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Alimony Rule: तलाक के बाद सिर्फ पति ही नहीं, इनसे भी मिल सकता है गुजारा भत्ता – जानिए नियम

क्या आप जानते हैं कि तलाक के बाद महिला न केवल पति से बल्कि ससुर से भी Alimony ले सकती है? जानिए कैसे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 देता है यह खास अधिकार

By Saloni uniyal
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Alimony Rule: तलाक के बाद सिर्फ पति ही नहीं, इनसे भी मिल सकता है गुजारा भत्ता – जानिए नियम
Alimony Rule: तलाक के बाद सिर्फ पति ही नहीं, इनसे भी मिल सकता है गुजारा भत्ता – जानिए नियम

भारत में Divorce Cases की संख्या भले ही पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे कम हो, लेकिन हाल के वर्षों में यह आंकड़े तेजी से बढ़े हैं। बदलते सामाजिक परिदृश्य, महिलाओं की बढ़ती शिक्षा और जागरूकता, वित्तीय स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान की बढ़ती भावना ने महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने में सशक्त बनाया है। तलाक की स्थिति में महिला के पास न केवल पति से बल्कि ससुराल पक्ष से भी गुजारा भत्ता (Alimony) लेने का अधिकार है। आइए विस्तार से समझते हैं भारत में Divorce Rules और Alimony के नियमों को।

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भारत में Divorce Rules और Alimony के प्रावधान महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। बदलते सामाजिक परिवेश और महिलाओं की बढ़ती सशक्तिकरण के बीच ये कानून उन्हें आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता से जीने का अधिकार देते हैं। यह जरूरी है कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों और यदि आवश्यक हो तो उन्हें कानूनी सहायता प्राप्त करने में संकोच न करें

क्या है गुजारा भत्ता (Alimony)?

तलाक के बाद महिला के भरण-पोषण के लिए पति द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि को गुजारा भत्ता या Alimony कहा जाता है। यह हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 (Hindu Marriage Act 1955) के प्रावधानों के तहत लागू होता है। गुजारा भत्ता कोर्ट के निर्देश के आधार पर या दोनों पक्षों के बीच आपसी समझौते के तहत दिया जा सकता है। यह भुगतान एकमुश्त (Lump Sum) या नियमित अंतराल (Periodic Payment) पर हो सकता है।

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कैसे तय होती है एलिमनी?

  • एलिमनी की राशि तय करने के लिए कोर्ट कुछ महत्वपूर्ण पैरामीटर्स का आकलन करती है:

संपत्ति और आय के स्रोत:

  • कोर्ट पति और पत्नी दोनों के स्वामित्व वाली संपत्तियों और आय के स्रोतों का आकलन करती है। इसमें वेतन, निवेश, व्यवसाय से होने वाली आय, और संपत्ति से मिलने वाला किराया आदि शामिल होते हैं।

विवाह की अवधि:

  • विवाह की अवधि भी एलिमनी की राशि को प्रभावित करती है। लंबी अवधि के विवाह में अधिक एलिमनी मिलने की संभावना होती है, जबकि अल्पकालिक विवाह में एलिमनी कम हो सकती है।

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उम्र, स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति:

  • पति और पत्नी दोनों की उम्र, स्वास्थ्य, सामाजिक स्थिति और जीवनशैली को ध्यान में रखा जाता है। अगर पत्नी की उम्र अधिक है या उसकी स्वास्थ्य स्थिति ठीक नहीं है, तो उसे अधिक गुजारा भत्ता मिल सकता है।

आश्रित और दायित्व:

  • कोर्ट यह भी देखती है कि दोनों पक्षों पर कितने आश्रित हैं, जैसे बच्चे या वृद्ध माता-पिता। इसके साथ ही, बच्चों की शिक्षा और पालन-पोषण में होने वाले खर्चों को भी ध्यान में रखा जाता है।

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दूसरे दायित्व:

  • पति या पत्नी के ऊपर अन्य वित्तीय दायित्व, जैसे लोन या क्रेडिट कार्ड बिल, को भी ध्यान में रखा जाता है।

किस स्थिति में ससुर से ले सकते हैं गुजारा भत्ता?

तलाक के बाद, यदि पति की मृत्यु हो जाती है और महिला खुद का खर्च नहीं उठा पा रही है, तो वह अपने ससुर या पति के परिवार के अन्य सदस्यों से गुजारा भत्ता मांग सकती है। यह हक हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act 1956) के तहत आता है। इसके अंतर्गत महिला को पति की संपत्ति पर अधिकार मिल सकता है, बशर्ते कि वह दूसरी शादी न करे।

तलाक के बढ़ते मामले: एक सामाजिक बदलाव

भारत में तलाक के मामले पहले के मुकाबले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं:

  • शिक्षा और जागरूकता: महिलाओं में शिक्षा और उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
  • वित्तीय स्वतंत्रता: महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है।
  • आत्म-सम्मान: महिलाएं अब किसी भी तरह के अपमानजनक या शोषणकारी रिश्ते में नहीं रहना चाहतीं।
  • कानूनी सुधार: Divorce Rules और Alimony के नियमों में सुधार ने महिलाओं को अधिक सुरक्षा और अधिकार दिए हैं।

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भारत में तलाक के लिए कानूनी आधार

भारत में तलाक के लिए कुछ कानूनी आधार (Grounds for Divorce) निर्धारित किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • व्यभिचार (Adultery)
  • क्रूरता (Cruelty)
  • त्याग (Desertion)
  • धार्मिक रूपांतरण (Conversion to another religion)
  • असाध्य मानसिक रोग (Mental Disorder)
  • लापता होना (Presumption of death)

इन आधारों पर पत्नी या पति तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर सकते हैं।

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कोर्ट का दृष्टिकोण

भारतीय कोर्ट्स ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए Divorce Rules को समय-समय पर संशोधित किया है। कोर्ट यह सुनिश्चित करती है कि महिला को उचित भरण-पोषण मिले, जिससे वह सम्मानजनक जीवन जी सके।

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