन बना राजधानी! जानिए उस अनसुनी कहानी के पीछे का सच
भारत का वो जिला जो सिर्फ 1 दिन बना राजधानी! जानिए उस अनसुनी कहानी के पीछे का सच

भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं, जो समय के साथ कहीं गुम हो गईं। उन्हीं में से एक है भारत का वो जिला जो महज़ एक दिन के लिए देश की राजधानी बना था। यह घटना जितनी अनोखी है, उतनी ही कम लोगों को इसके बारे में जानकारी है। दरअसल, बात हो रही है उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) जिले की, जो 1858 में सिर्फ एक दिन के लिए भारत की राजधानी बना था। इस ऐतिहासिक घटना के पीछे की कहानी ब्रिटिश शासनकाल से जुड़ी हुई है और यह घटना भारत के राजनीतिक इतिहास में एक बेहद अहम मोड़ साबित हुई।

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1857 की क्रांति के बाद बदला सत्ता का संतुलन

1857 की स्वतंत्रता संग्राम, जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम या सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है, ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की जड़ों को हिला कर रख दिया था। इस विद्रोह के बाद अंग्रेज़ सरकार को यह एहसास हुआ कि भारत जैसे विशाल उपनिवेश को कंपनी के ज़रिए नहीं, बल्कि सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन रखना ही ज़्यादा सुरक्षित और व्यावहारिक होगा। इसी निर्णय को सार्वजनिक और औपचारिक बनाने के लिए एक ऐतिहासिक समारोह का आयोजन किया गया।

1 नवंबर 1858: जब इलाहाबाद बना राजधानी

1 नवंबर 1858 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में एक विशेष समारोह आयोजित किया गया, जिसमें गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने महारानी विक्टोरिया की ओर से “रॉयल प्रोक्लेमेशन” (Royal Proclamation) जारी किया। इस घोषणा के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक अधिकार समाप्त कर दिए गए और भारत को सीधे ब्रिटिश सम्राट के अधीन कर दिया गया। इसी दिन, इलाहाबाद को प्रतीकात्मक रूप से भारत की राजधानी घोषित किया गया था।

हालांकि यह राजधानी का दर्जा केवल एक दिन के लिए ही था, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व इतना अधिक है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यही वह दिन था जब ब्रिटिश राज की औपचारिक शुरुआत हुई और भारत एक नए राजनीतिक युग में प्रवेश कर गया।

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राजधानी के तौर पर इलाहाबाद की भूमिका

इस घटना के पीछे इलाहाबाद को राजधानी घोषित करने का एक महत्वपूर्ण कारण उसकी भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति थी। इलाहाबाद गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। उस समय यह उत्तर भारत के प्रमुख राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्रों में से एक था। ब्रिटिश प्रशासन ने इसी शहर को चुना ताकि सत्ता हस्तांतरण को प्रतीकात्मक रूप से सशक्त रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

रॉयल प्रोक्लेमेशन और उसका असर

लॉर्ड कैनिंग द्वारा पढ़ी गई रॉयल प्रोक्लेमेशन में यह घोषणा की गई कि अब भारत पर शासन महारानी विक्टोरिया के नाम पर होगा। इस घोषणा में भारतीयों को यह आश्वासन भी दिया गया कि उनके धर्म, संपत्ति और अधिकारों की रक्षा की जाएगी। इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार ने यह भी घोषित किया कि भविष्य में भारतीयों के साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा।

यह घोषणा जहां एक ओर ब्रिटिश शासन को औपचारिक रूप से स्थिरता प्रदान कर रही थी, वहीं दूसरी ओर यह भारत में आने वाले समय की राजनीतिक दिशा को भी तय कर रही थी।

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एक दिन की राजधानी का प्रतीकात्मक महत्व

हालांकि इलाहाबाद को केवल एक दिन के लिए ही राजधानी बनाया गया, लेकिन यह दिन भारत के इतिहास में एक गहरा असर छोड़ गया। इस घटना के बाद भारत की राजधानी कोलकाता (तब की कलकत्ता) रही, जिसे बाद में 1911 में दिल्ली स्थानांतरित किया गया। लेकिन इलाहाबाद की यह भूमिका भारतीय प्रशासनिक इतिहास में एक अनूठा उदाहरण बनकर रह गई।

प्रयागराज की ऐतिहासिक धरोहर

आज भी प्रयागराज इतिहास के इस गौरवशाली क्षण का साक्षी है। यहां के पुराने भवनों और अभिलेखों में इस घटना की झलक मिलती है। ब्रिटिश काल के दौरान प्रयागराज शिक्षा, न्यायपालिका और प्रशासन का प्रमुख केंद्र रहा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जिनकी स्थापना ब्रिटिश शासन में हुई थी।

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