
मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय हिंदी साहित्य जगत की शिक्षा में दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। प्रेमचंद जी का नाम हिंदी और उर्दू साहित्य के महान लेखकों में शुमार है। बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शतरचंद चट्टोपाध्याय जी ने इन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि भी दी है। प्रेमचंद जी ने कहानियों और उपन्यासों के लिए एक नयी परम्परा का आरम्भ किया जिसने आने वाली पीढ़ी के साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया। इनकी सम्पूर्ण रचनाएँ हिंदी साहित्य की धरोहर है। इनकी हर रचना सत्य और उस समय की सच्चाई बयां करती है।
आज हम जानेंगे मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय, रचनाएँ (Munshi Prem Chand). अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अंत एक हमारे साथ जुड़े रहे।
मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय, रचनाएँ (Munshi Premchand)
प्रेमचंद जी हिंदी और उर्दू साहित्य के एक महान लेखक है जिन्होंने आम आदमी की पीड़ा को समझ कर उसको कलम के सहारे देश में उजागर किया। इनकी रचना का संसार बहुत विस्तृत और समृद्ध है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद जी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, संस्मरण, अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया है। यहाँ आपको मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय विस्तृत रूप से बताया गया है।
जन्म
मुंशी प्रेमचंद का मूलनाम धनपतराय है और उर्दू नाम नवाबराय है। Munshi Premchand का जन्म 31 जुलाई 1880 में वाराणसी के निकट लमही गॉंव में हुआ था।
इनके पिताजी का नाम अजायबलाल था। इनके पिता का नाम आपको कही-कही अजायबलाल की जगह अजायबराय भी देखने को मिलेगा। इनकी माता का नाम आनंदी देवी था। इनके पिता डाकघर में एक मामूली सी नौकरी करते थे। जब मुंशी जी 8 वर्ष के थे तब इनकी माता का देहांत हो गया था। जिसके बाद इनके पिताजी ने दूसरी शादी की थी जिसके बाद इनके दो भाइयों का भी जन्म हुआ।
शिक्षा और कार्य क्षेत्र
Munshi Premchand की शिक्षा का प्रारम्भ लालपुर मदरसा से उर्दू एवं फ़ारसी से हुआ था। जब 1906 में इनके पिता की मृत्यु हुई तो उसके बाद इन्होंने घर की जीविका चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ाना प्रारम्भ किया साथ ही खुद भी पढ़ने के लिए 5 मील दूर चलकर जाते थे और देर रात तक दिया जलाकर पढ़ते थे।
कठिनता से फीस माफ़ी के बाद कॉलेज में प्रवेश मिला लेकिन दुर्भाग्य वश वे गणित में दो बार फ़ैल हो गए। जिसके बाद उन्होंने निर्णय किया कि उनको अपने अध्ययन की ओर थोड़ी ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है और वे शहर में जा कर रहने लगे। और वहाँ 5 रुपए मासिक फीस में एक वकील के बेटे को पढ़ाया।
शहर में ही घोड़े के अस्तबल के ऊपर कच्ची मिट्टी की एक कोठरी किराये पर लेकर रहने लगे। अपनी पढ़ने की ललकता को पूरा करने के लिए वे कड़ी मेहनत करने लगे। गोरखपुर के बुद्धि लाल पुस्तक विक्रेता से कुंजियाँ लेकर छात्रों को बेचने का काम पुस्तक विक्रेता से लिया और बदले में उनसे दुकान में बैठकर उपन्यास पढ़ने की सुविधा पायी।
1898 में बनारस के क्वीन कॉलेज में प्रवेश लिया और द्वितीय श्रेणी में मैट्रिक पास की। एक स्कूल में के हेडमास्टर की सहायता से 18 रुपए वेतन में स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के पद पर नियुक्त हो गए। साथ ही अपनी पढाई भी जारी रखी। गवर्नमेंट डिस्ट्रिक्ट कॉलेज, बहराइच में 20 रुपए प्रतिमाह की नौकरी की।
1904 में उर्दू एवं हिंदी में ओरिएण्टल इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से वर्नाक्युलर (मातृभाषा) इम्तहान पास किया। 1905 में ट्रेनिंग कॉलेज से पढ़ाने का सर्टिफिकेट पाया। 1909 में बस्ती सरकारी स्कूल में 3 वर्षों तक अध्यापक पद पर रहे। 1910 में अंग्रेजी, फ़ारसी, दर्शन, इतिहास विषयों से इंटर पास की।
1919 में इलाहाबाद से बी.ए. पास किया। गोरखपुर, कानपुर, बनारस में अलग-अलग जगहों पर पढ़ाया। अंततः शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हो गए।
साहित्य सिद्धांत
मात्र 13 वर्ष की आयु में यानि 1893 में Munshi Premchand जी ने उर्दू उपन्यास तिलिस्म होशरुबा को पूरा पढ़ लिया था। तिलिस्म होशरुबा में 17 भाग थे। उस समय के प्रसिद्ध उपन्यासकार रतननाथ सरशार, मौलाना शरर, हादी रस्बा आदि सभी से प्रेमचंद भली भाँति परिचित थे।
इनके उपन्यासों को पढ़ने के बाद उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आया और उन्होंने सोचा की ये जितने भी उपन्यास और साहित्य समाज में लोकप्रिय है वे वास्तव में किसी भी आम आदमी से सम्बन्ध नहीं रखते। ये सभी उपन्यास काल्पनिकता से सम्बंधित है।
तभी उनके मन में इस पृष्ठभूमि पर यह विचार उत्पन्न हुआ कि साहित्य को ऐसा होना चाहिए जो आम आदमी के जीवन और यथार्थ से जुड़ा हो। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने साहित्यिक सिद्धांत के रूप में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद साहित्य सिद्धांत की स्थापना की।
आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का मतलब है एक ऐसे जीवन की वास्तविकता जिसके अंत में आदर्श होता है यानि इनके प्रत्येक कहानी या उपन्यास के अंत में आदर्श होता है।
वैवाहिक जीवन
15 वर्ष की आयु में मुंशी प्रेमचंद जी का विवाह हुआ था। जब ये 16 वर्ष के हुए तो इनके पिताजी की मृत्यु हो गयी जिसके बाद परिवार की पूर्ण जिम्मेदारी का भार इनके सर पर आ गया।
उस समय इनके परिवार में इनकी सौतेली माँ, दो सौतेले भाई और पत्नी थी। आर्थिक तंगी के चलते प्रेमचंद और इनकी पत्नी अलग हो गए और उनका पहला विवाह असफल रहा।
1906 में जब वे 26 वर्ष के थे तब उन्होंने शिवरानी देवी से किया। शिवरानी एक बाल विधवा थी। शिवरानी देवी ने एक पुस्तक भी लिखी जिसका नाम प्रेमचंद घर में है। इस पुस्तक में शिवरानी देवी ने प्रेमचंद से जुडी अपनी सभी घटनाओ की अभिव्यक्ति की है।
साहित्य परिचय
1907 से उर्दू में कहानी लेखन शुरू कर दिया था। इनकी पहली उर्दू कहानी संसार का अनमोल रत्न थी जो 1907 में जमाना उर्दू पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उर्दू पत्रिका में प्रेमचंद का नाम नवाबराय था। ज़माना पत्रिका के संपादक दया नारायण निगम थे इन्होने ही प्रेमचंद को प्रेमचंद नाम दिया था। 1905 से 1909 तक कानपूर रहते थे तब उनकी मुलाकात जमाना पत्रिका के संपादक दयानारायण निगम से हुई और उनसे घनिष्ठ मित्रता भी हो गयी।
1914 से पहले तक प्रेमचंद जी उर्दू में लेखन लिखते थे। 1913-1914 में उनका पहला उर्दू कहानी संग्रह सोजेवतन प्रकाशित हुआ इसमें 5 कहानिया थी और सभी कहानी देशभक्ति से ओत प्रोत थी इसी कारण अंग्रेजो ने देश द्रोह का आरोप लगा कर प्रेमचंद के इस कहानी संग्रह को ज़ब्त कर लिए और इस संग्रह की 500 प्रतियां उनके सामने जला दी।
यह घड़ी नवाबराय (प्रेमचंद) के लिए संकट की थी क्योंकि वे किसी भी स्थिति में अपने साहित्य से मुँह नहीं मोड़ना चाहते थे। उनका संकल्प था साहित्य के माध्यम से आम आदमी की पीड़ा को लोगो के समक्ष लाना। आम आदमी की समस्या के प्रति लोगो को जागरूक करना।
इस समय उनकी लेखन कार्य पर अंग्रेजो सरकार की दृष्टि केंद्रित हो गयी तो उनके लिए लिखना भी कठिन हो गया। इस परिस्थिति से निजात पाने का रास्ता जमाना के संपादक दयानारायण निगम से सुझाया उन्होंने कहा कि तुम नवाबराय के नाम उर्दू लेखन न करके प्रेमचंद नाम से हिंदी लेखन प्रारम्भ कर दो। इसके बाद प्रेमचंद का हिंदी में लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ। 1914 से प्रेमचंद का हिंदी लेखन प्रारम्भ हुआ। और उनके सभी उर्दू लेख भी हिंदी में अनुदित हुए।
उनकी पहली हिंदी कहानी सौत थी जो 1915 में प्रकाशित हुई। उनका पहला कहानी संग्रह सप्तसरोज था जो 1917 में प्रकाशित हुआ था। 1921 में महात्मा गाँधी के आह्वान पर इन्होने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ कर अपने घर वाराणसी (बनारस) वापस लौट आये।
1923 में बनारस में ही सरस्वती प्रेस की स्थापना की। जिससे वे अपनी साहित्यिक रचनाओं को प्रकाशित कर आम आदमी की आवाज बना सके। 1930 में जनवादी पत्रिका के संपादन के उद्देश्य से हंस नामक पत्रिका का संपादन आरम्भ किया। आर्थिक तंगी के चलते इन्होने हंस के संपादन का कार्य साहित्य परिषद् को सौप दिया जिसके बाद 50 रूपए के लिए इसका दायित्व सस्ता साहित्य मंडल को सौपा। 1931 में मर्यादा पत्रिका का संपादन किया।
1932 में जागरण नामक साप्ताहिक पत्र, माधुरी पत्रिका का प्रकाशन किया। 1936 में जमानत लगने पर परिषद् ने हंस को बंद करने की योजना बनाई किन्तु प्रेमचंद ने जमानत देकर हंस को जारी रखा। हंस को नियमित रूप से प्रकशित करने के लिए वे मुंबई गए ताकि वे किसी फिल्म की कहानी लिख कर पैसा कमा सके लेकिन वहाँ किसी के नियंत्रण में रहकर उनसे वो कार्य नहीं हुआ और वे वापस लौट आये। 1936 में भारतीय प्रगति लेखक संघ लखनऊ के अध्यक्ष चुने गए। 8 अक्टूबर 1936 में मुंशी प्रेमचंद की का स्वर्गवास हो गया।
रचनाएँ
कहानी संग्रह
- लगभग प्रेमचंद ने 300 कहानिया लिखी जो सभी मानसरोवर में लिखी गयी है। मानसरोवर 8 खंडो में विभाजित है।
लेखन संग्रह
- उनके भाषण, साहित्य के प्रति विचार धारा स्पष्ट होती है उन लेखो का संग्रह कुछ विचार संग्रह में मिलता है।
नाटक
- संग्राम (1923),
- कर्बला (1924),
- प्रेम की वेदी (1933)
प्रमुख उपन्यास
- सेवासदन(1918) – वेश्या की समस्या, दहेज़ प्रथा समस्या पर आधारित है।
- कायाकल्प (1926) – योगाभ्यास, पुनर्जन्म का चित्रण है।
- प्रेमाश्रम (1922) – किसान और जमींदार के संघर्षपूर्ण सम्बन्धो का चित्रण है।
- रंगभूमि (1925) – त्याग, प्रेम एवं बलिदान का आदर्श तथा गाँधी जी की विचारधारा का चित्रण है।
- निर्मला (1927) – दहेज़ प्रथा, अनमेल विवाह की समस्या पर आधारित है।
- गबन (1931) – नारी का आभूषण – प्रेम की समस्या।
- कर्म भूमि (1933) – हिन्दू मुस्लिम एकता, अछूतोद्वार, किसानो के उत्थान आदि का चित्रण है।
- गोदान (1936) – कृषक जीवन की समस्याओ, किसानो, मजदूरों के शोषण की कथा का चित्रण है।
- मंगलसूत्र (1946) – मुंशी प्रेमचंद जी का निधन हो जाने के कारण ये उपन्यास अधूरा रहा लेकिन 1946 में उनके पुत्र अमृतराय ने इसको पूर्ण करके प्रकाशित किया।
उपर्युक्त लेख में हमने आपको प्रेमचंद जी का जीवन परिचय बताया यदि आप हिंदी साहित्य की महान कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी का जीवन परिचय जानना चाहते है तो उनके नाम पर क्लिक करके देख सकते है।
मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय से सम्बंधित कुछ प्रश्न उत्तर
प्रेमचंद जी के पुत्र अमृतराय ने सन 1962 में कलम का सिपाही नामक प्रेमचदं की जीवनी लिखी थी जिसके लिए उन्हें 1963 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
कलम का मजदूर नामक प्रेमचंद की जीवनी मदनगोपाल ने 1965 में लिखी थी।
डॉ नगेन्द्र ने उनकी पहली कहानी सौत को माना जो 1915 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी और वहीं डॉ गणपतिचंद्र गुप्त ने उनकी पहली कहानी पंचपरमेश्वर को माना जो 1916 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
गोदान प्रेमचंद जी का संबसे प्रसिद्ध उपन्यास है।