
Eid-ul-Fitr 2025 भारत सहित दुनियाभर के मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है, जो रमज़ान के पाक महीने के समापन और इस्लामी कैलेंडर के दसवें महीने शव्वाल की शुरुआत का प्रतीक होता है। इसे भारत में ‘मीठी ईद’ के नाम से भी जाना जाता है और यह चांद दिखने पर ही मनाई जाती है। इस दिन का धार्मिक और सामाजिक महत्व इतना अधिक है कि इसे ‘रोज़ा तोड़ने का त्योहार’ (Festival of Breaking the Fast) कहा जाता है।
ईद का दिन मुस्लिम समाज में एक जश्न की तरह होता है, जिसमें सुबह की नमाज़, पारंपरिक पकवान, नए कपड़े पहनना, एक-दूसरे से गले मिलना और ज़कात-अल-फित्र (Zakat-al-Fitr) देना जैसे कर्म किए जाते हैं। ज़कात-अल-फित्र एक प्रकार की अनिवार्य दान होती है जिसे ईद की नमाज़ से पहले अदा किया जाता है, ताकि समाज के जरूरतमंद लोग भी इस पर्व की खुशी में शामिल हो सकें।
कब मनाई जाएगी ईद-उल-फित्र 2025?
भारत में Eid-ul-Fitr 2025 की तारीख पूरी तरह से चांद दिखने पर निर्भर करती है, क्योंकि इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा की गणना पर आधारित होता है। रमज़ान की शुरुआत भारत में इस बार 2 मार्च 2025 को चांद देखने के बाद हुई थी। अब जैसे ही शव्वाल का चांद नजर आएगा, अगले दिन ईद मनाई जाएगी।
रिपोर्ट्स और खगोलीय पूर्वानुमानों के मुताबिक, इस वर्ष शव्वाल का चांद 30 मार्च 2025 की शाम को नजर आ सकता है। अगर यह भविष्यवाणी सटीक साबित होती है, तो भारत में Eid-ul-Fitr का पर्व 1 अप्रैल 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा। हालांकि अंतिम निर्णय चांद के वास्तविक दर्शन पर ही आधारित होगा, जिसे स्थानीय इस्लामी समितियां घोषित करेंगी।
चांद दिखने की अहमियत और भारत में इसका असर
ईद-उल-फित्र का निर्धारण ‘चांद रात’ (Chand Raat) से होता है, जो शव्वाल के चांद के दिखने की रात होती है। भारत में मुस्लिम समाज के लोग इस रात मस्जिदों, घरों और खुले स्थानों से चांद देखने की कोशिश करते हैं और जैसे ही चांद दिखाई देता है, ‘ईद मुबारक’ के संदेशों की बाढ़ आ जाती है। इसके साथ ही बाजारों में रौनक और लोगों में उत्साह चरम पर होता है।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में ईद मनाने का तरीका भी कई रंगों में नजर आता है। कहीं सेवइयां बनाई जाती हैं तो कहीं बिरयानी का विशेष आयोजन होता है। कई जगहों पर मेले और ईद बाजार भी सजते हैं। यह पर्व सांप्रदायिक सौहार्द और आपसी भाईचारे को भी बढ़ावा देता है।
ज़कात-अल-फित्र (Fitrana): ईद से पहले अदा की जाने वाली पवित्र जिम्मेदारी
Eid-ul-Fitr से जुड़ा एक महत्वपूर्ण धार्मिक पहलू है Zakat-al-Fitr (Fitrana), जिसे रमज़ान समाप्त होने से पहले और ईद की नमाज़ से पहले अदा करना अनिवार्य होता है। यह एक प्रकार की अनिवार्य दान होती है जो हर समर्थ मुस्लिम पुरुष, महिला और बच्चे पर लागू होती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि समाज का कोई भी गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति ईद की खुशियों से वंचित न रहे।
इस दान में अक्सर अनाज, खजूर, गेहूं या उसकी कीमत के बराबर धन राशि दी जाती है, जिसे समाज के निर्धनों तक पहुंचाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि यह दान ईद की नमाज़ से पहले नहीं दिया जाता, तो उसका महत्व घट जाता है।
ईद की तैयारियां और सांस्कृतिक उत्सव
ईद-उल-फित्र केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। पूरे रमज़ान महीने में इबादत, रोज़ा और कुरान पाठ के बाद जब ईद आती है, तो यह एक जश्न की तरह होता है। महिलाएं मेंहदी लगाती हैं, बच्चे नए कपड़े पहनते हैं और घरों की सजावट होती है। बाजारों में खासतौर पर ईद को लेकर खरीदी की जाती है, जिसमें कपड़े, मिठाइयां और गिफ्ट्स प्रमुख होते हैं।
इस दिन की शुरुआत ईदगाह या मस्जिद में सामूहिक नमाज़ के साथ होती है। नमाज़ के बाद लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ‘ईद मुबारक’ कहते हैं। दिनभर रिश्तेदारों के यहां आना-जाना, खास व्यंजन और सामूहिक भोज होता है।
धार्मिक और सामाजिक महत्व
Eid-ul-Fitr एक ऐसा पर्व है जो केवल उपवास के समापन का प्रतीक नहीं बल्कि आत्म-शुद्धि, परोपकार और समुदायिक एकता का संदेश देता है। इस दिन मुसलमान अपने बीते 30 दिनों की इबादत और संयम के लिए अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं और जीवन में नेकी, सहिष्णुता और करुणा की भावना को अपनाने का संकल्प लेते हैं।
इस्लाम में ईद-उल-फित्र को ईमान और इखलास (निष्ठा और सच्चाई) की परीक्षा में सफलता के रूप में देखा जाता है। यह दिन खुशी, दया और एकता का प्रतीक होता है, जो सभी धर्मों और जातियों के बीच प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाता है।