
क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा का रिश्ता अब औपचारिक रूप से खत्म हो गया है। इस हाई-प्रोफाइल तलाक को लेकर सबसे अधिक चर्चा में रही एलिमनी की रकम, जो कि ₹4.75 करोड़ बताई जा रही है। यह रकम दोनों की आपसी सहमति से तय हुई और बांद्रा फैमिली कोर्ट ने इस पर मुहर लगा दी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस केस में ‘कूलिंग-ऑफ’ पीरियड को माफ कर दिया, जिससे तलाक की प्रक्रिया तेज हो सकी। इस फैसले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि भारत में एलिमनी-Alimony की रकम आखिर कैसे तय होती है?
कोर्ट किन बातों को ध्यान में रखकर तय करता है एलिमनी?
भारतीय कानून में एलिमनी तय करने के लिए कोई निश्चित गणितीय फॉर्मूला नहीं है। हर मामला अपनी प्रकृति के आधार पर अलग होता है, और अदालतें इसे केस-टू-केस सुनवाई के आधार पर तय करती हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में एक महत्वपूर्ण फैसले में कुछ दिशा-निर्देश जरूर तय किए थे, जिनके आधार पर अदालतें गुजारा-भत्ते की राशि तय करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के मुताबिक, एलिमनी किसी एक पक्ष को दंड देने का माध्यम नहीं बल्कि आर्थिक निर्भरता खत्म करने और जीवन की स्थिरता बनाए रखने का एक उपाय है। इस फैसले में कोर्ट ने मुख्य रूप से 8 कारकों को महत्त्वपूर्ण माना है – जिसमें दोनों पक्षों की कमाई की क्षमता, शादी के दौरान किए गए योगदान, जीवनशैली, बच्चों की जिम्मेदारी, करियर में किया गया समझौता, और आर्थिक निर्भरता जैसे पहलू शामिल हैं।
चहल और धनश्री के तलाक में ₹4.75 करोड़ की रकम कैसे बनी सहमति का आधार?
चहल और धनश्री वर्मा की शादी दिसंबर 2020 में हुई थी और दोनों ने कुछ समय तक साथ जीवन बिताया। लेकिन पिछले कुछ महीनों से दोनों के रिश्ते में दूरियां सामने आने लगी थीं। दोनों की तरफ से तलाक की अर्जी आपसी सहमति से दी गई और यह तय हुआ कि धनश्री को एलिमनी के रूप में ₹4.75 करोड़ की एकमुश्त राशि दी जाएगी।
कोर्ट ने इस समझौते को वैध मानते हुए इसकी अनुमति दी और सुनिश्चित किया कि दोनों पक्ष इस फैसले से संतुष्ट हों। यह मामला उन उदाहरणों में से एक है जहां बिना कानूनी खींचतान के समझदारी से तलाक की प्रक्रिया पूरी हुई।
क्या पुरुष भी एलिमनी मांग सकते हैं?
भारतीय समाज में आम धारणा यही है कि एलिमनी सिर्फ महिलाओं को दी जाती है, लेकिन कानून कुछ और कहता है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 के तहत, यदि पति यह साबित कर दे कि वह अपनी पत्नी पर आर्थिक रूप से निर्भर था, तो वह भी एलिमनी का हकदार हो सकता है।
हालांकि, ऐसे मामलों में कोर्ट बेहद सतर्कता बरतती है और गहन जांच करती है। पति को यह सिद्ध करना होता है कि वह किसी बीमारी, दुर्घटना या गंभीर कारण से आजीविका अर्जित नहीं कर पा रहा है। एलिमनी का उद्देश्य किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष की मदद करना है, चाहे वह पति हो या पत्नी।
हाई-प्रोफाइल तलाकों में एलिमनी की भूमिका
चहल और धनश्री का मामला पहला नहीं है, जब किसी सेलेब्रिटी कपल के तलाक में मोटी एलिमनी चर्चा में रही हो। इससे पहले भी बॉलीवुड और क्रिकेट से जुड़े कई नामी चेहरों के तलाक मामलों में भारी भरकम एलिमनी सामने आ चुकी है।
उदाहरण के तौर पर, ऋतिक रोशन और सुज़ैन खान के तलाक में रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब ₹400 करोड़ की मांग की गई थी। वहीं सैफ अली खान और अमृता सिंह के मामले में भी करोड़ों रुपये की एलिमनी दी गई थी। करण मेहता और निशा रावल के केस में कोर्ट ने ₹1.5 करोड़ के सेटलमेंट को मंजूरी दी थी।
ये उदाहरण यह साबित करते हैं कि तलाक सिर्फ भावनात्मक नहीं बल्कि वित्तीय मोर्चे पर भी बड़ा फैसला होता है।
बाकी देशों में एलिमनी तय करने का तरीका क्या है?
भारत में जहां एलिमनी तय करने के लिए कोर्ट के विवेक पर निर्भर रहना पड़ता है, वहीं कुछ देशों में इसे लेकर निश्चित फॉर्मूला अपनाया जाता है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका के कुछ राज्यों में एलिमनी के लिए एक निर्धारित कैलकुलेशन सिस्टम है। हालांकि, कुछ राज्यों में जज अपनी समझ और केस की परिस्थितियों के आधार पर फैसला लेते हैं।
यूके में तलाक के बाद दोनों पार्टनर्स को समान जीवन स्तर मिल सके, इस पर जोर दिया जाता है। जर्मनी और फ्रांस में एलिमनी सीमित अवधि के लिए दी जाती है, और अक्सर नौकरी या जीवनसाथी के नए संबंध बनने पर बंद कर दी जाती है।
चीन और जापान में एलिमनी बहुत कम होती है और आमतौर पर एकमुश्त राशि में दी जाती है। वहीं, मध्य पूर्व के देशों में इस्लामिक कानूनों के तहत सिर्फ ‘इद्दत’ की अवधि तक एलिमनी देने की व्यवस्था है।
एलिमनी विवादों के बीच भारत में सुधार की जरूरत
भारत में तलाक और एलिमनी से जुड़े कानून आज भी कहीं-कहीं अस्पष्ट हैं और व्यक्तिगत न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करते हैं। इसके कारण कई बार या तो पक्षों को पर्याप्त सहायता नहीं मिलती या फिर अनावश्यक कानूनी झंझटों में फंसे रहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एक व्यापक और स्पष्ट नीति बननी चाहिए जिससे पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित हो सके।
चहल-धनश्री का मामला इस बात का उदाहरण है कि अगर दोनों पक्ष आपसी सहमति और समझदारी से निर्णय लें, तो तलाक भी सम्मानजनक तरीके से हो सकता है। ऐसे मामलों से यह भी संकेत मिलता है कि अब भारत में सेलेब्रिटीज और आम लोग दोनों, तलाक को सामाजिक कलंक की बजाय एक कानूनी समाधान के रूप में देखने लगे हैं।