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MP सरकार का अनोखा फैसला! बेरोजगारों को अब नहीं कहा जाएगा बेरोजगार

क्या नाम बदलने से बदल जाएगी बेरोजगारी की सच्चाई? जानिए मध्य प्रदेश सरकार के 'आकांक्षी युवा' अभियान के पीछे की सोच, विपक्ष की प्रतिक्रिया और युवाओं पर इसका असर – पढ़िए इस खास रिपोर्ट में पूरी कहानी।

By Saloni uniyal
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MP सरकार का अनोखा फैसला! बेरोजगारों को अब नहीं कहा जाएगा बेरोजगार
MP सरकार का अनोखा फैसला! बेरोजगारों को अब नहीं कहा जाएगा बेरोजगार

मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राज्य में बेरोजगार युवाओं को अब “आकांक्षी युवा” के रूप में संबोधित करने की घोषणा की है। इस पहल का उद्देश्य राज्य में रोजगार की धारणा को पुनर्परिभाषित करना और युवाओं के भीतर सकारात्मकता का संचार करना बताया गया है। इस निर्णय के पीछे राज्य के कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री गौतम टेटवाल की सोच है कि पारंपरिक मापदंडों से हटकर बेरोजगारी को नए सिरे से देखा जाए।

पंजीकृत आंकड़े नहीं दर्शाते वास्तविक बेरोजगारी

गौतम टेटवाल ने इस बदलाव की वजह स्पष्ट करते हुए कहा कि रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत व्यक्तियों की संख्या राज्य की वास्तविक बेरोजगारी दर को प्रतिबिंबित नहीं करती। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि कोई युवा रोजगार कार्यालय में पंजीकृत है, लेकिन अपने परिवार के व्यापार या पारंपरिक व्यवसाय में सक्रिय रूप से कार्यरत है, तो उसे बेरोजगार कहना उचित नहीं है।

टेटवाल के अनुसार, राज्य में ऐसे कई युवा हैं जो स्वरोजगार या असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, किंतु तकनीकी रूप से बेरोजगार माने जाते हैं क्योंकि वे पंजीकरण कराते हैं। ऐसे में आंकड़ों और वास्तविकता के बीच बड़ा अंतर उत्पन्न होता है। सरकार चाहती है कि इन युवाओं को अब “आकांक्षी” कहा जाए, ताकि उन्हें प्रेरणा और आत्मविश्वास मिल सके।

रीब्रांडिंग या हकीकत से मुंह मोड़ना?

इस कदम पर राज्य की विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि यह केवल एक शब्दों का खेल है और इससे बेरोजगारी की जमीनी सच्चाई नहीं बदलती। कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह युवाओं को रोजगार देने की बजाय उनके वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाकर उन्हें “नाम बदलने” की नीति में उलझा रही है।

कांग्रेस प्रवक्ताओं का कहना है कि आकांक्षाएं केवल तब फलती-फूलती हैं जब उनके लिए अवसर होते हैं। अगर युवा शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी नौकरी के लिए दर-दर भटक रहा है, तो उसे “आकांक्षी” कह देने मात्र से उसका भविष्य नहीं सुधरता। उन्होंने इसे युवाओं के साथ अन्याय और असंवेदनशीलता बताया।

सरकार की योजना और इसके निहितार्थ

राज्य सरकार का मानना है कि यह निर्णय सिर्फ शब्दों की अदला-बदली नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक व्यापक योजना है। सरकार अब रोजगार कार्यालयों को केवल बेरोजगारों की सूची तैयार करने वाली संस्थाओं के रूप में नहीं देखना चाहती, बल्कि उन्हें युवाओं के लिए कौशल विकास, स्टार्टअप गाइडेंस और करियर काउंसलिंग हब के रूप में विकसित करना चाहती है।

इसके तहत, आकांक्षी युवाओं के लिए विशेष Skilling Programs, Apprenticeship Opportunities और Job Fairs आयोजित किए जाएंगे। सरकार की मंशा है कि रोजगार कार्यालयों का उपयोग सिर्फ नौकरियों की सूची तक सीमित न रहे, बल्कि ये युवाओं को उद्यमिता (Entrepreneurship) की दिशा में भी प्रोत्साहित करें।

सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू

सरकार इस निर्णय को एक मनोवैज्ञानिक पहल के रूप में भी देखती है। ‘बेरोजगार’ शब्द के स्थान पर ‘आकांक्षी’ शब्द का उपयोग युवाओं को नकारात्मकता की भावना से बाहर निकालने का प्रयास है। इससे उनका आत्मबल बढ़ेगा और वे खुद को समाज में एक योगदानकर्ता के रूप में देख पाएंगे।

हालांकि, कई शिक्षाविदों और सामाजिक विशेषज्ञों ने इस सोच का समर्थन करते हुए कहा है कि शब्दों का चुनाव युवा मानस पर गहरा प्रभाव डालता है। सकारात्मक शब्दावली उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकती है, लेकिन यह तभी सार्थक होगी जब इसके साथ वास्तविक अवसर और योजनाएं भी उपलब्ध कराई जाएं।

बेरोजगारी बनाम आकांक्षा: क्या बदलेगा कुछ?

इस पूरी कवायद के केंद्र में मध्य प्रदेश के लाखों युवा हैं जो शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में हैं। राज्य में सरकारी नौकरियों की सीमित संख्या, Private Sector Opportunities की कमी और Skill Mismatch जैसी समस्याएं पहले से मौजूद हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि केवल नाम बदल देने से इन समस्याओं का समाधान होता है या नहीं।

सरकार को चाहिए कि वह इस बदलाव के साथ-साथ रोजगार सृजन, स्टार्टअप इंफ्रास्ट्रक्चर और Industry-Skill Collaboration जैसे ठोस कदम भी उठाए, जिससे कि “आकांक्षा” केवल एक शब्द नहीं, बल्कि युवाओं की सच्ची पहचान बन सके।

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