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UCC को लेकर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी! देश में अब समय आ गया है इसे लागू करने का – जानिए वजह

संपत्ति विवाद के एक फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने उठाई Uniform Civil Code-UCC की जरूरत, बोले– महिलाओं को न्याय तभी मिलेगा जब हर नागरिक के लिए एक जैसा कानून हो। क्या अब देश तैयार है?

By Saloni uniyal
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UCC को लेकर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी! देश में अब समय आ गया है इसे लागू करने का – जानिए वजह
UCC को लेकर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी! देश में अब समय आ गया है इसे लागू करने का – जानिए वजह

Uniform Civil Code-UCC को लेकर देश में एक बार फिर बहस तेज हो गई है। इस बार चर्चा की वजह बना है कर्नाटक हाईकोर्ट का एक अहम फैसला, जिसमें अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अब वक्त आ गया है जब देशभर में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति हंचाटे संजीव कुमार की एकल पीठ ने की, जो एक संपत्ति विवाद के मामले की सुनवाई कर रहे थे। कोर्ट ने न सिर्फ इस कानून को लागू करने की जरूरत बताई बल्कि इसे संविधान के मूल मूल्यों — न्याय, समानता, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता — को मजबूती देने वाला कदम बताया।

संपत्ति विवाद से उपजा बड़ा संदेश

मामला दरअसल एक मुस्लिम महिला शाहनाज बेगम की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा था। महिला के पति और उसके भाई-बहन इस मामले में पक्षकार थे। अदालत ने पाया कि अलग-अलग धर्मों के तहत महिलाओं को संपत्ति में अलग-अलग अधिकार मिलते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 14 में उल्लेखित समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। इस आधार पर न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि Uniform Civil Code-UCC लागू कर नागरिकों को समान न्याय और अधिकार की गारंटी दी जा सकती है।

संविधान में पहले से है प्रावधान

न्यायमूर्ति कुमार ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 44 में पहले से ही समान नागरिक संहिता का उल्लेख है। यह अनुच्छेद राज्य को निर्देश देता है कि वह देशभर में नागरिकों के लिए समान कानून बनाए, जिससे धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो। न्यायमूर्ति ने कहा कि “जब तक सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून नहीं होगा, तब तक सच्चे लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती।”

महिलाओं को क्यों उठानी पड़ती है सबसे बड़ी कीमत?

अदालत ने विशेष रूप से महिलाओं की असमान स्थिति की ओर ध्यान दिलाया। न्यायमूर्ति कुमार ने उदाहरण देते हुए बताया कि हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियों को बेटों के समान अधिकार दिए गए हैं, लेकिन मुस्लिम कानून के तहत बहनों को अक्सर भाइयों से कम हिस्सा मिलता है। यह अंतर महिलाओं को संवैधानिक अधिकारों से वंचित करता है और यह स्थिति 21वीं सदी के भारत के लिए उपयुक्त नहीं मानी जा सकती।

उत्तराखंड और गोवा से मिली प्रेरणा

कोर्ट ने यह भी कहा कि गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्य पहले ही Uniform Civil Code की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। खासकर उत्तराखंड ने पूरे देश के लिए एक उदाहरण पेश किया है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो यह कानून बनाना असंभव नहीं है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की है कि वे इस विषय पर विधायी प्रक्रिया शुरू करें और इसे जल्द से जल्द कानून का रूप दें।

संसद और विधानसभाओं से की अपील

अदालत ने अपने फैसले की प्रति केंद्र सरकार और कर्नाटक सरकार के प्रमुख विधि सचिवों को भेजने का आदेश दिया है ताकि वे इस पर गंभीरता से विचार करें। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब देरी करने का समय नहीं है, क्योंकि देश को एकजुट रखने और कानूनी समानता सुनिश्चित करने के लिए Uniform Civil Code-UCC एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुका है।

संविधान निर्माताओं की सोच का हवाला

न्यायमूर्ति कुमार ने अपने फैसले में डॉ. भीमराव अंबेडकर, सरदार पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और मौलाना हसरत मोहानी जैसे संविधान निर्माताओं के विचारों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ये सभी महापुरुष एक समान कानून व्यवस्था के पक्षधर थे, जिससे हर नागरिक को बिना भेदभाव के न्याय मिल सके। उनका मानना था कि यदि भारत को एक आधुनिक और प्रगतिशील राष्ट्र बनाना है, तो सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून होना चाहिए।

अब वाकई देश तैयार है?

कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब वाकई देश Uniform Civil Code के लिए तैयार है? सामाजिक और धार्मिक विविधता के बावजूद, यदि किसी कानून से महिलाओं को न्याय और नागरिकों को समानता मिल सकती है, तो क्या इसे लागू करने में और देरी होनी चाहिए?

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