
कुतुबुद्दीन ऐबक (फ़ारसी: قطب الدین ایبک, English: Qutb al-Din Aibak) को भारत में गुलाम वंश का संस्थापक माना जाता है। गुलाम वंश इसलिये क्योंकि कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवन के अधिकांश वर्ष एक राजा की दासता या गुलामी में बीते थे।
वह एक दूसरे मुस्लिम सुल्तान मुहम्मद गौरी का गुलाम था। जीवन के आरंभि वर्षों में ही कुतुबुद्दीन ऐबक को मुहम्मद गौरी ने दास के तौर पर खरीद लिया था। वह मुहम्मद गौरी की सेवा में रहा। ऐबक के कार्य को देखते हुये गौरी ने उसे अपनी सेना के सैनिकों में शामिल कर लिया।
धीरे धीरे वह सैन्य सहायक और सेना का नेतृत्व करने लगा और मोहम्मद गौरी के लौट जाने के बाद भारत में गौरी के शासित क्षेत्र का अधिपति भी बना।
नाम | कुतुबुद्दीन ऐबक قطب الدین ایبک |
जन्म | 1150 ई. तुर्किस्तान |
मृत्यु | 1210 ई. लाहौर |
धर्म | मुस्लिम |
शाखा | सुन्नी |
शासन काल | 1206 ई. – 1210 ई. |
संस्थापक | गुलाम वंश |
उपाधि | मलिक, सुल्तान ए हिंद, हातिमताई |
शुरूआती जीवन
कुतुबुद्दीन ऐबक और उसका परिवार तुर्किस्तान के निवासी थे। यहीं पर सन 1150 ई में बालक कुतुबुद्दीन का जन्म हुआ। जन्म के समय ऐबक के परिवार की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन दिनों समाज में दास प्रथा व्याप्त थी। इसी कारण उसे एक अच्छी कीमत पर किसी व्यापारी को बेच दिया गया।
इसी तरह दास व्यापर के तहत कुतुबुद्दीन ऐबक को आगे एक काजी को बेच दिया गया। काजी ने ऐबक को अपने पुत्र के साथ-साथ धर्म और आत्मरक्षा का ज्ञान दिया। काजी ने उसे तलवार बाजी और घुडसवारी का भी प्रशिक्षण दिया।
दुर्भाग्य से काजी की असमय मृत्यु हो गयी और काजी के पुत्रों ने फिर से बालक कुतुबुद्दीन को बेचने की योजना तैयार कर ली। इसी समय वहां के सुल्तान भी अपनी सेना के लिये योग्य दासों की खरीद कर रहे थे तो ऐबक को भी मुहम्मद गौरी ने खरीद लिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक का उदय
क्योंकि कुतुबुद्दीन ऐबक बचपन में ही दास व्यवस्था का शिकार हो गया था। इसलिये वह पूरी व्यवस्था से अच्छी तरह से परिचित था। उसने मुहम्मद गौरी की खूब सेवा की और उसके साहस और व्यवहार ने सुल्तान को बहुत प्रभावित किया। समय बीतने पर सुल्तान ने ऐबक को शाही अस्तबल की जिम्मेदारी सौंप दी।
अस्तबल की जिम्मेदारी मिलने के बाद ऐबक को सुल्तान के साथ कई सैन्य अभियानों में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे ऐबक तुर्क सुल्तान की सेना में अहम पद प्राप्त करने में सफल हुआ। वह अब सुल्तान की सेनाओं का नेतृत्व भी करने लगा था।
उसने युद्ध नीति में कुशलता हासिल कर ली थी। तराईन के दूसरे युद्ध में जब मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान का आमना सामना हुआ तो चौहान को बन्दी बनाने में भी कुतुबुद्दीन ऐबक की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
उसके इस कारनामों से सुल्तान बहुत खुश हुआ और अपने तुर्किस्तान वापिस लौटने के अभियान से पहले उसने ऐबक को भारत के जीते हुये राज्यों का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब सल्तनत का गुलाम कहा जाने वाला कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली, लाहौर और मध्य भारत का सूबेदार और शासक बन गया था
ऐबक के सैन्य अभियान
ऐबक एक कुशल नेतृत्व प्रदान कर सकता था और सुल्तान ने भी उसकी इस प्रतिभा को पहचान लिया था। इसलिये उसे तत्कालीन भारत के कुछ क्षेत्रों का सूबेदार बनाया गया था।
तराईन के युद्ध के बाद मोहम्मद गौरी ने तुर्किस्तान जाने का निर्णय लिया और अपने जीते हुये साम्राज्य में कुछ हिस्सा ऐबक को शासन चलाने के लिये देने के बाद राजपूतों से जीती गयी जागीरें राजपूतों के वंशजों को ही बतौर जागीरदार और देख रेख के लिये प्रदान कर दी थी।
लेकिन सुल्तान के लौटने के बाद राजपूत विद्रोह करने लगे और तुर्क साम्राज्य से बगावत पर उतर आये। इसके जवाब में ऐबक ने भी इन विद्रोहों को बडी क्रूरता से दबाया। सबसे पहले उसने अजमेर और मेरठ में विद्रोहियों को कुचल दिया और पूरे दिल्ली के क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक की महत्वाकांक्षा जागी और उसने सम्पूर्ण भारत को विजय करने का अभियान छेड दिया।
तुर्कों का विस्तार
पूरे भारत में तुर्कों के साम्राज्य को फैलाने के अभियान के तहत ऐबक ने हांसी के जाट सरदारों के विद्रोह को दबाया। 1194 में अजमेर के राजपूतों ने फिर से विद्रोह किया लेकिन वे ऐबक के आगे टिक नहीं सके। इस अभियान से तुर्क साम्राज्य अजमेर से वाराणसी तक फैल गया।
इसके अगले ही साल 1195 में उसने अलीगढ को तुर्क साम्राज्य में मिला लिया। इसी तरह से उसने बेहद कम समय में अन्हिलवाडा, कन्नौज, चन्दवार और बदायूं पर आक्रमण कर उन्हें जीत लिया और वहां बडे पैमाने पर कत्लेआम और लूटपाट की। ऐबक अपने आप को कट्टर सुन्नी कहा करता था।
उसने कलिंजर, महोबा, बनारस और खजुराहो पर आक्रमण करते हुये वहां के तमाम मंदिरों को तोड डाला और जमकर लूटपाट करते हुये पूरे इलाके को रौंद डाला। उसने सेनापति बख्तियार के नेतृत्व में सेना को पूर्वी दिशा में भेजा और बंगाल तथा बिहार को भी लूट लिया। इस प्रकार ऐबक ने अपने नेतृत्व में तुर्कों के साम्राज्य का बहुत विस्तार कर दिया था।
गुलाम वंश और ऐबक का गद्दी पर बैठना
तुर्क सुल्तान मुहम्मद गौरी अपनी मृत्यु से पूर्व अपने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं कर पाया था। वह दासों पर बहुत भरोसा करता था। इसका एक कारण यह भी था कि गोरी का कोई पुत्र नहीं था। गोरी की मृत्यु हो जाने पर उसके सबसे प्रमुख और भरोसेमंद दासों में सुल्तान बनने को लेकर होड लग गयी।
इन दासों में ऐबक के अलावा गयासुद्दीन महमूद, यल्दौज, कुबाचा और अली मर्दान प्रमुख थे। ये सभी लोग किसी तरह से सुल्तान बनना चाहते थे। अंत में ऐबक ने अपनी कुशलता और सेना के समर्थन से दिल्ली की गद्दी पर अपना दावा पेश किया और दिल्ली का बादशाह बना। 24 जून 1206 को कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्याभिषेक करवाया और दिल्ली से शासन चलाने लगा।
शासक बनने के बावजूद ऐबक ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। यहीं से उसने एक नये साम्राज्य की नींव रखी जिसे गुलाम वंश कहा जाता है। ऐबक अपनी राजधानी दिल्ली से लाहौर ले गया। इसी बीच अजमेर के राजपूतों ने विद्रोह कर दिया और अली मर्दान ने भी ऐबक को सरदार मानने से इनकार कर दिया। ऐबक वापस दिल्ली लौटा और सफलता पूर्वक इन विद्रोहों को दबाने में कामयाब हुआ।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु
सुल्तान बनने के बाद भी ऐबक का अधिकतर समय युद्ध के मैदान में ही बीता। लेकिन उसके द्वारा स्थापित किये गये गुलाम वंश ने लगभग एक सदी 1206-1290 तक भारत में अपनी जडें जमाये रखीं। ऐबक का बादशाह के रूप में शासनकाल बहुत ही छोटा रहा और 1210 ई में चौगान खेलते हुये घोडे से गिरने पर ऐबक को गंभीर चोटें आयीं
और उसकी मृत्यु हो गयी। ऐबक के बाद इल्तुतमिश गद्दी पर बैठा। इल्तुतमिश को ही गुलाम वंश का वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है। उसने ऐबक की योजनाओं को आगे बढाया और कुतुबमीनार के अधूरे काम को पूरा करवाया। इल्तुतमिश को गुलामों का गुलाम कहा जाता था। क्योंकि वह कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम था।
जबकि ऐबक स्वयं ही मुहम्मद गोरी का गुलाम था। ऐबक के गुलाम के साथ साथ इल्तुतमिश ऐबक का दामाद भी था। इल्तुतमिश राजधानी को लाहौर से दिल्ली ले आया। ऐबक के द्वारा ही दिल्ली की कुतुबमीनार की नींव रखी गयी थी परन्तु वह अपने जीवित रहते इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं कर सका। इसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा बनवाया
कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की और वह गुलाम वंश का पहला सुल्तान हुआ।
कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलाम वंश की स्थापना 1206 ई में की गयी थी। इसके बाद गुलाम वंश के शासकों ने 1290 ई तक तत्कालीन भारत पर राज किया था।
तुर्क सुल्तान मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना दास बनाया था। और उसे काजी के पुत्रों से बतौर गुलाम खरीदा था।
रजिया सुल्तान गुलाम वंश की पहली महिला शासक थी जो कि दिल्ली की गद्दी पर बतौर सुल्तान बैठी थी। यह इल्तुतमिश की पुत्री थी।