
बैंक अकाउंट होल्डर की मौत के बाद अगर बैंक अकाउंट में नॉमिनी (Nominee) का नाम नहीं जोड़ा गया है, तो उस स्थिति में जमा रकम को लेकर कानूनी पेचिदगियां शुरू हो जाती हैं। चाहे वो सेविंग अकाउंट हो, फिक्स्ड डिपॉजिट, डीमैट अकाउंट या प्रॉविडेंट फंड—हर जगह नॉमिनी की अहम भूमिका होती है। कोरोना महामारी के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए जब नॉमिनी न होने के चलते परिवारजनों को लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। इसीलिए बैंक और वित्तीय संस्थान हमेशा यह सलाह देते हैं कि बैंक खाता खोलते समय नॉमिनी का नाम अवश्य दर्ज कराएं।
नॉमिनी क्या होता है और क्यों है जरूरी?
नॉमिनी वह व्यक्ति होता है जिसे खाता धारक अपने बैंक अकाउंट, एफडी, इंश्योरेंस, डीमैट अकाउंट आदि में नामित करता है, ताकि उसकी मृत्यु के बाद वह व्यक्ति अस्थायी तौर पर उस राशि को प्राप्त कर सके। आमतौर पर नॉमिनी के रूप में पति, पत्नी, माता-पिता या संतान का नाम दर्ज किया जाता है, लेकिन कई बार किसी ट्रस्ट या संस्था को भी नॉमिनी बनाया जा सकता है।
नॉमिनी का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि अकाउंट होल्डर की मृत्यु के बाद उसकी जमा पूंजी बैंक में अटकी न रह जाए, और संबंधित व्यक्ति को तुरंत वह राशि मिल सके।
किन-किन जगहों पर नॉमिनी जोड़ना जरूरी है?
नॉमिनी केवल बैंक अकाउंट तक सीमित नहीं होता। इसके अलावा जिन जगहों पर नॉमिनी जरूरी होता है, उनमें शामिल हैं:
- लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी
- हेल्थ इंश्योरेंस
- डीमैट अकाउंट
- बैंक लॉकर
- फिक्स्ड डिपॉजिट (FD)
- प्रॉविडेंट फंड (PF)
इन सभी सेवाओं में नॉमिनी जोड़ने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि बिना किसी कानूनी अड़चन के वह रकम सही व्यक्ति तक पहुंचे।
नॉमिनी और वसीयत में क्या फर्क है?
यह जानना जरूरी है कि नॉमिनी और वसीयतनामा (Will) अलग-अलग कानूनी धाराओं के अंतर्गत आते हैं। नॉमिनी केवल एक ट्रस्टी होता है, जो राशि को मृतक के कानूनी वारिसों तक पहुंचाने का माध्यम होता है। वहीं वसीयत में जिसे संपत्ति सौंपी जाती है, वह उसका असली मालिक बन जाता है।
अगर किसी व्यक्ति ने नॉमिनी बनाया है लेकिन वसीयत किसी और के नाम है, तो मामला कोर्ट तक जा सकता है और अंतिम निर्णय कोर्ट ही देता है।
नॉमिनी नहीं है तो पैसा किसका?
अगर किसी बैंक अकाउंट, FD या पॉलिसी में नॉमिनी नहीं जोड़ा गया है, और अकाउंट होल्डर की मृत्यु हो जाती है, तो उस स्थिति में बैंक वह राशि कानूनी वारिसों को सौंपता है। भारतीय उत्तराधिकार कानून (Indian Succession Law) के तहत:
- विवाहित पुरुष के मामले में पत्नी, बच्चे और माता-पिता कानूनी वारिस होते हैं।
- विवाहित महिला के मामले में पति और बच्चे प्राथमिक वारिस माने जाते हैं।
- अविवाहित पुरुष/महिला के लिए माता-पिता और भाई-बहन वारिस हो सकते हैं।
नॉमिनी नहीं होने पर कैसे मिलेगा पैसा?
अगर नॉमिनी का नाम दर्ज नहीं है तो कानूनी उत्तराधिकारी को बैंक से पैसा प्राप्त करने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसमें कई दस्तावेजों की आवश्यकता होती है, जैसे:
- अकाउंट होल्डर का मृत्यु प्रमाण पत्र (Death Certificate)
- उत्तराधिकारी का आधार कार्ड और फोटो
- निवास प्रमाण पत्र
- Letter of Disclaimer (Annexure-A)
- Letter of Indemnity (Annexure-C)
यह पूरी प्रक्रिया कई हफ्तों या महीनों तक चल सकती है। इसलिए पहले से ही नॉमिनी जोड़ना बेहतर विकल्प होता है, ताकि परिवारजनों को ऐसी मुश्किलों का सामना न करना पड़े।
क्या नॉमिनी को बदला जा सकता है?
हां, अकाउंट होल्डर जब चाहे अपने अकाउंट, पॉलिसी या एफडी से नॉमिनी को बदल सकता है। इसके लिए संबंधित बैंक या संस्था में आवेदन कर नया नॉमिनी जोड़ा जा सकता है। यह बदलाव तब किया जाता है जब पारिवारिक परिस्थिति बदल जाए, जैसे शादी, तलाक या बच्चे के बड़े हो जाने पर।
बैंक की भूमिका क्या होती है?
बैंक का कार्य केवल नॉमिनी को राशि ट्रांसफर करने तक सीमित होता है। अगर नॉमिनी और कानूनी वारिसों में विवाद होता है, तो वह बैंक के अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है और फिर मामला कोर्ट में सुलझाया जाता है। इसलिए अगर नॉमिनी कानूनी वारिस नहीं है, तो उसे वह रकम कानूनी उत्तराधिकारियों में बांटनी होगी।